महात्मा गांधी के 150वीं जयंती पर योगी सरकार ने जिस 36 घंटे के विधानसभा के विशेष सत्र का आह्वान किया था वो आखिरकार सियासी दांव पेंच के अखाड़े में तब्दील हो गया. ये सत्र बुलाया तो गया था महात्मा गांधी के सपनों के भारत और संयुक्त राष्ट्र के तय किए 16 बिंदुओं पर चर्चा के लिए, हालांकि ये चर्चा कम और राजनैतिक ताकत दिखाने का अखाड़ा ज्यादा बन गया.
शुरू में विपक्ष ने लगातार चलने वाले इस 36 घंटे के सत्र के लिए सहमति दी थी, लेकिन आखिरी वक्त में सरकार को इसका सियासी फायदा न मिल जाए इसे देखते हुए इसका बहिष्कार करने का फैसला कर लिया. योगी सरकार ने भी इस बहिष्कार को चुनौती की तरह लिया और विपक्ष के कई बड़े नामों को तोड़कर अपनी ताकत का एहसास करा दिया.
विपक्ष का बहिष्कार
विपक्ष का बहिष्कार टूटता देख 24 घंटे बाद समाजवादी पार्टी ने सदन के बाहर इस सत्र का विरोध करना शुरू किया और गांधी व गोडसे की बात 24 घंटे के बाद सदन परिसर में शुरू हो गई. योगी सरकार ने सत्र के शुरू में उम्मीद थी कि विपक्ष महात्मा गांधी के नाम पर सदन में जरूर आएगा, लेकिन जब विपक्ष ने एकता दिखाते हुए बहिष्कार कर दिया तो सरकार ने भी अपनी दांव पेच शुरू किए.
सदन के बहाने लेन-देन का खेल
सबसे पहले कांग्रेस की तरफ से अदिति सिंह पहुंची. वही अदिति सिंह जो रायबरेली की विधायक हैं. गांधी परिवार और सोनिया गांधी की करीबी हैं. हालांकि, बुधवार रात अदिति सिंह विपक्ष की बेंच पर आईं और वहां से सरकार के इस फैसले का समर्थन कर दिया. बाहर निकल कर भी अदिति सिंह ने कहा कि वह हमेशा देश हित में बोलने वाली रही हैं वह चाहे धारा 370 की बात हो या फिर महात्मा गांधी के 150वें जन्मदिन पर बुलाया गया विशेष सत्र हो, इसे राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए.
आदित्य सिंह के तुरंत बाद सपा समर्थित नितिन अग्रवाल नेवी सदन का भय कार्ड खत्म कर अपना भाषण सरकार के पक्ष में किया. इन दोनों के भाषण देते ही यह मिथक टूटने लगा की पूरा विपक्ष इस विशेष सत्र के खिलाफ है. अदिति सिंह ने देर रात मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात भी की और सत्र के चलते-चलते उन्हें वाई प्लस कैटेगरी की सुरक्षा भी सरकार ने मुहैया करा दी. साफ है सदन के बहाने दांव-पेच, शह-मात और लेन-देन का खेल साफ दिखाई दे रहा है.
पहले हुई सरकार के फैसले की प्रशंसा
पहले दिन आदित्य सिंह ने विपक्ष की तरफ से सरकार के लिए मैच थपथपाई तो अगले दिन गुरुवार को शिवपाल यादव ने मोर्चा संभाला. समाजवादी पार्टी से नाराज शिवपाल यादव ने महात्मा गांधी के नाम पर बुलाए गए इस सत्र में सरकार की जमकर प्रशंसा की और सदन के भीतर संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत को स्थाई सदस्यता दिलाने और हिंदी भाषा को संयुक्त राष्ट्र संघ में मान्यता दिलाने की मांग की.
शिवपाल यादव के पहले दो बसपा विधायक असलम रागिनी और बृजेश सिंह ने भी पार्टी लाइन से हटते हुए इस विशेष सत्र ने अपनी बात रखी और सरकार की तारीफ की. साफ है कि इस विशेष सत्र में विपक्ष के बहिष्कार को सरकार ने अपना प्रेस्टीज यीशु बना लिया था.
विपक्ष के वॉक आउट पर लताड़
इस विशेष की शुरुआत करते हुए योगी आदित्यनाथ ने 2 घंटे का भाषण दिया था जो अब तक किसी भी सदन में सदन के नेता के द्वारा दिया गया सबसे लंबा भाषण है. दूसरे दिन यानी गुरुवार को योगी आदित्यनाथ ने विधान परिषद में फिर भाषण दिया और इस बार 36 घंटे के चर्चा की महत्ता के अलावा विपक्ष के वॉक आउट पर भी जमकर लताड़ लगाई.
विपक्षी राजनीति करने से बाज नहीं आए: योगी
योगी ने कहा, 'हमने विशेष सत्र के लिए विपक्षी दलीय नेताओं के साथ भी बात की थी. क्या हुआ है, क्या होना है. इस पर सब मिलकर चर्चा करेंगे. जहां हमारे सदस्यों ने विचार रखे. वहीं विपक्षी इस पर राजनीति करने से बाज नहीं आए, ऐसा नहीं है कि मुर्गा बांग नहीं देगा तो सुबह नहीं होगी. बैठक में तय हुआ था फिर भी बायकॉट, मुझे आश्चर्य नहीं हुआ, दुख जरूर हुआ. गरीबी पर चर्चा से खुद को दूर कर लेते हैं जिसका उदाहरण है कि 24 घंटे से सदन चल रहा है लेकिन विपक्ष नदारद है.'
योगी सरकार ने दिखाई ताकत
योगी आदित्यनाथ को विपक्ष की गैर-मौजूदगी खूब खली है. शायद यही वजह है कि उन्होंने भी ठान रखा था कि अगर विपक्ष सदन में नहीं आएगा तो विपक्ष को तोड़कर लाएंगे और यही हुआ जब कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बसपा तीनों ही पार्टियों के विधायक और विधान परिषद के सदस्य इस विशेष सत्र में इक्के दुक्के तादात में पहुंचे. भले ही उनकी तादाद 2-2 की रही हो लेकिन इसी बहाने पार्टियों के भीतर मची कलह सामने आ गई और सरकार ने भी अपनी ताकत दिखा दी.
गांधी के नाम पर चर्चा खूब हुई लेकिन पक्ष और विपक्ष के सियासी दांव-पेंच में चर्चा खो गई. पूरी चर्चा इस पर सिमट गई कि शह और मात के खेल में कौन पक्ष, कौन से दांव चल रहा है.