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वक्फ की संपत्तियों पर योगी सरकार का सर्वे... जानें क्या है मकसद, क्यों पड़ी जरूरत?

उत्तर प्रदेश में वक्फ की संपत्तियों का योगी सरकार ने सर्वे कराने फैसला किया है. इसके तहत 33 साल बाद वक्फ संपत्तियों के रिकॉर्ड में कब्रिस्तान, मस्जिद, ईदगाह जैसी स्थिति में सही दर्ज है या नहीं, इन सबका अवलोकन राजस्व अभिलेख में एक महीने के अंदर दर्ज करने के लिए कहा गया. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं वक्फ संपत्तियों का सर्वे क्यों सरकार करा रही है और इसके पीछे क्या मकसद है? आइये जानते हैं...

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यूपी: वक्फ बोर्ड का दफ्तर
यूपी: वक्फ बोर्ड का दफ्तर

योगी सरकार ने 33 साल पुराने आदेश को रद्द करते हुए वक्फ बोर्ड की संपत्तियों का सर्वे कर एक महीने में राजस्व अभिलेखों में दर्ज करने के आदेश दिए हैं. सूबे के सभी 75 जिलों में जितनी भी जमीन वक्फ की है, उसे वक्फ के नाम से अभिलेखों में दर्ज किया जाएगा. इसके अलावा वक्फ संपत्तियों की जो भी जमीन हड़पी गई या फिर किसी को बेच दिया गया, उसे भी सर्वे के जरिए चिन्हित किया जाएगा. 

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यूपी अल्पसंख्यक कल्याण विभाग ने वक्फ संपत्तियों के सर्वे के संबंध में शासनादेश जारी किया. इसके तहत 7 अप्रैल 1989 से लेकर अब तक यानी पिछले 33 साल में वक्फ बोर्ड की जो बंजर, ऊसर सहित अन्य भूमि थी, जिनका रिकॉर्ड नहीं दर्ज किया गया, अब उनका ब्योरा जुटाया जाएगा. उत्तर प्रदेश वक्फ अधिनियम 1960 को लागू करते हुए वक्फ बोर्ड की सभी संपत्तियों का रिकॉर्ड मेंटेन किया जाएगा. ऐसी संपत्तियों के रिकॉर्ड में कब्रिस्तान, मस्जिद, ईदगाह जैसी संपत्तियां सही स्थिति में दर्ज हैं या नहीं, इसका पता लगाया जाएगा. 

वक्फ मैनेजमेंट सिस्टम ऑफ इंडिया के मुताबिक देश में करीब 8 लाख 55 हजार 891 संपत्तियां ऐसी हैं जो वक्फ की हैं. देशभर में 32 वक्फ बोर्ड हैं. सेना और रेलवे के बाद देश में संपत्ति के मामले में वक्फ तीसरा सबसे बड़ा भूमि मालिक है. उत्तर प्रदेश में सबसे ज्याकदा वक्फ़ड संपत्ति है. यूपी में सुन्नी वक्फव बोर्ड के पास कुल 2 लाख 10 हजार 239 संपत्तियां हैं, जबकि शिया वक्फप बोर्ड के पास 15 हजार 386 संपत्तियां हैं. यूपी और बिहार में शिया-सुन्नी की अलग-अलग संपत्तियां और बोर्ड हैं.

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क्या होती है वक्फ संपत्ति? 

वक्फ अरबी भाषा के वकुफा शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है ठहरना. वक्फ का मतलब है ट्रस्ट-जायदाद को जन-कल्याण के लिए समर्पित करना. इस्लाम में वक्फ उस संपत्ति को कहते हैं, जो अल्लाह के नाम पर जन-कल्याण के लिए दान कर दी जाती है. एक बार संपत्ति वक्फ हो गई तो फिर उसे मालिक वापस नहीं ले सकता है. वक्फ भी दो तरह की होती हैं,  एक वक्फ अलल औलाद और दूसरा अलल खैर. 

वक्फ अलल औलाद का मतलब यह वक्फ संपत्ति परिवार के ही किसी शख्स के लिए होगी. उस वक्फ का मुतवल्ली(प्रबंधक) का पद परिवार के सदस्य के पास ही रहेगा, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहेगा. दूसरा वक्फ अलल खैर इसका मतलब यह सार्वजनिक वक्फ है. इस सपत्ति को जनता के लिए वक्फ किया गया है. इसकी देखभाल की जिम्मेदारी वक्फ बोर्ड की होती है, जिसके देखभाल के लिए वक्फ बोर्ड एक मुतव्वली(प्रबंधनक) नियुक्त करता है. 

वक्फ बोर्ड की कितनी होती है ताकत?

वक्फ संपत्तियों की देख-रेख के लिए अलग-अलग राज्य में वक्फ बोर्ड हैं. 1995 में पीवी नरसिम्हा राव की कांग्रेस सरकार ने वक्फ एक्ट 1954 में संशोधन किया और नए-नए प्रावधानों को जोड़कर वक्फ बोर्ड को काफी शक्तियां देने का काम किया. वक्फ एक्ट 1995 का आर्टिकल 40 कहता है कि वक्फ जमीन किसकी है, यह वक्फ का सर्वेयर और वक्फ बोर्ड तय करेगा.

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दरअसल, वक्फ बोर्ड का एक सर्वेयर होता है. वही तय करता है कि कौन सी संपत्ति वक्फ की है, कौन सी नहीं. इस निर्धारण के तीन आधार होते हैं. अगर किसी ने अपनी संपत्ति वक्फ के नाम कर दी, अगर कोई मुसलमान या मुस्लिम संस्था जमीन की लंबे समय से इस्तेमाल कर रहा है या फिर सर्वे में जमीन का वक्फ की संपत्ति होना साबित हुआ. बड़ी बात है कि अगर आपकी संपत्ति वक्फ की संपत्ति बता दी गई तो आप उसके खिलाफ वक्फ एक्ट 2013 संशोधन के तहत लोअर कोर्ट में अपील नहीं कर सकते. उसके लिए वक्फ ट्राइब्यूनल में जाना होगा. 

वक्फ ट्राइब्यूनल में प्रशासनिक अधिकारी होते हैं. ट्राइब्यूनल में कौन लोग होंगे, इसका निर्णय राज्य सरकार करती है. ट्राइब्यूनल में हिंदू और मुस्लिम दोनों ही समुदाय से प्रशासनिक अधिकारी हो सकते हैं. हालांकि, अक्सर राज्य सरकारों की कोशिश यही होती है कि वक्त बोर्ड का गठन ज्यादा से ज्यादा मुस्लिमों से हो. वक्फ एक्ट का सेक्शन 85 कहता है कि ट्राइब्यूनल के फैसले को हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती नहीं दी जा सकती. 1995 का कानून यह जरूर कहता है कि किसी निजी संपत्ति पर वक्फ बोर्ड अपना दावा नहीं कर सकता, लेकिन अगर वक्फ बोर्ड को लगता है कि कोई संपत्ति वक्फ की है तो सर्वेयर के जरिए उसे ले सकता हैं. 

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तीन दशक के बाद हो रहा है सर्वे

यूपी की वक्फ संपत्तियों के सर्वे का आदेश योगी सरकार ने दिया है. केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय के द्वारा कौमी वक्फ बोर्ड तरक्कियाती योजना के तहत भारत की सभी वक्फ संपत्तियों की जियो टैगिंग एवं डिजिटाइजेशन का काम चल रहा है. इसी के तहत यूपी की सभी वक्फ संपत्तियों का सर्वे किया जा रहा है, जो यूपी में करीब तीन दशक के बाद किया जा रहा है. 1985-87 में आखिरी बार वक्फ संपत्तियों का सर्वे किया गया था, लेकिन योगी सरकार ने 1989 के सर्वे को आधार माना हैं. 

वक्फ वेल्फेयर फोरम के चेयरमैन जावेद अहमद बताते हैं कि योगी सरकार कोई नया काम नहीं कर रही बल्कि पहले भी इस तरह के कई शासनादेश जारी हो चुके हैं जिसमें वक्फ प्रॉपर्टी को राजस्व अभिलेखों में दर्ज करने के निर्देश दिए गए थे. उत्तर प्रदेश में 1985-87 में एक जनरल सर्वे वक्फ संपत्तियों का कराया गया. वक्फ एक्ट के तहत वक्फ संपत्तियों के लिए हर दस साल पर सर्वे करने का प्रावधान है, सरकार ने उसी दिशा में कदम उठाया है. मुस्लिमों को भी आगे आकर वक्फ सर्वे में वक्फ संपत्तियों को चिन्हित और उन्हें राजस्व के अभिलेखों में दर्ज कराने का काम में सहयोग करना चाहिए. 

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अहमद ये भी कहते हैं कि योगी सरकार वाकई वक्फ संपत्तियों को भू-माफिया से बचाना और सुरक्षित रखना चाहती है तो वक्फ की संपत्तियों को भूलेख में शामिल करे ताकि परती, श्मशान घाट, तलाब की जमीन की तरह वक्फ संपत्ति को न तो कोई बेच सके और न कोई खरीद सके. केरल,  कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों ने भू-अभिलेख सॉफ्टवेयर के तहत इस तरह की व्यवस्था करके वक्फ संपत्ति को अतिक्रमण और भूमाफिया से बचाया है. अहमद मानते हैं कि इस सर्वे से वक्फ की संपत्ति में इजाफा ही होगा. वक्फ की जिन संपत्तियों पर अवैध कब्जा है, उसे हटाने में मदद मिलेगी. 

सात अप्रैल, 1989 को तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा जारी आदेश में कहा गया था कि यदि सामान्य संपत्ति बंजर, भीटा, ऊसर आदि भूमि का इस्तेमाल वक्फ (मसलन कब्रिस्तान, मस्जिद, ईदगाह) के रूप में किया जा रहा हो तो उसे वक्फ संपत्ति के रूप में ही दर्ज कर दिया जाए. इस आदेश के तहत प्रदेश में लाखों हेक्टेयर बंजर, भीटा, ऊसर भूमि वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज कर ली गईं, लेकिन योगी सरकार ने 33 साल पुराने आदेश को रद्द कर दिया है और वक्फ संपत्तियों का सर्वे कराने का आदेश दिया. 

वर्तमान में सरकारी जमीन यदि वक्फ में दर्ज है, लेकिन उसका सार्वजनिक उपयोग हो रहा है तो ठीक है पर यदि इन पर अनधिकृत कब्जे हैं तो सरकार कार्रवाई कर सकती है. ऐसी शिकायतें आई हैं कि सार्वजनिक उपयोग की भूमि को 33 साल पुराने आदेश के क्रम में पहले वक्फ में दर्ज कराया गया और फिर बेचा गया. आवासीय कॉलोनियां तक डेवलेप हुईं और व्यावसायिक गतिविधियां संचालित हो रही हैं. ऐसे में योगी सरकार सर्वे के बाद इनपर कार्रवाई कर सकती है. 

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अल्पसंख्यक कल्याण एवं वक्फ मंत्री धर्मपाल सिंह ने कहा कि वक्फ की जमीन ईश्वर की जमीन है. उस पर कब्जे का किसी को अधिकार नहीं. वक्फ संपत्तियों का सर्वे कराकर अवैध कब्जे वाली जमीन की निशानदेही की जाएगी. उसके बाद ही आगे की कार्रवाई होगी. हम चाहते हैं कि वक्फ की ऐसी जमीन से अवैध कब्जे हटाकर, वहां पर अस्पताल और स्कूल आदि बनें ताकि अल्पसंख्यकों को इससे लाभ हो. सरकार नेक नीयत से सर्वे करा रही है.

असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM मदरसा सर्वे की तरह वक्फ सर्वे पर भी योगी सरकार की मंशा पर सवाल जरूर खड़ा कर रही है. एआईएमआईएम के नेता आसिम वकार कहते हैं पिछले 15 सालों में शिया और सुन्नी वक्फ बोर्डों में बड़े घोटाले हुए हैं. शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन ने तो घोटालों का रिकॉर्ड ही तोड़ दिया था. मामले में सीबीआई जांच हुई, एफआईआर हुई, लेकिन रिपोर्ट कहां है और कार्रवाई क्या हुई. वहीं, असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि यूपी सरकार का आदेश गैरकानूनी है, जिसे वापस लिया जाना चाहिए. ऐसा करके मुसलमानों को व्यवस्थित तरीके से निशाना बनाया जा रहा है. इस वक्त शिया और सुन्नी वक्फ बोर्ड क्या कर रहे हैं. ओवैसी ने कहा कि यह एक तरह से छोटी एनआरसी है.

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सपा के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने कहा कि सरकार ने मदरसों की जांच कराकर देख लिया. अब वक्फ की जांच कराकर भी देख लें. हम किसी भी जांच के लिए मना नहीं कर रहे हैं. हम इससे डरते नहीं हैं. ये जांच केवल मुसलमानों को खौफजदा करने के लिए की जा रही हैं, जिससे 2024 के चुनाव में मुसलमान डर की वजह से भाजपा को वोट दें. वक्फ संपत्तियों की जांच की बात करके ये लोग असल मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाना चाहते हैं. ये किसी भी तरह 2024 का चुनाव जीतने के लिए साजिश कर रहे हैं. मगर, ये होने वाला नहीं है क्योंकि पूरा विपक्ष एक होने जा रहा है.
 

 

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