उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले (UP Sonbhadra) के पडरच गांव में रहने वाले अमरीका आज भावुक हैं. उनकी आंखों में आंसू हैं और वह अपना दर्द शब्दों में बयां कर पाने में असमर्थ से हैं. वजह सिर्फ दूषित पानी है. वह कहते हैं कि पानी नहीं है, पत्नी का बीपीएल सूची में नाम भी नहीं है. दवा भी नहीं मिल पाती. बस राशन मिलता है, पीने लायक पानी नहीं.
सोनभद्र जिला सोने के कथित भंडार को लेकर देश दुनिया में सुर्खियां बटोरता रहा है, लेकिन 60 फीसदी आदिवासी जनसंख्या वाले इस जिले के 269 गांवों के करीब दस हजार लोग खराब गुणवत्ता की हवा और फ्लोराइडयुक्त पानी पीने से फ्लोरोसिस नामक बीमारी (Fluorosis disease) से ग्रस्त होकर अपंग हो गए हैं. राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (NGT) के हस्तक्षेप के बाद भी राज्य सरकारें या जिला प्रशासन कोई कारगर कदम नहीं उठा सका है.
40 किलोमीटर के दायरे में रह रहे 20 लाख लोग
अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (AIIA) ने साल 2018 में सोनभद्र-सिंगरौली के कुछ गांवों से कई नमूने लिए थे. इसकी रिपोर्ट के अनुसार, सोनभद्र-सिंगरौली क्षेत्र में रहने वाले लगभग 20 लाख लोग 40 किलोमीटर के क्षेत्र में फैले रह रहे हैं, ये प्रदूषण की चपेट में हैं. इसकी वजह से महिलाओं में गर्भपात, एनीमिया और बीपी जैसी बीमारियां हो रही हैं. बागों में फल नहीं हैं, फसल का उत्पादन घट रहा है.
10 साल से अपंगता का दंश
पिछले 10 साल से अपंगता का दंश झेल रहे विजय शर्मा के घर में इस तरह का तखत लगाया गया है, जिसके ऊपर जुगाड़ वाला एक डंडा लगाया है. एक कपड़े की रस्सी लगा दी गई है, जिसकी मदद से विजय कुमार शर्मा उठ पाते हैं, क्योंकि यह फ्लोरोसिस बीमारी से ग्रस्त हैं. विजय शर्मा ने बताया कि पहले मेरे दाहिने पैर में दर्द हुआ. मुझे लगा कि हल्का फुल्का होगा, पर फिर बढ़ता गया. लखनऊ में पीजीआई गया, पर डॉक्टरों ने बताया कि कोई इलाज नहीं है. सरकार से मदद मांगी, पर सुनवाई नहीं हुई.
फ्लोराइड वाले पानी में हैंडपंप के पास फिल्टर लगाए गए, पर किसी ने रखरखाव नहीं किया और अब भी वही है. पूरा परिवार इस बीमारी से ग्रसित है. बेटे के दांत काले हो गए हैं. हाथ पैर उल्टे हो रहे हैं. विजय ने कहा कि यहां की बच्चियों के लिए लोग सोचते हैं कि यहां शादी न करो. यहां फ्लोराइड का पानी आता है, तो रिश्ते भी नहीं आते. विजय के 18 साल के बेटे नके दांत काले हो चुके हैं और टेढ़े हो रहे हैं. विजय की पत्नी ने कहा कि पानी साफ करने के लिए कोई काम नहीं किया गया, जिसके चलते गांव दर गांव पीड़ा में हैं.
दूषित पानी ने बर्बाद कर दी जिंदगी
अमरीका पटेल और उनके परिवार की जिंदगी भी इस फ्लोराइड के चलते तबाह हो चुकी है. इनके शरीर में नसें और हड्डियां दिखाई पड़ती हैं. यह चल भी नहीं सकते. इनका कहना है कि यह दिक्कत पानी की वजह से है और यह जन्म से है. अमरीका 'आजतक' से बात करते करते हुए भावुक हो जाते हैं. उनकी आंखों में आंसू हैं और वह अपना दर्द शब्दों में व्यक्त कर पाने में असमर्थ हैं. अमरीका पटेल के बच्चे कहीं कहीं काम कर लेते हैं, जिससे थोड़ा बहुत घर चल रहा है.
अधिकारी हाल चाल लेने आते भी हैं तो बात नहीं सुनते. आयुष्मान कार्ड भी होता तो दवा करा लेते. न आयुष्मान कार्ड है, न बीपीएल कार्ड. हमारा बीपीएल सूची में नाम तक नहीं है. वहीं 60 वर्षीय मनकुंवर के परिवार में कोई नहीं है. उनके बेटे, पति सबकी इसी बीमारी के चलते मौत हो गई. गांव के फ्लोरोसिस बीमारी से पीड़ित परिवारों से मिलने के बाद दूषित फ्लोराइड वाले पानी को पीकर देखा तो यह खारा था. हैंडपंप में फिल्टर तो लगा था, पर वह चलता नहीं है. गांव वालों ने बताया कि शरीर, दांत, बाल सब पर इसका प्रभाव पड़ रहा है.
CMO बोले- इस समस्या को लेकर तैयार करेंगे एक्शन प्लान
सोनभद्र के CMO रमेश ठाकुर ने बताया कि एनजीटी की रिपोर्ट के अनुसार, इस बीमारी से 269 गांव प्रभावित हैं. कई प्रयास किए गए. जल नल योजना को घरों तक पहुंचने में समय लगेगा. गांव वालों को फ्लोराइड वाला पानी पीने से बचना चाहिए. प्रशासन द्वारा फिल्टर करने के लिए वाटर पंप भी लगाए गए थे. शायद कई जगह वह चल भी रहे हों, इस पूरे मामले को लेकर हम एक्शन प्लान तैयार करेंगे.
सोनभद्र उत्तर प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्रफल वाला जिला है. 2011 में हुए सर्वे के अनुसार, सोनभद्र की आबादी 18 लाख 62 हजार 559 है. जनपद का क्षेत्रफल 6788 किमी है. सोनभद्र क्षेत्र के 2 लाख से भी ज्यादा परिवार पीने के पानी में फ्लोराइड के कारण फ्लोरोसिस जैसी लाइलाज बीमारी से ग्रसित हैं, जो जनसंख्या का 10 प्रतिशत से भी अधिक है.
क्या है फ्लोरोसिस?
मानक से अधिक फ्लोराइडयुक्त पानी पीने से फ्लोरोसिस बीमारी (Fluorosis disease) होती है. फ्लोरोसिस से ग्रसित व्यक्ति के दांत खराब हो जाते हैं. हाथ पैर की हड्डियां टेढ़ी हो जाती हैं, जिसके कारण व्यक्ति चलने फिरने से लाचार हो जाता है. यह बीमारी बच्चों से लेकर अधिक उम्र वाले व्यक्ति को अपनी चपेट में ले लेती है. एक लीटर पानी में फ्लोराइड एक मिलीग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए. यदि फ्लोराइड की मात्रा मानक से अधिक होती है तो इसका प्रभाव लोगों पर पड़ने लगता है.
यूपी के सोनभद्र में फ्लोरोसिस का प्रभाव बहुत अधिक है. औद्योगिक क्षेत्र से फ्लोराइड का उत्सर्जन अधिक होने के कारण पीने का पानी फ्लोराइडयुक्त हो गया है. औद्योगिक क्षेत्र से उपजे प्रदूषण के साथ ही मौसम की मार ने भी असर डाला है. भूजल स्तर बेहद नीचे चला गया, जिसके कारण राज्य सरकार ने पीने का पानी जुटाने के लिए गहराई वाले हैंडपंप लगाने शुरू कर दिए. राज्य सरकार ने यह देखा ही नहीं कि जो पानी गहराई से हैंडपंप द्वारा मुहैया कराया जा रहा है, उसमें मानक से कई गुना अधिक मात्रा में फ्लोराइड है.