कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भले ही प्रधानमंत्री बनने का दावा खुद अपने मुंह से कर रहे हों, लेकिन उत्तर प्रदेश में उनके सहयोगियों ने कांग्रेस को ही अनाथ बना दिया है. कैराना और नूरपुर उपचुनाव में कांग्रेस बुरी तरह से अलग-थलग पड़ गई है.
कांग्रेस के साथ खड़ी रही आरएलडी ने भी पल्टी मारी और कांग्रेस को अकेला छोड़ न सिर्फ कैराना की सीट अपने लिए हथिया ली बल्कि सपा-बसपा गठबंधन में खुद के लिए जगह भी तलाश ली है.
अब कांग्रेस अकेले बाहर खड़े रहने को मजबूर हो गई और इस उपचुनाव में अलग-थलग पड़ी कांग्रेस पार्टी ने थक हारकर अब कैराना और नूरपुर में कैंडिडेट न उतारने का ऐलान कर दिया. कांग्रेस ने सिर्फ यह कहकर परोक्ष समर्थन दिया कि वह बीजेपी के खिलाफ वोट नहीं बढ़ने देना चाहती.
कांग्रेस कैराना की सीट खुद लड़ना चाहती थी क्योंकि यह कांग्रेस की परंपरागत सीट भी रह चुकी है. यही कांग्रेस के बड़े और विवादास्पद नेता इमरान मसूद राजनैतिक जमीन भी हैं.
कांग्रेस के अलग-थलग पर पड़ने की बानगी भी बहुत रोचक है. कैराना और नूरपुर उपचुनाव में कांग्रेस खुद के लिए लॉबिंग करती रही लेकिन सपा और बसपा ने उसे कोई तवज्जो नहीं दी. समाजवादी पार्टी और बीएसपी के नेताओं ने तो इस मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी से बात तक करने से मना कर दिया.
सूत्रों के मुताबिक समाजवादी पार्टी यहां तक चाहती थी कि कांग्रेस चाहे तो खुद चुनाव लड़कर अपनी हैसियत भी आजमा ले. कांग्रेस पार्टी की दाल जब गठबंधन में नहीं गली तब उसने आरएलडी के नाम पर अपना दांव चला लेकिन यहां आरएलडी ने ही कांग्रेस को ठेंगा दिखा दिया. अजीत सिंह और कांग्रेस साथ-साथ चलते दिखाई दिए लेकिन जैसे ही अजीत सिंह को गठबंधन में जगह मिली उन्होंने भी कांग्रेस से किनारा करने में वक्त नहीं लगाया. कांग्रेस को छोड़कर सपा-बसपा गठबंधन में शामिल हो गए. अब चारों तरफ से हताश-निराश कांग्रेस फिलहाल अपने जख्म को सहला रही है.
यह साफ हो गया है कि तीनों दलों ने अपना गठबंधन कर लिया है. आरएलडी को सीट दे दी है और अब बीजेपी के खिलाफ तीनों दलों का संयुक्त प्रत्याशी चुनाव लड़ेगा तो कांग्रेस के पास कैंडिडेट न देने के अलावा कोई चारा नहीं बचा. बुधवार शाम इमरान मसूद ने कैराना और नूरपुर में कांग्रेस की तरफ से प्रत्याशी ना देने का ऐलान कर दिया. उन्होंने यह भी कहा कि हाईकमान ने सिर्फ इतना कहकर प्रत्याशी नहीं दिया है कि वह विपक्ष का वोट नहीं बढ़ने देना चाहती.
इस पूरे गठबंधन में अलग-थलग पड़ चुकी कांग्रेस के लिए 2019 में भी कोई खास उम्मीद नहीं दिखाई दे रही क्योंकि बीएसपी और समाजवादी पार्टी दोनों ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करने की कोई इच्छा नहीं जताई है. दोनों पार्टियां चाहती हैं कि कांग्रेस पूरे उत्तर प्रदेश में अपने बूते पर चुनाव लड़े जिससे बीजेपी के ही वोट में सेंधमारी हो सके.
वहीं मुलायम सिंह यादव ने भी ऐलान कर रखा है कि कांग्रेस की हैसियत 2 सीट से ज्यादा की नहीं है. ऐसे में बड़े गठबंधन की दुहाई दे रही कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में ही सबसे बड़ा झटका लगा है. अगर कैराना सीट पर नतीजा गठबंधन के पक्ष में आता है तो कांग्रेस के लिए 2019 में उत्तर प्रदेश में किसी गठबंधन में शामिल होना लगभग नामुमकिन हो जाएगा.