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राजा भैया और शिवपाल: किसके आएंगे काम, किसका बिगाड़ेंगे सियासी खेल?

उत्तर प्रदेश की सियासत नई करवट ले रही है. शिवपाल सपा से बगावत कर अलग पार्टी बना ली है और अखिलेश के लिए नई मुसीबत बन रहे हैं. वहीं, निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भइया भी अपनी पार्टी बनाने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है.

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राजा भैया और शिवपाल यादव (फोटो-Aajtak.in)
राजा भैया और शिवपाल यादव (फोटो-Aajtak.in)

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उत्तर प्रदेश की सियासत में इन दिनों नए राजनीतिक समीकरण बनते दिख रहे हैं. शिवपाल यादव सपा से बगवात कर समाजवादी सेकुलर मोर्चा का गठन कर उसे मजबूत करने में लगे हैं. शिवपाल के बाद अब कुंडा से निर्दलीय विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने भी अपनी राजनीतिक पार्टी बनाने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है.

राजा भैया 30 नवंबर को लखनऊ में होने वाली रैली में अपनी नई पार्टी का नाम और पदाधिकारियों का ऐलान कर सकते हैं. उन्होंने अपनी पार्टी का नाम 'जनसत्ता पार्टी' रखा है. माना जा रहा है कि रघुराज प्रताप सिंह अपनी पार्टी का गठन करके लोकसभा चुनाव 2019 में अपने उम्मीदवार खड़े कर सकते हैं.

राजा भैया का कुंडा से बाहर मूल आधार राजपूत (क्षत्रिय) समाज में है. उत्तर प्रदेश में करीब 7 फीसदी राजपूत समाज है. मौजूदा राजनीति में राजपूत समाज सूबे में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के नेतृत्व में बीजेपी के साथ मजबूती से खड़ा है.

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2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में 63 राजपूत विधायक जीतने में सफल रहे थे. इनमें से 57 बीजेपी से, 2 कांग्रेस, 2 बसपा, 1 सपा, 1 निर्दलीय तौर पर जीतकर आए थे. इनमें नूरपुर से लोकेंद्र चौहान का निधन हो गया है. इस तरह से बीजेपी के पास 56 और कुल 62 विधायक बचे हैं.

राजा भैया राजनीतिक दल बनाकर 2019 के लोकसभा चुनाव में उतरते हैं, तो बीजेपी के लिए ही मुसीबत बन सकते हैं. हालांकि सूत्रों की माने तो वो बीजेपी के खिलाफ लड़ने के बजाय हाथ मिलाकर चुनावी रणभूमि में उतर सकते हैं.

यूपी के राज्यसभा चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार के पक्ष में वोट देने के चलते सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से उनके रिश्ते बिगड़ गए हैं. वहीं राजा भैया की नजदीकियां भी योगी आदित्यनाथ के साथ बड़ी हैं. ऐसे में बीजेपी के खिलाफ उतरने की संभवाना बहुत कम है.

शिवपाल यादव अपने बड़े भाई सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की उंगली पकड़कर सियासत में एंट्री किया था. लेकिन अखिलेश यादव से उनके रिश्ते एक कदर बिगड़े कि उन्होंने सपा से बगावत कर अलग सियासी राह पर चलने का फैसला किया है. इसी के तहत उन्होंने अपनी नई पार्टी का गठन किया है.

शिवपाल अब अपने राजनीतिक वजूद को सूबे में स्थापित करने में जुट गए हैं. ऐसे में उनकी नजर सपा के मूलवोट बैंक मुस्लिम-यादव पर है. सेकुलर मोर्चा सपा के रुठे नेताओं का ठिकाना बनता जा रहा है. इसमें भी खासकर यादव और मुस्लिम नेताओं का शिवपाल के साथ जुड़ने का सिलसिला जारी है.

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बता दें कि यूपी में 20 फीसदी मुस्लिम और 12 फीसदी यादव मतदाता सपा का मूल वोट बैंक माना जाता है. इन्हीं दोनों समुदाय के वोटबैंक के दम पर मुलायम सिंह यादव से लेकर अखिलेश यादव तक सत्ता के सिंहासन तक पहुंचे. अब इस वोटबैंक को शिवपाल यादव अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं.  

शिवपाल ने 2019 के लोकसभा चुनाव में सूबे की सभी 80 लोकसभा सीटों पर मैदान में उतारने का फैसला किया है. इसके लिए वो कुछ क्षेत्रीय दलों को भी अपने साथ मिला रहे हैं. ऐसे में शिवपाल सबसे बड़ी मुसीबत अखिलेश के लिए बनते दिख रहे हैं.

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