उत्तर प्रदेश की कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभा सीट पर विपक्षी एकता के आगे बीजेपी पस्त होती दिख रही है. प्रदेश की ये दोनों सीटें बीजेपी के पास थीं, लेकिन केंद्र में मोदी और प्रदेश में योगी की अभूतपूर्व जोड़ी के बावजूद ये सीटें पार्टी के हाथ से निकलती दिख रही हैं. अगर ऐसा हुआ तो 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद ये पार्टी को लगा दूसरा बड़ा झटका होगा क्योंकि इससे पहले बीजेपी फूलपुर और गोरखपुर जैसी अहम सीट भी सपा-बसपा के संयुक्त उम्मीदवार के हाथों हारकर गंवा चुकी है.
कैराना लोकसभा सीट पर भी बीजेपी का गहरा झटका मिलता दिख रहा है. 2014 के चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर हुकुम सिंह ने यहां से करीब 3 लाख मतों से जीत हासिल की थी. लेकिन पिछले साल उनके निधन हो जाने के चलते ये सीट रिक्त हो गई.
बीजेपी ने सहानुभूति के नाम पर वोट हासिल करने के लिए हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को मैदान में उतारा. जबकि आरएलडी ने तबस्सुम हसन को प्रत्याशी बनाया, जिन्हें सपा, बसपा और कांग्रेस समर्थन कर रहे थे.
कैराना में एक बार फिर जाट-मुस्लिम एकजुट दिखे हैं. मुजफ्फरनगर दंगे के बाद दोनों के बीच गहरी खाई पैदा हो गई थी. इसी का नतीजा था कि आरएलडी प्रमुख चौधरी अजीत सिंह को लोकसभा और विधानसभा चुनाव में करारी मात खानी पड़ी थी. लेकिन उपचुनाव में एक बार फिर अजीत सिंह महागठबंधन में शामिल होकर अपना खोया हुआ जनाधार वापस पाने में सफल होते दिख रहे हैं.
बीजेपी के सारे फॉर्मूले महागठबंधन के आगे फेल होते दिख रहे हैं. जबकि 2014 लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने यहां विपक्ष का सफाया कर दिया था.
बीजेपी का मजबूत गढ़ नूरपुर दरकता दिख रहा है. सपा इस सीट पर खाता खोलती दिख रही है. सपा उम्मीदवार नईमुल हसन बीजेपी उम्मीदवार अवनि सिंह से काफी आगे चल रहे हैं. ये मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए गहरा झटका साबित हो सकता है.
बता दें कि ये सीट बीजेपी के लोकेंद्र सिंह चौहान के एक दुर्घटना में निधन की वजह से खाली हुई थी. अवनि सिंह लोकेंद्र चौहान की पत्नी हैं, जिन्हें बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बनाया है. वहीं सपा ने पिछले चुनाव में दूसरे नंबर पर रहे नईमुल हसन पर एक बार फिर भरोसा किया है. आरएलडी, कांग्रेस और बसपा उन्हें समर्थन कर रही हैं.
नूरपुर विधानसभा सीट परिसीमन के बाद 2012 में वजूद में आई, तब से इसपर बीजेपी का कब्जा है. दोनों बार इस सीट से लोकेंद्र सिंह चौहान बीजेपी उम्मीदवार के तौर पर चुनाव जीते थे. 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के लोकेंद्र सिंह ने सपा के नईमुल हसन को करीब 10 हजार मतों से मात दी थी. बीजेपी को 79 हजार 172 तो सपा को 66 हजार 436 और बसपा को 45 हजार 903 वोट मिले थे.
2012 से पहले ये सीट स्योहारा विधानसभा सीट के नाम से जानी जाती थी. स्योहारा सीट पर बीजेपी का कब्जा रहा है. 1991 से लेकर अब तक सात बार विधानसभा चुनाव हुए. इनमें से 5 बार बीजेपी ने जीत हासिल की. जबकि 2 बार बसपा जीतने में सफल रही.