कुंवर फतेह बहादुर सिंह ने कहा कि मौजूदा लोकसभा के गठन के आठ महीने में बसपा ने सामाजिक सामंजस्य के नाम पर पांच बार संसद में नेता सदन को बदला दिया है. गिरीश जाटव, दानिश अली, श्याम सिंह यादव, दानिश अली और अब रितेश पांडेय को सदन का नेता बनाया गया है. राज्यसभा में बसपा के संसदीय दल के नेता सतीश मिश्र हैं. ऐसे में लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनो में एक ही समाज के नेता किस प्रकार का न्याय है?
यह असहमति नहीं है,यह चिन्ता है कि बसपा का गठन मान्यवर कांशीराम जी ने जिस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए किया क्या वर्तमान नेतृत्व उसे प्राप्त करने के रास्ते पर चल रहा है।क्या बहुजन को सामाजिक,आर्थिक,एवं राजनीतिक अधिकार मिल पायेंगे?क्या सामाजिक परिवर्तन होगा?बहुजन को सोचना होगा। https://t.co/l2yZN5TTGF
— Kunwar Fateh Bahadur (@kfbahadur) January 16, 2020
कुंवर फतेह बहादुर सिंह ने कहा कि लोकसभा और राज्य सभा में एक ही समाज (ब्राह्मण) के नेता किस सामाजिक न्याय का प्रतीक है. क्या यह बसपा की सामाजिक परिवर्तन की अवधारणा के अनुरूप है? क्या मान्यवर कांशीराम जी ने इसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए बसपा का गठन किया था? यह बात बहुजन समाज जानना चाह रहा है.
बता दें कि मायावती ने हाल ही में लोकसभा में बसपा के सदन का नेता कुंवर दानिश अली को हटाकर अंबेडकरनगर सीट से सांसद रितेश पांडेय को बनाया है. इस बदलाव पर मायावती ने तर्क दिया था कि सामाजिक सामांजस्य बनाने के लिए यह फैसला लिया गया है. लोकसभा में पार्टी के नेता और उत्तर प्रदेश के राज्य अध्यक्ष भी, एक ही समुदाय के होने के नाते इसमें थोड़ा परिवर्तन किया गया है.
लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदन के नेता ब्राह्मण समुदाय के होने के चलते कुंवर फतेह बहादुर सिंह ने सवाल खड़े किए हैं. ऐसे में देखना है कि मायावती इस सवाल का जवाब देती हैं या फिर फतेह बहादुर सिंह को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाती हैं. हालांकि फतेह बहादुर सिंह बसपा प्रमुख मायावती के काफी करीबी नेता माने जाते हैं.
उत्तर प्रदेश में मायावती की सरकार थी तो कुंवर फतेह बहादुर सिंह प्रमुख सचिव हुआ करते थे. बसपा सरकार में जबरदस्त तूती बोलती थी और बिना उनकी मर्जी के पत्ता भी नहीं हिलता था. 1981 बैच के आईएएस अधिकारी कुंवर फतेह बहादुर 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले नौकरी छोड़कर बसपा का दामन थाम लिया था.