उत्तर प्रदेश के मऊ जिले में कुछ मुर्दों ने धड़ल्ले से मनरेगा में काम किया. 40 साल पहले मर चुके लोगों ने मनरेगा के तहत काम किया, हालांकि जब उनकी मौत हुई तक मनरेगा नहीं था, लेकिन इस योजना में उन्होंने मरने के बाद अपना योगदान दे दिया. मुर्दों ने सिर्फ काम ही नहीं किया, बल्कि लाखों रुपये की मजदूरी भी ली. बस किसी ने उन्हें देखा नहीं.
दरअसल मऊ जिले में मनरेगा के तहत कराए गए कार्यों में बड़े पैमाने पर घपलेबाजी सामने आई है. जिंदा लोगों की आड़ में कुछ मृतकों के नाम भी मनरेगा से जोड़ दिए गए. यानी मुर्दों ने काम किया और लाखों का भुगतान भी लिया. इस मामले की जांच जिला सतर्कता एवं निगरानी समिति कर रही है. जिला सतर्कता एवं निगरानी समिति के सदस्य नान्हू चौहान ने एक अप्रैल 2013 को स्वीकृत हुए कार्य के तहत रानीपुर मार्ग से खानपुर पलीगढ़ मार्ग पर हुए मिट्टी के कार्य संख्या 3156/आरसी/958486255822512346 की जांच की तो गड़बड़ियों की पोटली खुलती चली गई.
पता चला कि 14 मस्टररोल में हाजिरी भरकर 256452 रुपये का भुगतान कराया गया है. उपयोग में लाई गई मस्टररोल संख्या 2261 में क्रम संख्या एक, दो और तीन पर खिरिया के मजदूरों का कार्य दर्शाया गया है. मस्टररोल संख्या 3676 में भी क्रम संख्या एक, दो और तीन पर ग्राम पंचायत खिरिया के मजदूरों के नाम फर्जी हाजिरी लगाकर धन का दुरुपयोग किया गया है. यही नहीं, संख्या 3676 के क्रम संख्या दो पर बालगोविंद के पिता स्व. रामदेव का कार्य किया जाना दिखाया गया है.
गौरतलब है कि किसी भी जॉब कार्ड पर उसके परिवार का कोई सदस्य कार्य कर सकता है, उसके नाम और संबंध के साथ लेकिन बालगोविंद के पिता की मौत 40 साल पहले ही हो चुकी है. यही नहीं, इसके बेटे रमेश का भी कार्य करना दिखाया गया है. बालगोविंद का कहना है कि न तो उसने और न ही परिवार के किसी सदस्य ने कभी इस मार्ग पर काम किया. अब जिला सतर्कता एवं निगरानी समिति मामले की जांच में जुटी है.
- इनपुट IANS से