पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद कांग्रेस का साथ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया है. केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने जितिन प्रसाद को बीजेपी की सदस्यता दिलाई. राहुल गांधी के करीबी माने जाने वाले जितिन प्रसाद कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे जितेंद्र प्रसाद के बेटे हैं. उत्तर प्रदेश कांग्रेस की कमान प्रियंका गांधी के के हाथों में आने के बाद सूबे की राजनीति में जितिन प्रसाद साइड लाइन चल रहे थे, जिसके चलते उन्होंने अब 2022 के चुनाव से ठीक पहले पार्टी को अलविदा कह दिया है. यह कांग्रेस के लिए यूपी में बड़ा झटका माना जा रहा है.
जितिन प्रसाद की साल 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल होने चर्चाएं थीं, लेकिन उस वक्त उन्होंने पार्टी को नहीं छोड़ा था. हालांकि, यह चर्चा इतनी ज्यादा हो गई थी कि कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला को सामने आकर सफाई देनी पड़ी थी कि जितिन पार्टी नहीं छोड़ रहे हैं. हालांकि, जितिन प्रसाद उसके बाद भी सामने नहीं आए थे, लेकिन अब दो साल के बाद उन्होंने आखिर कांग्रेस को छोड़कर बीजेपी में शामिल होने का कदम उठा ही लिया.
प्रियंका गांधी के चलते जितिन साइडलाइन
यूपी की सियासत में जितिन प्रसाद कद्दावर नेता माने जाते हैं, लेकिन जबसे सूबे में प्रियंका गांधी का सियासी दखल बढ़ा है तब से उन्हें कांग्रेस में वह महत्व नहीं मिल रहा है जैसा राहुल गांधी के समय मिला करता था. कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए-2 में जिस तरह से सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया का सियासी वर्चस्व कायम था, उसी तरह जितिन प्रसाद की तूती बोलती थी.
जितिन प्रसाद को गांधी परिवार का करीबी माना जाता था और यूपी के तमाम राजनीतिक फैसलों में उनका बकायदा दखल हुआ करता था. 2019 के लोकसभा चुनाव में मिली हार की जिम्मेदारी लेते हुए राज बब्बर ने कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था, जिसके बाद जितिन प्रसाद के प्रदेश अध्यक्ष बनने की चर्चाएं तेज हो गई थीं. लेकिन प्रियंका गांधी ने जितिन की जगह अजय लल्लू को पार्टी की कमान सौंप दी थी. इतना ही नहीं उन्हें यूपी फैसलों से दूर रखा जा रहा था और उनके करीबी नेताओं को भी जिला संगठन से हटा दिया गया था.
कांग्रेस के इसी फैसला के बाद से जितिन प्रसाद पार्टी से नाराज चल रहे थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें साधे रखने के लिए यूपी से बाहर बंगाल का पार्टी प्रभारी बनाकर भेज दिया था. हालांकि, बंगाल में चुनाव के बाद से कांग्रेस से उनका मोह भंग हो गया था और अपने सियासी भविष्य को देखते हुए बीजेपी की सदस्यता ग्रहण कर ली.
जितिन प्रसाद का सियासी सफर
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के राजनीतिक सलाहकार जितेन्द्र प्रसाद के पुत्र जितिन प्रसाद का सियासी सफर करीब 20 वर्ष पुराना है. जितिन प्रसाद ने अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत साल 2001 में की थी. इस दौरान वो यूथ कांग्रेस में सचिव बने थे. इसके बाद 2004 के लोकसभा चुनाव में वह अपनी गृह लोकसभा सीट शाहजहांपुर से जीतकर संसद पहुंचे. साल 2008 में अखिलेश दास को हटाकर कांग्रेस हाईकमान ने पहली बार जितिन प्रसाद केंद्रीय राज्य इस्पात मंत्री नियुक्त किया.
इसके बाद 2009 में जितिन प्रसाद ने धौरहरा सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. वह 2009-11 तक सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री रहे, इसके बाद 2011-12 तक पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय और 2012-14 तक मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय का कार्यभार संभाला, लेकिन इसके बाद से वो दोबारा चुनाव नहीं जीत सके.
कांग्रेस ने जितिन प्रसाद को 2014 में धौरहरा सीट से एक बार फिर मैदान में उतारा, लेकिन जीत नहीं दर्ज कर सके. 2017 में तिलहर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े, लेकिन यह चुनाव भी नहीं जीते जबकि उनको तब सपा का समर्थन हासिल था. इसके बाद 2019 में धौरहरा से फिर लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन हार गए. इसके बाद प्रियंका गांधी ने जितिन प्रसाद को महत्व नहीं दिया, जिसके चलते वह नाराज चल रहे थे.
जितिन को सियासत विरासत में मिली
जितिन प्रसाद का जन्म 29 नवंबर 1973 को यूपी के शाहजहांपुर में हुआ. उन्होंने अपनी पढ़ाई देहरादून के दून स्कूल से की. फिर वह दिल्ली चले गए और श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से बीकॉम ऑनर्स किया. इसके बाद उन्होंने दिल्ली से एमबीए किया. फरवरी 2010 में जितिन प्रसाद ने पूर्व पत्रकार नेहा सेठ से शादी की.
जितिन प्रसाद के दादा ज्योति प्रसाद कांग्रेस के नेता थे और उनकी दादी पामेला प्रसाद कपूरथला के रॉयल सिख परिवार से थीं. जितेंद्र प्रसाद भारत के प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी और पीवी नरसिम्हा राव के राजनीतिक सलाहकार रह चुके हैं. जितेंद्र प्रसाद यूपी कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं. इतना ही नहीं सोनिया गांधी के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव भी जितेंद्र प्रसाद लड़ थे. इस तरह जितिन प्रसाद को सियासत विरासत में मिली है. वो कांग्रेस में रहते हुए दो बार एमपी और मनमोहन सिंह की दोनों सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे और अब अपनी सियासी पारी बीजेपी के पिच पर खेलेंगे.