
यूपी की राजनीति में बाहुबलियों के दखल को नकारा नहीं जा सकता. हर राजनीतिक पार्टी में आपको कुछ ऐसे नाम मिल जाएंगे जिनका अपना वर्चस्व रहा हो, जिनका अपना लंबा-चौड़ा आपराधिक रिकॉर्ड भी रहा हो. प्रदेश में चाहे जिस भी दल की सरकार रही हो इन बाहुबलियों की पैठ हर सरकार में रही है.
यूपी में एक बार फिर विधानसभा चुनावों का बिगुल बज चुका है. जिसके बाद प्रदेश के तमाम बाहुबली नेता अपनी-अपनी गोटी सेट करने में लग गए हैं. लेकिन इस बार कुछ ऐसे भी बाहुबली नेता हैं जिनका सियासी सफर अब थम सा गया है. जी हां हम बात कर रहे हैं उन नेताओं की जिन्हें किसी न किसी मामले में कोर्ट द्वारा सजा सुना दी गई है.
कोर्ट द्वारा सजा सुनाने के बाद इन नेताओं के लिए चुनावी मैदान में ताल ठोकना अब असंभव हो चुका है क्योंकि सजायाफ्ता होने के साथ ही इनकी चुनाव लड़ने की योग्यता ही समाप्त हो गई. आज हम ऐसे ही कुछ नामी चेहरों की चर्चा करने जा रहे हैं...
गायत्री प्रजापति
सबसे पहले चर्चा अखिलेश सरकार में खनन मंत्री रहे गायत्री प्रजापति के कारनामे की. पिछले कुछ सालों में यूपी की राजनीति में गायत्री प्रजापति का नाम काफी उछला. समाजवादी पार्टी की सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे गायत्री प्रसाद प्रजापति को गैंगरेप के मामले में 10 नवंबर 2021 को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. बता दें कि 10 नवंबर 2021 को पूर्व मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति, अशोक तिवारी एवं आशीष कुमार को दोषी करार दिया गया था. गायत्री प्रजापति के केस को लेकर यूपी पुलिस की भी काफी किरकिरी हुई थी और सुप्रीम कोर्ट की फटकार खानी पड़ी थी. जिसके बाद ही इस मामले में गायत्री के खिलाफ केस दर्ज हो सका था.
खब्बू तिवारी
इस लिस्ट में अगला नाम गोसाईगंज से बीजेपी विधायक इंद्र प्रताप तिवारी उर्फ खब्बू तिवारी का है. जिनकी विधायिकी कोर्ट के फैसले के बाद निरस्त हो गई थी. बाहुबली नेता और यूपी के प्रमुख ब्राह्मण नेताओं में से एक खब्बू तिवारी को 18 अक्टूबर 2021 को एमपी-एमएलए कोर्ट ने 5 साल की सजा सुनाई थी. खब्बू तिवारी पर आरोप था कि बीएससी द्वितीय वर्ष में एडमिशन के लिए उन्होंने फर्जी मार्कशीट का सहारा लिया था. यह मामला 1992 का था. साकेत महाविद्यालय के प्राचार्य ने खब्बू तिवारी के खिलाफ फर्जी मार्कशीट के आधार पर प्रवेश लेने के संबध में एक प्राथमिकी राम जन्मभूमि थाने पर दर्ज करवाई थी. इसी केस में करीब 29 साल बाद कोर्ट ने सजा सुनाई. खब्बू ने कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट में भी अपील की थी लेकिन वहां से भी उनको निराशा ही हाथ लगी.
कुलदीप सिंह सेंगर
लंबे समय तक सुर्खियों में रहने वाला उन्नाव रेप केस कुलदीप सिंह सेंगर का राजनीतिक सूरज अस्त करने के बाद ही थमा. पहले पार्टी ने निष्काषित किया उसके बाद कोर्ट ने भारी सजा सुनाई. बता दें कि उन्नाव रेप कांड में दिल्ली की तीस हजारी अदालत ने 20 दिसंबर 2019 को बीजेपी के विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. बता दें कि सेंगर को अपहरण और रेप का दोषी पाया गया था. सजा पर बहस के दौरान सीबीआई ने कोर्ट से अधिकतम सजा की मांग की थी. 16 दिसंबर को दिल्ली की तीस हजारी अदालत ने सेंगर को धारा 376 और पॉक्सो के सेक्शन 6 के तहत दोषी ठहराया था. जबकि 17 दिसंबर को सजा पर बहस की गई थी.
करवारिया बंधु
इसी तरह प्रयागराज में 1996 में हुए जवाहर पंडित हत्याकांड में सांसद पूर्व कपिल मुनि करवरिया, उनके भाइयों पूर्व विधायक उदयभान व पूर्व एमएलसी सूरजभान, फुफेरे भाई रामचंद्र त्रिपाठी उर्फ कल्लू को आजीवन कारावास की सजा हुई थी. इसके अलावा सभी पर कुल 7.20 लाख रुपये जुर्माना भी लगाया गया था. बता दें कि 13 अगस्त 1996 की शाम प्रयागराज (तब इलाहाबाद) के सिविल लाइंस एरिया में जवाहर पंडित की अत्याधुनिक असलहों से गोलियां चलाकर हत्या कर दी गई थी. इस मामले में पीड़ित पक्ष को करीब 23 साल इंतजार करना पड़ा. 4 नवंबर 2019 को करवारिया बंधुओं को सजा सुनाई गई थी.
अशोक सिंह चंदेल
हमीरपुर जिले में करीब चार दशक तक सियासत करने वाले बाहुबली नेता अशोक सिंह चंदेल का भी राजनीतिक सफर कोर्ट के आदेश के बाद थम गया. 19 अप्रैल 2019 को इलाहाबाद हाई कोर्ट की डबल बेंच ने पूर्व विधायक अशोक सिंह चंदेल समेत नौ लोगों को सामूहिक हत्याकांड के एक मामले में दोषी मानते हुये उम्रकैद की सजा सुनाई थी. उस समय अशोक सिंह चंदेल हमीरपुर सदर के विधायक थे. सजा के बाद बीजेपी ने उनसे रिश्ते तोड़ लिए थे. बता दें कि 26 जनवरी 1997 की शाम हमीरपुर शहर के सुभाष बाजार में सामूहिक हत्याकांड हुआ था जिसमें बीजेपी नेता राजीव शुक्ला के सगे भाई राजेश शुक्ला, राकेश शुक्ला व भतीजा गुड्डा, श्रीकांत पाण्डेय व वेदप्रकाश समेत पांच लोगों की मौत हो गई थी जबकि राजीव शुक्ला औ रविकांत पांडेय गोली लगने से घायल हो गए थे.
अमरमणि त्रिपाठी
अंत में चर्चा उस नाम की जिसके बिना यह लिस्ट अधूरी सी लगती. जी हां, बहुचर्चित मधुमिता हत्याकांड वाले अमरमणि त्रिपाठी. अमरमणि त्रिपाठी का रसूख हर दल की सरकार में रहा. कांग्रेस, सपा, बसपा, बीजेपी हर दल में उनकी पैठ थी. अमरमणि लगातार 6 बार विधायक रहे यही नहीं वो जेल से चुनाव जीतने वाले पहले नेताओं में से एक थे. लेकिन लिस्ट के बाकी लोगों की तरह ही कोर्ट के फैसले ने उनकी तकदीर बदल दी. वीर रस की कवितायें सुनाने वाली मशहूर कवयित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या के मामले में कोर्ट ने 24 अक्टूबर 2007 को अमरमणि त्रिपाठी और मधुमणि त्रिपाठी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. जिसके बाद से दोनों जेल में हैं. बता दें कि 9 मई 2003 को लखनऊ की पेपरमिल कॉलोनी में कवियत्री मधुमिता शुक्ला की हत्या कर दी गई थी. हत्या के वक्त मधुमिता प्रेग्नेंट थीं और डीएनए रिपोर्ट में सामने आया था कि उनके पेट में पल रहा बच्चा अमरमणि का ही था.
सुप्रीम कोर्ट ने दिया था ये फैसला
अंत में आपको यह भी बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई 2013 को लिली थामस बनाम भारत संघ मामले की सुनवाई करते हुए अपना फैसला सुनाया था कि अगर कोई विधायक, सांसद या फिर विधान परिषद सदस्य किसी भी अपराध में दोषी पाया जाता है और इसके चलते उसे कम से कम दो साल की सजा सुनाई जाती है तो ऐसी परिस्थिति वह तुरंत अयोग्य हो जाएगा यानी जनप्रतिनिधि नहीं रहेगा.