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UP Politics: यूपी में हारी हुई सीटों पर मंथन कर रही बीजेपी, 'धोखेबाजों' पर हो सकती है कार्रवाई

बीजेपी के बारे में कहा जाता है कि पार्टी एक चुनाव के नतीजों के तुरंत बाद दूसरे चुनाव की तैयारी शुरू कर देती है. 10 मार्च को यूपी विधानसभा के नतीजे आने के दो दिन के अंदर ही इस पर मंथन शुरू हो गया है. 

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फाइल फोटो
फाइल फोटो
स्टोरी हाइलाइट्स
  • एक चुनाव खत्म होते ही दूसरे चुनाव की तैयारी में जुटी बीजेपी
  • 2024 के लक्ष्य के लिए अभी से संगठन के पेच कसने पर नजर 

यूपी में विधानसभा चुनाव में बहुमत पाकर दोबारा सत्ता में वापसी कर रही बीजेपी ने चुनाव परिणाम आने के दो दिन बाद ही नतीजों की समीक्षा शुरू कर दी. क्षेत्रवार समीक्षा में उन सीटों पर खासा नजर है, जिन पर पार्टी का प्रदर्शन ठीक नहीं रहा है. काशी और गोरक्ष क्षेत्र के उन जिलों को लेकर खास तौर पर मंथन हो रहा है, जहां वोट प्रतिशत घटा है और जिन जिलों में बीजेपी को एक भी सीट नहीं मिली. वहीं 36 विधानपरिषद की सीटों पर प्रत्याशियों के नाम के साथ जीत के लिए भी मंथन चल रहा है.

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सुनील बंसल ने तैयार किया समीक्षा का खाका

यूपी में संगठन महामंत्री सुनील बंसल ने नतीजों की समीक्षा का खाका तैयार कर लिया है. जिलों में सम्पर्क करके इस बात का फीडबैक लिया जा रहा है कि चुनाव में भीतरघातियों की वजह से कितना नुकसान हुआ है. इसके साथ ही 2017 के मुकाबले जहां प्रदर्शन कमजोर रहा है, उसकी वजह क्या है. दरअसल पार्टी को दोबारा बहुमत मिला है लेकिन कई क्षेत्रों में प्रदर्शन आशा के अनुरूप नहीं रहा. 2017 में बीजेपी को 312 सीटें मिली थीं लेकिन इस बार 255 सीटें मिली हैं.

2024 के लिए कसी जा रही कमर

वैसे नतीजों की औपचारिक रूप से बैठक कर समीक्षा करना भाजपा का रूटीन है लेकिन इससे पहले संगठन महामंत्री ने फीडबैक लेना शुरू कर दिया है. इस बार बड़ी संख्या में दूसरे दलों के नेताओं की जॉइनिंग भी हुई है. पार्टी में उनमें से कुछ को टिकट भी दिया है. पार्टी के पदाधिकारियों के अनुसार ऐसा हर चुनाव के बाद होता है और एक चुनाव के बाद आगे के चुनाव की तैयारी शुरू हो जाती है लेकिन इस बार हारी हुई सीटों पर मंथन और ज्यादा जरूरी इसलिए है क्योंकि मिशन 2024 के लक्ष्य में अब ज्यादा वक्त नहीं है. ऐसे में संगठन की कमजोरी किस जगह पर है, यह जानना जरूरी है.

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छह जिलों की सरकार गठन के बाद समीक्षा

पार्टी के कई दिग्गज नेता और योगी सरकार के 11 मंत्री भी चुनाव हारे हैं. ऐसे में इस बात पर भी पार्टी की नजर है कि इन सीटों पर संगठन के स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं का काम कैसा रहा या संगठन की क्या स्थिति इन क्षेत्रों में है. इसके अलावा वो छह जिले भी महत्वपूर्ण हैं, जहां पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली. अभी सरकार गठन के बाद इन क्षेत्रों की समीक्षा होगी. बीजेपी के लिए यह चिंता की बात है कि शामली, कौशाम्बी, मऊ, गाजीपुर, आजमगढ़ और अम्बेडकरनगर में एक भी सीट नहीं मिली. 

किस क्षेत्र में कितनी सीटें मिलीं?

- इस बार पश्चिम क्षेत्र में बीजेपी को 71 सीटों में से 40 सीटें मिली हैं, जबकि 2017 में पार्टी में इस को इस क्षेत्र में 52 सीटें मिली थीं.
- ब्रज क्षेत्र में सबसे कम नुकसान हुआ है. यहां 65 सीटों में 52 सीटें पार्टी को मिली हैं जबकि पिछली बार 57 सीटें मिली थीं.
- अवध क्षेत्र की 82 सीटों में 61 सीटें पार्टी को मिली हैं जबकि 2017 में 67 सीटें मिली थीं.
- कानपुर बुंदेलखंड क्षेत्र में 52 सीटों में पिछली बार 47 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि इस बार 40 सीट ही मिल पाई हैं.
- काशी क्षेत्र की 71 सीटों में पिछली बार जहां 55 सीटें पार्टी के कब्जे में आई थीं, वहीं इस बार 42 सीटों से ही संतोष करना पड़ा है.
- गोरक्ष क्षेत्र की 62 सीटों में पार्टी को 37 सीटें बीजेपी को मिली हैं, जबकि पिछली बार पार्टी को इस क्षेत्र में 46 सीटें मिली थीं.

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'नतीजों के बाद पीछे देखने का मौका नहीं'

बीजेपी के उपाध्यक्ष विजय बहादुर पाठक का कहना है, ‘हर चुनाव में नई चुनौतियां होती हैं, इसलिए हर चुनाव में नया टास्क सामने आता है. इसी तरह से हम सबसे ज्यादा सांसदों वाले दल बने हैं. प्रदेश में दोबारा बहुमत में आए हैं. नतीजों के बाद पीछे देखने का मौका नहीं होता. आगे के चुनाव के लिए तैयारी का मौका होता है.’ 

 

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