उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चार साल का सफर तय लिया है. योगी ने अपने कार्यकाल में सूबे को दंगा मुक्त रखने के साथ-साथ यूपी को बीमारू राज्य से निकालकर आधुनिक प्रदेश बनाने की इबारत लिखी है.इतना ही नहीं कोराना काल में जिस मुस्तैदी के साथ वे इस समस्या से निपटे वह भी मिसाल बन गया. लॉकडाउन में दूसरे राज्यों से घर लौटे लोगों को स्थानीय स्तर पर रोजगार दिलाना उनकी बड़ी उपलब्धियों में से एक है. हालांकि, अब उनके आगे की सियासी चुनौतियों और मुश्किलों भरी है. यूपी में अगले साल 2022 का चुनाव योगी के कामकाज और चेहरे पर लड़ा जाना है, जो उनके लिए सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा है.
देश में यूपी दूसरे नंबर की इकोनॉमी वाला राज्य
देश में एक समय उत्तर प्रदेश की पहचान एक बीमारू राज्य के तौर पर थी, लेकिन पिछला चार सालों में सूबे की आर्थिक स्थिति में काफी सुधार आया है. 2017 से पहले प्रदेश सरकार का बजट दो लाख करोड़ तक होता था, जो साल 2021 में बढ़कर साढ़े 5 लाख करोड़ पहुंच गया है. उत्तर प्रदेश में चार साल पहले वैट 49 हजार करोड़ मिलता था, जो अब हजार करोड़ बढ़ गया. एक्साइज 12 हजार करोड़ से बढ़कर 36 हजार करोड़ पहुंच गया है.
यूपी 2015-16 में 10.90 लाख करोड़ की जीडीपी वाला राज्य था, लेकिन अब 21.73 लाख करोड़ की जीडीपी के साथ देश मे दूसरे नम्बर की अर्थव्यवस्था वाला राज्य बन कर उभरा है. 2017 में यूपी इकोनॉमी के मामले में पांचवे नंबर वाला राज्य था, लेकिन अब तमिलनाडु, गुजरात और कर्नाटक जैसे राज्य को पीछे छोड़ते हुए दूसरे नंबर पहुंच गया है. चार साल के भीतर 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' की राष्ट्रीय रैंकिंग में 12 पायदान ऊपर उठकर नंबर दो पर आना योगी सरकार के लिए बड़ी उपलब्धियों के तौर पर है. ऐसे ही 2015-16 में प्रति व्यक्ति आय मात्र 47,116 रुपये थी, जबकि 2021 में बढ़कर 94,495 रुपये है.
कोरोना से निपटने में अव्वल रही योगी सरकार
उत्तर प्रदेश देश में सबसे बड़ी जनसंख्या वाला राज्य है. बावजूद इसके कोरोना संक्रमण के दौरान योगी सरकार ने बड़ी मुस्तैदी के साथ इससे निपटा है और उसे नियंत्रित किया है. सीएम योगी ने कोरोना को सूबे में फैलने से रोकने के लिए टीम-11 बनाकर पहले कोविड केयर फंड का ऐलान किया था. इस फंड का उपयोग मेडिकल कॉलेजों में टेस्टिंग लैब की संख्या बढ़ाने, क्वारंटाइन वॉर्ड, आइसोलेशन वॉर्ड, वेंटिलेटर की व्यवस्था करने के साथ एन-95 मास्क, पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट (पीपीई) और सैनिटाइजर बनाने के कामों किया गया. इसका नतीजा था कि दूसरे राज्यों की तुलना में यूपी में न तो कोरोना से बहुत लोगों की मौत हुई और न ही बहुत ज्यादा फैला. इसे यूपी सरकार अपनी उपलब्धियों में से एक मानती हैं, क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इसके लिए सीएम योगी आदित्यनाथ की तारीफ कर चुके हैं.
कोरोना संकट के दौरान यूपी सरकार इससे निपटी ही नहीं बल्कि 'चुनौतियों में अवसर तलाशे' हैं और लॉकडाउन में लौटे लोगों की स्क्रीनिंग कर उन्हें स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध कराया गया है. यूपी के औद्योगिक विकास मंत्री सतीश महाना ने बताया था कि यूपी में 45,000 करोड़ रुपये का नया निवेश प्रस्ताव आया है, जिसमें 40 से अधिक नए निवेश हैं. इनमें जापान, अमेरिका (यूएस), यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, जर्मनी, दक्षिण कोरिया आदि 10 देशों की कंपनियों से लगभग 45,000 करोड़ रुपये के निवेश-प्रस्ताव मिले हैं.
अपराधियों पर सख्त और दंगा मुक्त यूपी
योगी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक यूपी को दंगा मुक्त बनाने का भी है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद लगातार कह रहे हैं कि हमारी उत्तर प्रदेश की सरकार को 4 साल हो गए हैं, लेकिन एक भी दंगा इन चार सालों के दौरान नहीं हुआ जबकि आप सब देख चुके हैं कभी ये राज्य दंगों की आग में जलता था. बता दें कि 2017 के पहले और अखिलेश सरकार में मुजफ्फरनगर से लेकर प्रतापगढ़ और मथुरा सहित कई जगह सांप्रदायिक दंगे हुए थे. मुजफ्फरनगर में बड़ी तादाद में लोगों अपने गांव और घरों को छोड़कर दूसरी जगह ठिकाना लिया था.
वहीं, सूबे की कानून व्यवस्था को लेकर भी चुस्त और दुरुस्त होने का सरकार दावा कर रही है. सीएम योगी खुद दावा करते हैं कि पिछले 4 सालों से यूपी में अपहरण पूरी तरह से ठप हो गया है. उनका दावा है कि अगर आपसी रंजिश को छोड़ दें तो संगठित अपराध न्यूनतम स्तर पर है. यूपी की कानून व्यवस्था देश के अंदर बेहतर व्यवस्था में से एक है. इसके साथ सूबे बड़े अपराधियों के एनकाउंटर हुए हैं तो कई बाहुबली नेताओं को मकान, होटल और बिल्डिंगों को पूरी तरह से ढहा दिए गए हैं.
आधुनिक यूपी: एक्सप्रेस-वे से बेहतर कनेक्टिवी तक
उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा एयरपोर्ट वाला राज्य बन गया है. सूबे में कुल 7 एयरपोर्ट हो गए हैं, जहां से उड़ाने भी शुरू हैं. इसके अलावा यूपी में पूर्वांचल एक्सप्रेसवे, बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे, गंगा एक्सप्रेस वे, गोरखपुर लिंक एक्सप्रेस वे और बलिया लिंक एक्सप्रेसवे, ऐसी आधुनिक और चौड़ी सड़कें बनाई जा रही हैं. इसके अलावा यमुना और लखनऊ एक्सप्रेस-वे से पूर्वांचल और बुंदेलखंड हाईवे को भी जोड़ने प्लानिंग है. पीएम मोदी ने इसे आधुनिक यूपी के आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर की शुरुआत बताया था. एयर और रोड कनेक्टिविटी के अलावा रेल कनेक्टिविटी भी आधुनिक हो रही है.
इसके अलावा योगी सरकार ने चार सालों में आगरा के अलावा अयोध्या, काशी, चित्रकूट, मथुरा, कुशीनगर सहित तमाम शहरों को पर्यटन के तौर पर उभारने कोशिश की है, जहां तेजी से विकास कार्य किए जाए रहे हैं. अयोध्या और लखनऊ में फिल्म की शुटिंग भी शुरू हो गई हैं. इसके अलावा ग्रेटर नोएडा में फिल्म सिटी भी बनाने का काम तेजी से चल रहा है, जिस
योगी सरकार अपनी बड़ी उपलब्धियों के तौर पर मानती है.
योगी सरकार के सामने चुनौतियां
योगी आदित्यनाथ सरकार ने भले ही चार साल ही आसानी से पूरा कर लिया हो, लेकिन आगे की सियासी राह चुनौतियों भरी हैं. इसमें योगी के सामने सबसे बड़ी चुनौती सबका स्वीकार्य नेता बनने और उनका भरोसा जीतने की है. इसके अलावा अपने हिंदुत्व के रुख को बरकरार रखने के साथ-साथ विकास के पैमाने पर भी खरा उतरना होगा. सूबे में 2022 का विधानसभा चुनाव योगी के कामकाज और चेहरे पर होना है, ऐसे में उनकी आगे की राह काफी मुश्किलों भरी है.
2022 का विधानसभा चुनाव अग्निपरीक्षा
योगी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती अगले साल शुरू में ही होने वाले 2022 का विधानसभा चुनाव है. 2014-2019 लोकसभा और 2017 का विधानसभा चुनाव पूरी तरह से पीएम मोदी के नाम और केंद्र सरकार के काम पर लड़ा गया था, लेकिन 2022 का विधानसभा चुनाव योगी के नाम और काम पर लड़ा जाना है. 14 साल के वनवास के बाद बीजेपी 2017 के विधानसभा चुनाव में 311 सीटें जीतकर सत्ता में वापसी की थी जबकि एनडीए को 325 सीटें मिली थी. ऐसे में सीएम योगी के लिए 2022 के चुनाव में पिछले चुनाव के रिकॉर्ड को बरकरार रखने की चुनौती होगी, क्योंकि अभी तक उनके नाम पर कोई भी चुनाव यूपी में नहीं लड़ा गया है.
सर्वसमाज के नेता की छवि बनाने की चुनौती
उत्तर प्रदेश का चुनाव अभी जाति के सियासी बिसात पर लड़ा जाता है और चार साल के बाद भी सीएम योगी आदित्यनाथ सर्वसमाज में मजबूत पकड़ नहीं बना सके हैं. योगी भले ही हिंदुत्ववादी नेता की छवि के तौर पर अपने आपको स्थापित कर ले गए हैं, लेकिन अब भी उनके विरोधी उन्हें जाति विशेष का नेता मानते हैं. ऐसे में योगी के सामने सबसे बड़ी चुनौती सबका स्वीकार्य नेता बनने और उनका भरोसा जीतने की है. अल्पसंख्यक समुदाय के बीच योगी की स्वीकार्यता अभी तक नहीं हो पाई है. इसके अलावा जिस तरह से उन्होंने प्रशासकीय फैसले लिए हैं उसे अल्पसंख्यक समुदाय उनसे और भी दूर हुआ है. ऐसे में योगी के सामने बहुसंख्यक समुदाय के साथ-साथ अल्पसंख्यक समुदाय के विश्वास को जीतने की बड़ी चुनौती है.
किसान की नाराजगी को दूर करना बड़ी चुनौती
केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ साढ़े तीन महीन से दिल्ली-यूपी बार्डर पर किसान आंदोलन चल रहे हैं. पश्चिम यूपी के तमाम जिलों में किसान बीजेपी से नाराज है और जिले स्तर पर सूबे भर में किसान पंचायत हो रही है. योगी सरकार के लिए चिंता का सबब बनती जा रही है, क्योंकि किसान आंदोलन में बड़ी तादाद जाट समुदाय की है. 2017 के विधानसभा चुनाव में पश्चिम यूपी की 135 सीटों में से 109 सीटें बीजेपी को मिली थी, लेकिन इस बार जिस तरह से किसान सड़क पर है और अपने गांव में बीजेपी नेताओं की एंट्री पर बैन कर रखा है, उससे सरकार को पार पाना होगा. इसके अलावा पूर्वांचल में हर पांच साल में समीकरण बदल जाते हैं और 2017 के चुनाव में इस क्षेत्र के 10 जिले ऐसे थे, जहां बीजेपी विपक्षी दलों से पीछे रह गई थी.
स्थानीय स्तर की समस्या से निजात और लोगों से संवाद
यूपी में लोगों की सबसे बड़ी समस्या उनके आसपास की है. आम तौर पर एक शिकायत रहती है कि ब्लॉक और तहसील में समस्याओं की सुनवाई नहीं होती है. समस्या के समाधान के लिए बार-बार दौड़ लगानी पड़ती है. इसके अलावा बीजेपी और विधायकों की भी समस्या सुनी नहीं जा रही है जबकि विधानसभा चुनाव में उन्हीं के सहारे मैदान में उतरना है. ऐसे में जनता के साथ-साथ अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ समंजस्य बनाने की चुनौती होगी. योगी सरकार चार साल के बाद भी जनता के साथ सीधा संवाद स्थापित नहीं कर पाई है जबकि 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि योगी की पूर्ववर्ती सपा सरकार ने भी पांच साल में काम किया था, लेकिन जनता से संवाद स्थापित नहीं कर पाने के चलते उन्हें सत्ता गंवानी पड़ी थी. अब यही चुनौती अब योगी सरकार के सामने है. ऐसे में देखना है कि कैसे स्थानीय समस्याओं का हल करते हैं और अपने नेताओं को कैसे लेकर चलते हैं.