लखनऊ में धर्मांतरण के मामले में पकड़े गए आरोपियों ने साइन लैंग्वेज कोड वर्ड के द्वारा बातचीत करने का तरीका अपनाया था, जिसका एटीएस को पता चला है. एटीएस ने बातचीत के कोड को डिकोड कर लिया है. जबकि एक कोड वर्ड को डिकोड करना बाकी है, जिसको आरोपी मूक बधिर बच्चों के लिए इस्तेमाल कर रहे थे.
एटीएस आईजी जीके गोस्वामी के मुताबिक, जिस तरीके से धर्मांतरण के मामले में मूक-बधिर बच्चों के लिए साइन लैंग्वेज का इस्तेमाल किया जा रहा था इसके लिए कुछ कोड तैयार किए गए थे, जिनसे बातचीत की जाती थी.
एटीएस को 7 कोड वर्ड मिले हैं, जिसमें से 6 को डिकोड करके उसका मतलब पता कर लिया गया है. लेकिन एक कोडवर्ड का मतलब अभी पता नहीं चला है.
'रिवर्ट बैक टू इस्लाम प्रोग्राम' यानी धर्म को परिवर्तन करना. डेफ सोसाइटी की टीचर यही काम करती थी और इस कोड के जरिये बातचीत करती थी. छात्रों को इसी कोड के साथ बतचीत कर धर्मांतरण की तरफ ले जाती थी.
'मुतक्की' इस शब्द का मतलब एटीएस को पूछताछ में पता चला है कि, हक और सच को तलाश करना है. इसको बार-बार बोलकर बच्चों और अन्य में बातचीत के लिए प्रयोग किया जाता था.
'सलात' यह शब्द नमाज के लिए कहा जाता था. इस्लाम मे जो धर्मांतरण करता तो उसको यह जिम्मेदारी दी जाती थी. यह शब्द बहुत बार बोला जाता था जिससे आम बोलचाल में भी बोल जा सके.
'रहमत' यानी कि बाहर विदेशों से आने वाला फंड इसी नाम के कोड से बातचीत किया जाता था. इस वजह से किसी को शक नही होता था.
'अल्लाह के बंदे' यानी कोई यूट्यूब या सोशल मीडिया से मूक बधिरों के लिए डाले वीडियो लाइक करता था.
मोबाइल नंबर और जन्मतिथि, यह कोडवर्ड में धर्म परिवर्तन करवाने का नाम था. एक आईडी के रूप में इसको बनाया जाता था.
'कौम का कलंक' नाम से एक कोडवर्ड मिला है, जिसे डिकोड नहीं किया जा सका है. इसकी जांच की जा रही है. एटीएस आईजी के मुताबिक, धर्मांतरण मामले में गिरफ्तार किए गए आरोपियों ने यह बात बताई है कि साईन लैंग्वेज में बात करने के लिए कोडवर्ड का प्रयोग किया जाता रहा है. 6 कोड वर्ड डिकोड कर लिए गए हैं.