उत्तर प्रदेश में लोकायुक्त की नियुक्ति के मामले में बुधवार को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इलाहबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस से कई सख्त सवाल पूछे. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने रिटायर्ड जस्टिस वीरेंद्र सिंह को उत्तर प्रदेश का नया लोकायुक्त नियुक्त किया था. इस फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डॉ. डीवाई चंद्रचूड़ ने गवर्नर राम नाइक को लेटर लिखकर एतराज जताया था.
SC का फैसला सुरक्षित
हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने कहा था कि जस्टिस वीरेंद्र सिंह के नाम पर उनकी सहमति नहीं थी, इसके बावजूद उनका नाम उत्तर प्रदेश सरकार को भेजा गया. कोर्ट ने बुधवार को इसपर फैसला सुरक्षित कर लिया है. SC ने कहा कि ठोस सबूतों के बिना फैसला नहीं बदला जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा जब तक हमारे सामने चौंकाने वाले तथ्य नहीं आएंगे हम अपना आदेश नहीं बदलेंगे. हमने संविधान की धारा 142 का इस्तेमाल करके आदेश पारित किया ऐसे में मुख्यमंत्री और मुख्य न्यायधीश की सहमति का कोई मतलब ही नहीं रह जाता.
दूसरे नामों पर विचार
सुप्रीम कोर्ट ने इशारा किया कि वो अब उत्तर प्रदेश में लोकायुक्त के लिए जस्टिस वीरेंदर सिंह के अलावा दूसरे नामों पर भी विचार करने को तैयार है. कोर्ट ने कहा की अगर वो अपना फैसला पलटता भी है तो लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए उत्तर प्रदेश के संवैधानिक पदाधिकारियों, यानि मुख्यमंत्री, मुख्य न्यायधीश और नेता प्रतिपक्ष की सहमति नहीं लेगा बल्कि सुप्रीम कोर्ट खुद नियुक्ति करेगा.
कोर्ट ने मांगे सबूत
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें धोखे में रखा है. जस्टिस वीरेंदर सिंह के नाम पर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को आपत्ति थी तो उनका नाम सुप्रीम कोर्ट के सामने नहीं दिया जाना चाहिए था. लेकिन वीरेंदर सिंह के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को साबित करने के लिए हमे ठोस सबूत दीजिए. कोर्ट ने कहा कि ये साबित करने के लिए भी सबूत दिए जाएं कि जस्टिस वीरेंदर सिंह उत्तर प्रदेश के मंत्री शिवपाल यादव के रिश्तेदार हैं.
बयान बदलने से नाराज SC
कोर्ट ने कहा 20 महीने तक लोकायुक्त की नियुक्ति पर सिर्फ चर्चा होती रही और किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सके. कोर्ट ने कहा अब जब हमने नियुक्ति के आदेश दे दिए तो ये सब बातें सामने लाई जा रही हैं. कोर्ट ने कहा नेता प्रतिपक्ष स्वामी प्रसाद मौर्या अपना बयान बदल रहे हैं इसलिए उनके बयान और सहमति को हम कोई तरजीह नहीं देते.