कोविड-19 के कमजोर पड़ने से जब आम जनजीवन पटरी पर लौट रहा है, साथ ही त्योहारों की गहमागहमी भी है. तब यूपी में गहराता बिजली संकट नई चुनौती के रूप में सामने है. इस समय विद्युत उत्पादन में अग्रणी माने जाने वाली रायबरेली के ऊंचाहार में स्थित विद्युत तापीय परियोजना ( एनटीपीसी) पर छाया कोयले का संकट गहराता जा रहा है.
यूं तो बिजली व्यवस्था का दारोमदार उत्तर प्रदेश के अपने चार बिजली प्लांट के अलावा निजी क्षेत्र के आठ और एनटीपीसी के करीब डेढ़ दर्जन प्लांट से मिलने वाली बिजली पर है. कोयले की कमी से लगभग 6873 मेगावाट क्षमता की इकाइयां या तो बंद हुई हैं या उनके उत्पादन में कमी करनी पड़ी है. इससे प्रदेश में बिजली की उपलब्धता एका-एक घट गई है.
रायबरेली में बिजली संकट, जानें पूरी समस्या
रायबरेली के ऊंचाहार में स्थित विद्युत तापीय परियोजना 1550 मेगा वाट विद्युत उत्पादन क्षमता वाली है. इसमें 1 से लेकर 5 नंबर की इकाई तक 210 - 210 मेगा वाट और छठी इकाई 500 मेगावाट विद्युत उत्पादन क्षमता वाली है .कोयले की कमी के चलते दो इकाइयों को बंद करना पड़ा.
शेष इकाइयों को उनके उत्पादन क्षमता के आधे घर पर संचालित कर 779 मेगावाट विद्युत उत्पादन किया जा रहा है. लेकिन लगातार कोयले का संकट जिस तरीके बना हुआ है. अगर ऐसे ही रहा तो फिर एक इकाई से लेकर छठी इकाई तक सभी प्लांट बंद हो जाएंगे.
लॉकडाउन खुलने और अर्थव्यवस्था में सुधार होते ही देश में सभी क्षेत्रों में उत्पादन बढ़ा है. जिससे बिजली की मांग तेजी से बढ़ी है. सितंबर में अधिक बारिश होने से खदानों में पानी भरने के कारण भी कोयले का उत्पादन कम हुआ है. मानसून से पहले कोयले का पर्याप्त स्टाक भी नहीं किया गया था. शायद यही वजह है कि उत्तर प्रदेश में योगी सरकार लगातार बिजली संकट के घेरे में है.
किसान परेशान, फसलों को खतरा
अब बिजली ना आने की वजह से किसानों की परेशानी काफी बढ़ गई है. ज्यादा पानी की खपत वाली धान की फसल होने की वजह से किसानों का कहना है, अगर आपूर्ति की स्थिति ठीक नहीं हुई तो हम धान की फसल को उखाड़ने के लिए मजबूर हो जाएंगे.
वहीं दूसरी तरफ रात भर बिजली की कटौती होने की वजह से बच्चे घरों पर ना तो पढ़ाई कर पा रहे हैं. और ना ही रात में सो पा रहे हैं, जिसकी वजह से बच्चों की दिनचर्या पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है. साथ ही इलेक्ट्रिकल मैकेनिक और छोटे कामगारों का कहना है, अगर बिजली की स्थिति यही रही तो उन्हें अपनी दुकानें, सस्थानों को बंद कर कोई दूसरा रोजगार खोजना होगा.
बिजली नहीं मिलने के कारण धान सूख रहा है .किस तरह सींचे और कैसे बिल दें. लड़कों की पढ़ाई भी रुक रही है, सारी फसल सूख गई है. सारी फसल जानवरों को खिला दें क्या .रात में घंटे भर के लिए बिजली आती है जैसे ही पानी खेत में पहुंचता है बिजली चली जाती है. बहुत समस्या है, डीजल भी बहुत महंगा है, कैसे करें और कहां से बिल दें.
आदिलाबाद ग्राम सभा के रहने वाले हंसराज कहते हैं कि बिजली ना आने की वजह खेत सूखे जा रहे हैं. उन्होंने अपनी बिजली का स्टार्टर चेक करते हुए कहा कहां बिजली है .तभी आधे घंटे तो कभी 1 घंटे रात में आती है. फसल सूख रही है. सरकार जो ना करें वही थोड़ा है. ऐसे और भी कई किसान हैं जो अभी बिजली संकट से जूझ रहे हैं. जनरल स्टोर में काम करने वाले मुकेश कुमार ने भी अपनी समस्या विस्तार से बताई है. उनकी नजरों में सरकार कोई सुध नहीं ले रही है.
सरकार पर लग रहा वादाखिलाफी का आरोप
वे कहते हैं कि कुछ दिनों पहले दुकान खोलने के लिए बैंक से कर्ज लिए थे, लेकिन अब बिजली की बहुत बड़ी समस्या है. शाम को सिर्फ आधे घंटे के लिए बिजली नसीब हो रही है. यहां हमारी कोई सुनवाई नहीं हो रही. वहीं सीतारामपुर के विजय कुमार ने तल्ख अंदाज में कह दिया है कि बिजली बिल्कुल बेकार है, आती ही नहीं है.
आज 3 हफ्ते बीत चुके हैं बिजली का कहीं पता नहीं. पूरी फसल सूख रही है. जब अधिकारियों के पास जाओ तो कहते हैं कि आएगी लेकिन बिजली आ नहीं रही. फसल नष्ट हो चुकी है, सब उखाड़ देंगे. ये कैसी निकम्मी सरकार है जो सिर्फ बिजली देने का वादा करती है, लेकिन देती कुछ नहीं.
अब ऐसा हाल सिर्फ किसानों का नहीं है. इलेक्ट्रिकल बिल्डिंग मकैनिक से लेकर एक बस चालक तक, सभी को बिजली की दरकार है. सभी की अपनी जरूरतें हैं, लेकिन अभी के लिए वे इसी जरूरत को पूरा नहीं कर पा रहे हैं. किसी को खाने की दिक्कत होने लगी है तो किसी के बच्चे लंबे समय से पढ़ नहीं पा रहे हैं.