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UP के गजब अफसर, 4 साल लापता रहकर लौटे तो मिली अच्छी पोस्टिंग

उत्तर प्रदेश के गृह विभाग के सूत्रों के मुताबिक दावा शेरपा ने वीआरएस का आवेदन दिया और वह बीजेपी की राजनीति करने वापस दार्जिलिंग चले गए, लेकिन 2009 में उन्हें टिकट नहीं मिला. उसके बाद अखिल भारतीय गोरखा लैंड लीग में शामिल हुए और प्रदेश की राजनीति करने लगे.

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यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ

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उत्तर प्रदेश में अफसरशाही की मनमानी और अफसरों के सर्विस कंडक्ट, योगी सरकार के लिए सर दर्द बने हुए हैं. 4 साल तक नौकरी से गायब रहने वाले IPS अधिकारी को जब योगी सरकार ने गोरखपुर का एडीजी बनाया तो अफसरशाही के कार्यशैली को लेकर सवाल होने शुरू हो गए.

91 बैच के आईपीएस दावा शेरपा 2008 से 2012 तक सरकार से गायब रहे. पता यह चला कि वो राजनीति में किस्मत आजमाने के लिए अपने गृह जिले दार्जिलिंग जा चुके हैं, जहां से वह बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते हैं. उत्तर प्रदेश के गृह विभाग के सूत्रों के मुताबिक दावा शेरपा ने वीआरएस का आवेदन दिया और वह बीजेपी की राजनीति करने वापस दार्जिलिंग चले गए, लेकिन 2009 में उन्हें टिकट नहीं मिला. उसके बाद अखिल भारतीय गोरखा लैंड लीग में शामिल हुए और प्रदेश की राजनीति करने लगे.

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2009 मे महकमे में हंगामा होने पर उन्होंने अपना इस्तीफा दिया था, लेकिन उनका इस्तीफा मंजूर नहीं हुआ, ना ही उनका वीआरएस मंजूर हुआ. 2012 तक राजनीति में उनकी दाल नहीं गली. जब वह वापस नौकरशाही में आए तो प्रदेश की सरकार ने उन्हें डीआईजी के रूप में ज्वाइन कराया. फिर अखिलेश सरकार में प्रमोशन पाकर आईजी और फिर एडीजी भी बने. अब योगी सरकार ने उन्हे पोस्टिंग देते हुए गोरखपुर का एडीजी बनाया है.

इस मामले में बीजेपी प्रवक्ता मनीष शुक्ला ने कहा कि देखिए जब दावा शेरपा नौकरी छोड़कर गए थे तब केंद्र में यूपीए की सरकार थी. जब लौटे तब भी केंद्र में यूपीए की सरकार थी और राज्य में अखिलेश की सरकार थी. इस्तीफा दिया तो क्यों नहीं मंजूर हुआ. वीआरएस देने पर दोबारा कैसे ज्वाइनिंग हुई. यह तमाम बातें यही दोनों लोग बता सकते हैं. रही बात हमारी तो हमारी सरकार ने सिर्फ उनकी पोस्टिंग की है. 2004 से 2008 तक दावा शेरपा कहां थे, यह बेहतर पुरानी सरकार बता सकती है. लेकिन इतना जरूर कह सकते हैं कि मामला संज्ञान में आने पर सरकार इसकी जांच जरूर करेंगी.

दावा शेरपा का मामला भले ही अपने आप में इकलौता मामला हो, लेकिन पिछले कुछ दिनों में कई दूसरे अफसरों ने सोशल मीडिया के जरिए सरकार की नींद हराम कर दी है. बरेली के डीएम आर विक्रम सिंह की एक पोस्ट से हंगामा मच गया था जब उन्होंने कासगंज हिंसा के बाद Facebook पोस्ट पर तिरंगा यात्रा को लेकर टिप्पणी की थी.

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सहारनपुर की डिप्टी डायरेक्टर सांख्यिकी रश्मि के पोस्ट ने और हंगामा मचाया जब उन्होंने अपनी पोस्ट पर भी तिरंगा यात्रा के बारे में लिखा था. इन अधिकारियों के पोस्ट से सरकार की किरकिरी हुई. हालांकि दोनों अधिकारियों ने अपने पोस्ट हटा लिए लेकिन सरकार की तरफ से उन्हें नोटिस थमा दिया गया है. विपक्ष कह रहा है इन अधिकारियों ने कोई गलती नहीं की की है. गलती सरकार की है जो प्रशासन का सांप्रदायीकरण कर रही है.

ताजा मामला अमेठी के एक और पीसीएस अधिकारी का है जिसमें उन्होंने योगी सरकार में हो रहे लंबी-लंबी मीटिंग के बारे में फेसबुक पोस्ट लिखा है. जिसमें लिखा है कि अगर इतनी मीटिंग होगी तो काम कब होगा. बवाल मचने पर उन्होंने अपनी पोस्ट हटा ली है, लेकिन सरकार की किरकिरी जरूर करा दी.

साफ है ब्यूरोक्रेसी जो अब तक अपने दायरे में रहती थी, अपने सर्विस कंडक्ट एक दायरे में सीमित रखती थी. सोशल मीडिया के इस दौर में उनके दर्द और उनकी राय सामने आ रही है. यही सरकार के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द साबित हो रहा है.

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