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4 दिन बाद भी सैफई महोत्सव में नहीं आए अखिलेश यादव, नाराजगी की अटकलें तेज

बीते 18 सालों में ऐसा कभी नहीं हुआ कि परिवार के अहम सदस्य और समाजवादी सरकार में यूपी के मुख्यमंत्री ने सैफई महोत्सव में चार दिन बीत जाने के बावजूद शिरकत न की हो.

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आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़े सूबे यूपी में दरअसल कितने मुख्यमंत्री हैं ये चर्चा एक बार फिर गर्म हो गई है. वजह है सत्ता में बैठी पार्टी के सबसे ताकतवर नेताओं में आपसी खींचतान. चर्चा है कि सीएम अखिलेश यादव को अपने ही परिवार में वर्चस्व की लड़ाई लड़नी पड़ रही है और शायद यही वजह है कि समाजवादी पार्टी सरकार के इतिहास में पहली बार मुख्यमंत्री ने चार दिन बीत जाने के बावजूद अब तक सैफई महोत्सव का रुख नहीं किया है.

प्रदेश में परिस्थितियां कैसी भी रही हों लेकिन सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के पैतृक गांव में यादव परिवार हर साल सैफई महोत्सव उतने ही धूमधाम से मनाता रहा है. जब ये मौका सत्ता रहते आता है तो इसकी रंगत कुछ और ही होती है. बड़े शहरों और बॉलीवुड के चुनिंदा सितारों की चकाचौंध इस छोटे से गांव में उतर आती है और सैफई नए साल का स्वागत इसी रोशनी में सराबोर होकर करता है.

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कलाकारों ने भी सीएम के ना आने पर किया सवाल
इस साल 26 दिसंबर को शुरू हुए इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की गैरमौजूदगी चर्चा का विषय बनी हुई है. बीते अट्ठारह सालों में ऐसा कभी नहीं हुआ कि परिवार के अहम सदस्य और समाजवादी सरकार में यूपी के मुख्यमंत्री ने सैफई महोत्सव में चार दिन बीत जाने के बावजूद शिरकत न की हो. अब तो पार्टी नेताओं के अलावा कलाकार भी इस पर सवाल कर रहे हैं. कलाकार सुरभी टंडन ने कहा, 'मैं इस महोत्सव में शुरू से आ रही हूं और मुख्यमंत्री की कमी खल रही है. मुख्यमंत्री हमारे पहले कई कार्यक्रमों में रहे हैं लेकिन अब हम उनके घर में कार्यक्रम करने आए हैं तो उनकी कमी खल रही है, यह तो उनका परिवार है लेकिन घर में चार बर्तन होंगे तो खटका-खटकी तो होगी ही.'

तो ये है नाराजगी की वजह?
सीएम अखिलेश यादव के ना आने के पीछे नाराजगी की अटकलें इस चर्चा को और तूल दे रही हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह बताई जा रही है सैफई महोत्सव शुरू होने से ऐन पहले अखिलेश यादव के दो करीबी नेताओं आनंद भदौरिया और सुनील सिंह 'साजन' का पार्टी से बाहर निकाला जाना. दरअसल भदौरिया और साजन, दोनों नेता अखिलेश यादव की उस कोर टीम के सदस्य थे जिन्होंने 2012 चुनावों के समय अखिलेश के चुनाव प्रचार की कमान संभाली थी. अखिलेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद दोनों ही नेताओं को उनकी सीएम से नजदीकी का इनाम भी मिला.

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उस समय लोहिया वाहिनी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे आनंद भदौरिया को जहां जितिन प्रसाद के खिलाफ लोक सभा चुनाव लड़ने का टिकट मिला वहीं सपा की छात्र इकाई- समाजवादी पार्टी छात्र सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे सुनील सिंह को एक कॉर्पोरेशन का अध्यक्ष बना कर मंत्री का दर्जा दिया गया. हालांकि बीते पंचायत चुनावों में पार्टी के खिलाफ काम करने के इल्जाम पर इन दोनों ही नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. सूत्र बताते हैं कि सीएम अखिलेश यादव के पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए भी इस फैसले में उनकी राय नहीं ली गई. ऐसे में यूपी के राजनीतिक हलकों में ये खबर गर्म है कि अपनी नाराजगी दिखाने के लिए सीएम अखिलेश सैफई महोत्सव नहीं पहुंचे. कुछ विपक्षी राजनेता तो इसे मुख्यमंत्री का विद्रोह करार दे रहे हैं.

बीजेपी ने कहा- दाल में कुछ काला है
प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेई ने कहा, 'कुछ ना कुछ दाल में काला तो है. समय आने पर क्लियर भी होगा. लेकिन ये बात ठीक भी है, मुख्यमंत्री का कष्ट है कि सैफई में मेला हो रहा है और प्रदेश की परिस्थितियां अनुकूल नहीं है. मेला स्थगित भी किया जा सकता था. खराब कानून व्यवस्था है, किसान मरा जा रहा है और उधर सैफई में बार बालाओं के डांस में ठुमके लगें. ये शायद अनुचित है.'

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उन्होंने यह भी कहा कि इस नाराजगी का कारण घर में सत्ता का बंटवारा भी है. साढ़े तीन साल बीत गए लेकिन सीएम कुछ भी ख्याति प्राप्त नहीं कर सके. वो घरवालों के हस्तक्षेप के कारण कुछ नहीं कर सके. अब डेढ़ साल बचा है. मरता क्या न करता इसलिए मुख्यमंत्री ने विद्रोह किया है.

सत्ता में इस दखल से भी हैं नाराज?
दरअसल ये बात किसी से छिपी नहीं है कि समाजवादी पार्टी में सुप्रीमो मुलायम सिंह और सीएम अखिलेश यादव के अलावा भी कई पावर सेंटर हैं. इनमें खासतौर पर सीएम अखिलेश के चाचाओं राम गोपाल यादव और शिवपाल सिंह का नाम लिया जाता है. चूंकि सीएम के करीबियों को पार्टी से निकाले जाने की सूचना प्रदेश सरकार में मंत्री शिवपाल यादव के जरिए जारी की गई इसलिए लोगों का मानना है कि सीएम अखिलेश चाचा की दखलअंदाजी और ऐसे फैसलों में राय ना लिए जाने से सख्त नाराज हैं. बहरहाल हकीकत कुछ भी हो लेकिन इस चर्चा ने यूपी में विपक्ष की धार जरूर पैनी कर दी है.

बसपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा, 'समाजवादी पार्टी अंतर्द्वंद्व का शिकार हो चुकी है. आपसी कलह में ही इसका बंटाधार होने जा रहा है और जैसा कि मैंने बहुत पहले ही कहा था कि समाजवादी पार्टी सरकार में एक नहीं चार-चार मुख्यमंत्री हैं जो आज सीधे स्पष्ट होता नजर आ रहा है.'

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'जनता सिखाएगी सबक'
वहीं कांग्रेस के प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह ने कहा, 'जो खबरें आ रही हैं और जो एक्शन दिख रहे हैं उससे ये लगता है कि समाजवादी पार्टी में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है. वर्चस्व की लड़ाई चल रही है. जब अगला चुनाव आएगा तो इनकी पार्टी भले ही अंदर से मैनेज कर ले लेकिन जनता इनको बख्शने वाली नहीं है. इनकी अंदरूनी फाइटिंग ये नियंत्रित कर सकते हैं लेकिन जनता ने जो इन्हें सबक सिखाने की ठान ली है उसको ये नियंत्रित नहीं कर पाएंगे. बहुत बुरे हालात में पहुंचा दिया है उत्तर प्रदेश को इस सरकार ने.'

विपक्ष के इन आरोपों का जवाब फिलहाल सीएम अखिलेश यादव ने नहीं दिया है. हालांकि सैफई महोत्सव के चौथे दिन भी कार्यक्रम में उनकी गैरमौजूदगी लगातार लोगों को खल रही है. ये बात अलग है कि पार्टी के बड़े नेताओं ने इन अटकलों को सिरे से दरकिनार कर उनके ना आ पाने के पीछे उनकी व्यस्तता को वजह बताया है.

पार्टी नेताओं ने खारिज की अटकलें
समाजवादी पार्टी के महासचिव रामगोपाल यादव ने तमाम अटकलों को दरकिनार करते हुए कहा कि ऐसी कोई बात नहीं है. अखिलेश काम में व्यस्त हैं. बाकी लोग आए हैं. वहीं धर्मेंद्र यादव ने कहा, 'अखिलेश यादव प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं. उन पर जिम्मेदारियां हैं. अभी 17 दिन प्रोग्राम चलेगा. जब वक्त मिलेगा वह आ जाएंगे.'

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