उत्तर प्रदेश की आठ विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव को लेकर राजनीतिक समीकरण बनाए जाने लगे हैं. बीजेपी ने उपचुनाव वाली सीटों पर संगठनात्मक गतिविधियां तेज कर दी हैं. उपचुनाव वाले क्षेत्र के सेक्टर प्रभारी और संयोजकों की प्रशिक्षण कार्यशालाओं में बीजेपी ने उन्हें चुनावी जीत के मंत्र दिए गए हैं. 'बूथ जीता तो चुनाव जीता' फार्मूला के तहत बीजेपी सभी सीट पर जीत का परचम फहराने की कवायद में है.
बता दें कि सूबे के आठ विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होने हैं. इसमें घाटमपुर, मल्हनी, स्वार, बुलंशहर, टूंडला, देवरिया, बांगरमऊ व नौगावां सादात विधानसभा सीट शामिल है. यूपी की जिन आठ सीटों पर उपचुनाव होने हैं, उसमें से छह बीजेपी और दो समाजवादी पार्टी के कब्जे वाली हैं. भले ही इन सीटें के चुनावी नतीजों से विधानसभा में बहुमत पर कोई असर नहीं पड़े. लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव के लिए बड़ा राजनीतिक संदेश के तौर पर देखा जाएगा.
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और महामंत्री संगठन सुनील बंसल ने उपचुनाव वाले क्षेत्र के कार्यकर्ताओं के साथ रविवार को प्रशिक्षण कार्यशाला अयोजित की. इस दौरान उन्होंने मतदाता सूचियों को दुरस्त कराने के साथ संभावित उम्मीदवारों के नामों पर भाजपाइयों का मन टटोलने का काम किया है. जौनपुर में मल्हनी सीट पर अन्य किसी दल से गठबंधन नहीं करने पर कार्यकर्ताओं ने जोर दिया, क्योंकि माना जा रहा कि यह सीट निषाद पार्टी के खाते में जा सकती है.
यूपी की जिन आठ सीटों पर उपचुनाव होने हैं, उनमें से दो रामपुर की स्वार और जौनपुर की मल्हनी सीट सपा के कब्जे में थीं. इन सीटों पर फतह भाजपा के लिए लोहे के चने चबाने जैसा है. ऐसा इसलिए क्योंकि रामपुर में आजम खान और जौनपुर में पारसनाथ यादव व बाहुबली धनंजय उसे हमेशा पीछे धकेलते रहे हैं. परसनाथ का निधन हो गया है. ऐसे में उनके परिवार का कोई चुनाव मैदान में उतर सकता है. धनंजय सिंह अभी जमानत पर जेल से बाहर आए हैं, जिससे उनके चुनाव लड़ने की पूरी संभावना है. हालांकि, इतिहास गवाह है कि इन दोनों सीटों पर बीजेपी को कभी जीत नसीब नहीं हुई.
जौनपुर की मल्हनी सीट पर ठाकुरों और यादवों का बोलबाला रहा है. सपा के पारसनाथ यादव यहां से जीतते रहे, क्योंकि यादव वोट उन्हें एकमुश्त मिलते रहे. हालांकि, धनंजय सिंह भी यहां से जीत का परचम फहराने में कामयाब रहे हैं. 2012 में उनकी पत्नी डॉ. जागृति सिंह और फिर 2017 के चुनाव में धनंजय सिंह को लगभग 50 हजार वोट मिले थे, लेकिन जीत नहीं मिल सकी थी. एक बार फिर से चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं और निषाद पार्टी से किस्मत आजमाना चाहते हैं. हालांकि, धनंजय सिंह दो बार सपा को हराकर विधायक रह चुके हैं.
रामपुर की स्वार विधानसभा पर भी बीजेपी ने कभी जीत का स्वाद नहीं चखा है. हालांकि, नंबर दो की हैसियत जरूर बनाकर रखने में कामयाब रही है. यहां से आजम खान के बाद अब्दुल्ला आजम खान 2017 में जीतकर विधायक बने थे. लेकिन उनकी सदस्यता खत्म हो गई है और फिलहाल जेल में बंद है. ऐसे में बीजेपी इस सीट पर खाता खोलने के लिए बेताब है. हालांकि, देखना होगा कि उपचुनाव में बीजेपी क्या गुल खिलाती है.