उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग ने पीसीएस 2021 का फाइनल रिजल्ट घोषित कर दिया है. यूपी पीसीएस में 678 पदों के सापेक्ष 627 अभ्यर्थी सफल घोषित किए गए हैं. जौनपुर के निशांत उपाध्याय ने प्रदेश में चौथा स्थान प्राप्त किया है. निशांत का ये छठवां प्रयास था. उन्होंने मैकेनिकल से इंजीनियरिंग करने के बाद UPPCS की तैयारी शुरू की थी. निशांत को लगन का पक्का माना जाता है. निशांत ने आईएएस के लिए भी तीन प्रयास किए हैं. दो बार इंटरव्यू में सफलता नहीं मिली. तीसरे प्रयास का रिजल्ट आना बाकी है.
बता दें कि निशांत उपाध्याय का परिवार जौनपुर में खरका कॉलोनी हुसैनाबाद में रहता है. पिता डॉ. प्रशांत कुमार उपाध्याय वाराणसी जिले के पिंडरा स्थित पटौना गांव के मूल निवासी हैं. वे जौनपुर में रहकर प्रैक्टिस करते हैं. निशांत के पिता नेत्र विशेषज्ञ हैं और मां गृहिणी. बड़ी बहन डॉ. शालिनी उपाध्याय डेंटिस्ट हैं. दिल्ली में उनका क्लीनिक है. 3 भाई-बहनों में निशांत और सुशांत जुड़वा भाई हैं. सुशांत से 5 मिनट छोटे हैं. निशांत और सुशांत दो दिन पहले झारखंड में अपने मामा के यहां गए थे. प्रदेश में चौथा स्थान मिलने की खुशी से वे फूले नहीं समा रहे हैं.
5 बार असफलता, फिर छठवें प्रयास में हिस्से आई सफलता
इस संबंध में आजतक ने निशांत उपाध्याय ने बातचीत की है. निशांत कहते हैं- 'पूर्वांचल में ग्रेजुएशन के बाद सिविल सर्विसेज में जाने का एक ट्रेंड है. 2015 के बाद यूपीएससी का एग्जाम देना शुरू किया. 5 बार असफलता मिलने के बाद छठवीं बार सफलता हासिल हुई. इंटर में पापा चाहते थे कि मैं बायो से पढ़ाई करूं और डॉक्टर बनूं. लेकिन मेरी रुचि मैथ में थी, इसलिए मैंने इंटर पास करके इंजीनियरिंग की. 2011 में मेरा सिलेक्शन मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए एनआईटी दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल) के लिए हो गया.'
कोरोनाकाल में घर में रहकर तैयारी की
निशांत आगे कहते हैं- 'इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के दौरान ही मेरा कैंपस सिलेक्शन हो गया. सोनभद्र के हिंडाल्को में मेरी पोस्टिंग हो गई. मैंने नौकरी छोड़कर दिल्ली में सिविल सर्विसेज की तैयारी शुरू कर दी. कंटीन्यू 5 साल सफलता नहीं मिली. कोरोनाकाल में मैंने घर से तैयारी की. 2021 यूपी पीसीएस की परीक्षा दी, जिसमें मुझे पूरे प्रदेश में चौथी रैंक मिली, इसके लिए मैं अपने माता-पिता, भाई और परिवार के लोगों और इष्ट मित्रों को श्रेय देता हूं.'
बेटे की ख्वाहिश थी आईएएस-आईपीएस
निशांत के पिता डॉक्टर प्रदीप कुमार उपाध्याय ने कहा- 'बहुत खुशी है. बहुत अच्छा लग रहा है. ये शुभ संदेश जब से मिला, तब से बहुत अच्छा लग रहा है. बहुत प्राउड फील कर रहा हूं. बेटे की पहले से ख्वाहिश थी कि मैं आईपीएस-आईएएस बनूंगा. मैंने कहा कि ठीक है. निशांत ने आईएएस और पीसीएस की तैयारी की. दिल्ली जाकर सिविल सर्विसेज की तैयारी की, जिसके बाद आज ये मुकाम हासिल हुआ.'
रोज 8 से 10 घंटे तक पढ़ाई करते थे निशांत
प्रदीप कहते हैं- 'निशांत ने तीन बार आईएएस की परीक्षा दी है, दो बार उसका सिलेक्शन नहीं हो पाया. तीसरी बार का परिणाम आना बाकी है. उम्मीद है कि एक दिन उनका बेटा आईएएस की परीक्षा में भी महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त करेगा. निशांत और सुशांत एक साथ दिल्ली में सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहे हैं. निशांत शुरुआती दौर से ही काफी होनहार रहा है. पीसीएस की परीक्षा के लिए वह रोज 8 से 10 घंटे की पढ़ाई करता था. निशांत ने शुरुआती पढ़ाई जौनपुर के रिजवी लर्नर्स अकैडमी से की है.'
'भाग्य ने साथ नहीं दिया, ये अलग बात है'
'इंटर की परीक्षा में भी निशांत ने सीबीएसई बोर्ड में जौनपुर जिले में दूसरा स्थान प्राप्त किया था. कल जो परिणाम आया, उसमें बेटे को यूपी में चौथी रैंक मिली, जिसकी खुशी पूरे परिवार और इष्ट मित्रों को भी है. बच्चे का कभी हौसला नहीं डिगा. बच्चे से मैं कहता रहा कि एक दिन अच्छा मौका मिलेगा. बच्चे से हर समय कहता था कि आगे बढ़ते रहिए और हमेशा रिजल्ट अच्छा आता रहा. मुझे पूरी उम्मीद थी कि एक दिन पीसीएस जरूर बनेगा. भाग्य साथ नहीं दे रहा था, ये अलग बात है. वह कब सोता था, कब जागता था- ये सब पता ही नहीं चलता था. सिलेक्शन होना, ना होना अलग बात है. उसने तीन बार प्री क्वालीफाई किया. मैन क्वालिफाई किया. इंटरव्यू तक पहुंचा. भाग्य ने साथ नहीं दिया. आखिरकार छठवें प्रयास में बच्चे की मेहनत रंग लाई.
बेटा समय से पढ़ाई करता था
निशांत की मां ने कहा- बेटे का पढ़ाई में बहुत इन्ट्रेस्ट रहता है. उसे कुछ कहना नहीं पड़ता था. टाइम से उठना, टाइम से पढ़ना- उसका रोज की दिनचर्या का हिस्सा था. जुड़वा होने के कारण दोनों शरारत करते थे, लेकिन दोनों जब थोड़ा बड़े हुए तो बहुत ही शालीन हो गए. बेटे की सफलता से उन्हें काफी प्रसन्नता हो रही है.
उम्मीद से बेहतर रिजल्ट आया है
निशांत की बहन डॉ. शालिनी उपाध्याय कहती हैं कि वे काफी प्राउड फील कर रही हैं. उनके भाई ने आज मुकाम हासिल किया. मेरे दोनों छोटे भाई का रुझान सिविल सर्विसेज में ही रहा. इंटर के बाद दोनों भाइयों का रुझान था कि उन्हें सिविल सर्विसेज में ही जाना है. फाइनल रिजल्ट आपके सामने है. भाई का इतना अच्छा रिजल्ट आया कि इमोशनल तो हो ही जाते हैं. अनएक्सपेक्टेड रिजल्ट आया.
निशांत ने ठान लिया था, इसलिए मुकाम मिल गया
निशांत को इंटर तक पढ़ाने वाले अध्यापक संजय मिश्रा कहते हैं कि पूत के पांव पालने में ही नजर आने लगते हैं. बच्चा जब मेधावी होता है और एकाग्र होता है तो मेरे ख्याल से वह कोई भी उपलब्धि हासिल कर लेता है. मैं इस परिवार से बहुत दिन से जुड़ा हुआ हूं. मुझे एक वाकया याद आता है. जब भैया किराए के मकान में रहते थे- बच्चे सिक्स-सेवेन में थे. उस समय बच्चों में एक ललक थी कुछ कर गुजरने की. बच्चे में उस समय भी कुछ पाने की ललक थी. एक टीचर की हैसियत से कोई भी बच्चा अगर ये चाह ले- उसे यह पाना है तो वह प्राप्त कर लेगा. मुझे काम करना है- यहां तक पहुंचना है. अगर कोई सतत प्रयास करेगा तो उसे उपलब्धि मिलेगी. हमारा बच्चा जीता जागता उदाहरण है.
(रिपोर्ट- राजकुमार सिंह)