उत्तर प्रदेश में होने वाले पंचायत चुनाव की सीटों पर आरक्षण को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में सोमवार को सुनवाई होगी. यूपी की योगी सरकार और राज्य चुनाव आयोग हाईकोर्ट में अपना पक्ष रखेंगे, जिसके बाद आरक्षण को लेकर तस्वीर साफ हो सकेगी. यही वजह है कि सभी की निगाहें कोर्ट के फैसले पर लगी हुई हैं. हाईकोर्ट ने यूपी पंचायत चुनाव आरक्षण की फाइनल सूची जारी करने पर शुक्रवार को रोक लगा दी थी.
बता दें कि उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव के आरक्षण को लेकर अजय कुमार की जनहित याचिका हाईकोर्ट दायर की थी, जिस पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति रितुराज अवस्थी और न्यायमूर्ति मनीष माथुर की खंडपीठ ने आरक्षण की फाइनल सूची जारी करने पर रोक लगा दी थी और आरक्षण की प्रक्रिया पर सरकार और राज्य चुनाव आयोग से जवाब मांगा है. यही वजह है कि सरकार और चुनाव आयोग आरक्षण को लेकर अपनी बात कोर्ट में रखेंगे.
आरक्षण को लेकर दायर की गई याचिका में 11 फरवरी 2021 के यूपी शासनादेश को चुनौती दी गई है.याचिका में कहा गया है कि पंचायत चुनाव में आरक्षण लागू किए जाने सम्बंधी नियमावली के नियम 4 के तहत जिला पंचायत, क्षेत्र पंचायत व ग्राम पंचायत की सीटों पर आरक्षण लागू किया जाता है.
साथ ही कहा गया कि आरक्षण लागू किए जाने के संबंध में 1995 को मूल वर्ष मानते हुए 1995, 2000, 2005 व 2010 के चुनाव सम्पन्न कराए गए थे, लेकिन 16 सितंबर 2015 को एक शासनादेश जारी करते हुए साल 1995 के बजाय साल 2015 को मूल वर्ष मानते हुए आरक्षण लागू किए जाने की प्रक्रिया अपनाई गई थी.
याचिका में कहा कि उक्त शासनादेश में ही कहा गया कि साल 2001 व 2011 के जनगणना के अनुसार अब बड़ी मात्रा में भौगोलिक बदलाव हो चुका है लिहाजा वर्ष 1995 को मूल वर्ष मानकर आरक्षण लागू किय अजाना उचित नहीं होगा. कहा गया कि 16 सितंबर 2015 के उक्त शासनादेश को नजरंदाज करते हुए, राज्य सरकार ने 11 फरवरी 2021 का शासनादेश लागू कर दिया गया है. इसके लिए 1995 को ही मूल वर्ष माना गया है जबकि वर्ष 2015 के पंचायत चुनाव भी 16 सितंबर 2015 के शासनादेश के ही अनुसार सम्पन्न हुए थे.