जिले ही नहीं पूरे प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा के गिरते स्तर पर चिंता जाहिर करते हुए कानपुर जिले के बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीईओ) राजेंद्र प्रसाद यादव ने प्राइमरी टीचर्स और वेश्याओं को एक ही तराजू में तौल दिया. बीईओ के अनुसार आज टीचर्स से ज्यादा वेश्याएं अपने काम को पूरी लगन और कर्तव्यनिष्ठा से करती हैं. सी.आर.सी (नगर संसाधन केंद्र) प्रेमनगर वार्षिक शैक्षिक समारोह जश्न-ए-तालीम-2014 समारोह में उन्होंने ये बात कही. इस समारोह का थीम तालीम-तरबियत-तहजीब रखी गई थी. कार्यक्रम में मुख्य अतिथि कानपुर के जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी राजेंद्र प्रसाद यादव थे. इस दौरान करीब 20 प्राइमरी महिला टीचर्स को बेसिक शिक्षा अधिकारी ने उनके सेवानिवृत्त होने पर उन्हें सम्मानित भी किया.
बीईओ ने यूं की वेश्या और टीचर्स की तुलना:
मंच पर माइक संभालते ही कानपुर जिले के बेसिक शिक्षा अधिकारी राजेंद्र प्रसाद यादव ने हॉल में बैठे प्राइमरी स्कूल के टीचरों की ओर मुखातिब होते हुए कहा कि ‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत’. उसके बाद बीईओ ने जो कहा, उससे हॉल में खामोशी छा गई. दरअसल बीईओ ने जिले ही नहीं पूरे प्रदेश में प्राइमरी स्कूलों में गिरते शिक्षा के स्तर पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि एक वेश्या भी अपने काम को समझ लेती है कि वेश्यावृति हमारे भाग्य में लिखा है, तो उसको भी बड़े ईमानदारी से सत्यनिष्ठा से करती है. मगर हमारे टीचरों को जो ड्यूटी दी गई है, उसे पूरा करना तो दूर उन्हें छोटे बच्चों को पढ़ाने में शर्म आती है, तमाम टीचर इसको अपनी तौहीन समझते हैं, अपना अपमान समझते हैं और पढ़ाने से कतराते हैं. जो आज के समय की सबसे बड़ी कमी है.
सुविधाओं के बावजूद गिर रहा शिक्षा का स्तर:
राजेंद्र यादव के अनुसार अगर आज के टीचर्स अपनी कमी का आंकलन खुद करें तो उन्हें अपने दोष दिख जाएंगे. उनके मुताबिक वर्तमान में बेसिक शिक्षा में तमाम सुविधाओं के बावजूद इसके स्तर में दिन प्रतिदिन गिरावट आती जा रही है. मगर ये दोष केवल टीचर की तरफ से ही नहीं, अभिभावकों की तरफ से भी है. उन्होंने अपने दौर की शिक्षा को याद करते हुए कहा कि वो भी प्राइमरी स्कूल से ही शिक्षा लेकर आज यहां तक पहुंचे हैं. उस समय जो परिवेश और अनुशासन प्राइमरी स्कूलों में हुआ करता था, आज वह बिल्कुल बदल चुका है. शासन की मंशा है कि हम भय मुक्त शिक्षा दें, लेकिन व्यवहार में जब हम भय मुक्त शिक्षा देने चलते हैं तो कहीं ना कहीं कठनाई का सामना करना पड़ता है.
उन्होंने अपने दिनों को याद करते हुए कहा, हम लोग जब पढ़ते थे तब गुरु और शिष्य का अटूट संबंध होता था, पहले भी सजा हम लोगों को दी जाती थी. मगर किसी के गार्जियन से शिकायत नहीं आती थी और जितनी उस सजा की जरूरत आज के परिवेश के लिए है, उतनी उस समय नहीं थी. आज की तुलना में हम लोग काफी अनुशासित थे. गुरुओं का आदर करते थे और समय से काम करते थे, फिर भी अगर कोई कमी रह जाती थी तो पिटाई होती थी. हमें ये भय था कि घर से हम लोगों की तरफ से बचाव में कोई नहीं है, बल्कि अगर घर में गुरुजी खबर कर देंगे तो घर में भी पिटाई होगी. इस भय की आज जरूरत है. लेकिन शासन की मंशा है कि अगर आप उनको भयभीत करेंगे तो वो पढ़ भी नहीं सकते. जबकि व्यवहार में आप महसूस करते हैं कि ऐसी चीजों की जरूरत है. शिक्षा में गिरावट आने का ये भी एक मुख्य कारण है.
‘मन के हारे हार, मन के जीते जीत’:
बीईओ के अनुसार बच्चा चाहे जिस रूप में आए, मगर वह विद्वान होकर टीचर की शरण में नहीं आता है. उसको लेकर जब आप चाह लेंगे, उसके प्रति आप रूचि ले लेंगे, जब आपके अंदर अपने कर्तव्य का बोध आ जाएगा तो निश्चित ही उस बच्चे को बेहतर बनाया जा सकता है. मगर जब आप ये मान लेते हैं कि ये इतने नाकाम बच्चे हैं कि ये कुछ सीख नहीं सकते, तो मन के हारे हार है, मन के जीते जीत. जब आप ये मन बना लेते है कि ये बच्चा कुछ सीख ही नहीं सकता तो निश्चित ही आपकी मनोवृति बदल जाती है और वो बच्चा कुछ सीख नहीं पाता.
टीचर्स को अपने विषय में कोई कॉन्सेप्ट क्लियर ही नहीं:
उनके मुताबिक सबसे बड़ी बात ये है कि आज के ज्यादातर टीचर्स को अपने विषय का कॉन्सेप्ट ही क्लियर नहीं है. इसलिए जो आपको पढ़ाना है उसे आप पहले समझें और उसमें आपकी पूरी लगन होनी चाहिए. जिस टीचर को अपने विषय का कॉन्सेप्ट साफ नहीं होगा, वो अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं दे सकता. किसी चीज को खुद सीखना एक कला है, मगर उसी चीज को दूसरे को सीखना दूसरी कला है. इसलिए जब आपका अपने विषय का कॉन्सेप्ट साफ होगा, तब आप ये समझ पाएंगे कि आप जो अपने बच्चों को सीखा रहे हैं उसमें उसे कहां-कहां कठिनाई आ रही है. एक टीचर समाज और देश के लिए सबसे बड़ा गाइड है, जिसके कंधे पर देश का भार है. आप जैसा बच्चा बनाकर निकालेंगे देश में वैसा ही प्रकाश होगा.
सरकारी स्कूल के अध्यापक पढ़ाना नहीं चाहते:
लोगों को सरकारी स्कूलों में ही पढ़ाने की सबसे बड़ी चाहत होती है. पर वहां के बच्चों को कोई पढ़ाना नहीं चाहता. आज सबसे ज्यादा तादात और सबसे ज्यादा आवेदन पत्र शिक्षा विभाग में ही आते हैं. एक पद के लिए लाखों आवेदन आते हैं, तो ये तो हम मानने से रहे कि सरकारी विद्यालयों में पढ़ाने के लिए कोई नहीं जाना चाहता. आज भारी संख्या में ऐसे भी टीचर्स हैं जिन्हें अपनी क्लास के ना तो बच्चों का नाम पता है और ना ही उन बच्चों के माता-पिता का नाम पता होता है. जबकि हमारे जमाने में गुरु बच्चों के साथ अभिभावकों का नाम भी जानते थे.
हम अपने शिक्षक साथियों से केवल एक निवेदन करेंगे कि आप अच्छी से अच्छी शिक्षा अपने बच्चों को दीजिए. आपके अंदर ज्ञान है, आपके अंदर वो शक्ति है जो इन बच्चों को एक अच्छे नागरिक के रूप में लाने का काम कर सकती है.