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UP खनन घोटाला: CBI की FIR के आधार पर ED दर्ज करेगा केस

सीबीआई ने 30 सितंबर को दर्ज की एफआईआर के मुताबिक दो आईएएस अधिकारियों, अजय कुमार सिंह और पवन कुमार सिंह को आरोपी बनाया है. यह दोनों सहारनपुर में साल 2012 से साल 2016 के बीच बतौर जिलाधिकारी तैनात रहे थे.

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सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

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  • अवैध खनन घोटालाः CBI की छापेमारी के बाद आरोपियों की मुश्किलें बढ़ीं
  • सीबीआई ने 30 सितंबर को अपने FIR में 2 IAS अफसरों को आरोपी बनाया

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में हुए खनन घोटाले के मामले में सीबीआई की छापेमारी के बाद अब नामजद आरोपियों की मुश्किलें और भी बढ़ सकती हैं. सूत्रों के मुताबिक अब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) इन आरोपियों के खिलाफ सीबीआई की एफआईआर के आधार पर मुकदमा दर्ज कर सकता है.

सीबीआई ने 30 सितंबर को दर्ज की गई एफआईआर के मुताबिक दो आईएएस अधिकारियों, अजय कुमार सिंह और पवन कुमार सिंह को आरोपी बनाया है. यह दोनों सहारनपुर में साल 2012 से साल 2016 के बीच बतौर जिलाधिकारी तैनात रहे थे.

नियमों के खिलाफ खनन का दिया गया पट्टा

आरोप के मुताबिक इन्हीं के कार्यकाल के दौरान सहारनपुर में जमकर अवैध खनन हुआ था. इसके अलावा 10 अन्य लोगों पर भी मुकदमे में नामजद किया गया है जिसमें वो लोग भी शामिल हैं जिन्हें नियमों के विरुद्ध जिले में खनन का पट्टा दिया गया था.

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इस मामले में सीधे एक अक्टूबर को छापेमारी कर चुकी है जिसमें आरोपी आईएएस अधिकारी अजय कुमार सिंह के घर से 15 लाख रुपये कैश बरामद हुए थे. इस छापेमारी के बाद यूपी सरकार ने इन दोनों आईएएस अधिकारियों को  इनके पदों से हटाकर प्रतीक्षारत कर दिया है.

अब इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय नई एफआईआर दर्ज कर इन आरोपियों के खिलाफ नए सिरे से जांच करेंगी जिससे पता चलेगा कि क्या आरोपियों ने मनी लॉड्रिंग भी की है या नहीं. आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक निदेशालय इस मामले में सीबीआई से दस्तावेजों की मांग कर चुका है जिसके आधार पर आगे की कार्रवाई शुरू होगी.

क्या है अवैध खनन मामला?

उत्तर प्रदेश में अवैध खनन का मामला 2012 से 2016 के बीच का है, उस वक्त राज्य में समाजवादी पार्टी की सरकार थी. खनन मंत्रालय का जिम्मा खुद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पास ही था. ऐसे में उन पर भी लगातार सवाल उठते रहे हैं.

कहा जाता है कि 2012 और 2016 के बीच कुल 22 टेंडर पास किए गए थे, जो सवालों के घेरे में आए. 22 में से 14 टेंडर तब पास किए गए थे, जब खनन मंत्रालय अखिलेश यादव के पास ही था. बाकी के मामले गायत्री प्रजापति के कार्यकाल के हैं.

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