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छोटा गठबंधन-बड़ा फायदा, यूपी में BJP का फॉर्मूला अपना रहीं विपक्षी पार्टियां

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी के गठबंधन फॉर्मूले पर ही सूबे की प्रमुख विपक्षी पार्टियां चलती दिख रही हैं. सपा-बसपा और कांग्रेस आपस में हाथ मिलाने के बजाय छोटे दलों के साथ हाथ मिला रही हैं. बीजेपी ने इसी रणनीति के तहत पिछले चुनावी में यूपी की सियासी जंग फतह की थी, अब देखना है कि विपक्षी पार्टियां क्या राजनीतिक गुल खिलाती हैं? 

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आरएलडी जयंत चौधरी और सपा प्रमुख अखिलेश यादव
आरएलडी जयंत चौधरी और सपा प्रमुख अखिलेश यादव
स्टोरी हाइलाइट्स
  • यूपी में पांच छोटे दलों ने आपस में मिलाया हाथ
  • अखिलेश बड़े दलों के के बजाय छोटे दल के साथ
  • बसपा बिहार का फॉर्मूला क्या यूपी में अपनाएगी

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भले ही अभी सवा साल का समय बाकी हो, लेकिन राजनीतिक दलों ने अपने-अपने सियासी समीकरण और गठजोड़ बनाने शुरू कर दिए हैं. बीजेपी के गठबंधन फॉर्मूले पर ही सूबे की प्रमुख विपक्षी पार्टियां चलती दिख रही हैं. सपा-बसपा और कांग्रेस आपस में हाथ मिलाने के बजाय छोटे दलों के साथ हाथ मिला रही हैं. बीजेपी ने इसी रणनीति के तहत पिछले चुनावी में यूपी की सियासी जंग फतह की थी, अब देखना है कि विपक्षी पार्टियां क्या राजनीतिक गुल खिलाती हैं? 

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सपा की इन दलों के साथ केमिस्ट्री

सपा प्रमुख अखिलेश यादव अब बड़े दलों के बजाय छोटे दलों के साथ हाथ मिलाने के फॉर्मूले को लेकर चल रहे हैं. अखिलेश यादव लगातार यह बात कह रहे हैं कि 2022 में बसपा और कांग्रेस जैसे दलों के साथ गठबंधन करने के बजाय छोटे दलों के साथ मिलकर लड़ेंगे. इस कड़ी में सपा ने महान दल के साथ हाथ मिलाया है और हाल ही में हुए उपचुनाव में चौधरी अजित सिंह की पार्टी राष्‍ट्रीय लोकदल के लिए एक सीट छोड़ी थी, जिसके यह संकेत हैं कि आगे भी वह अजित सिंह के साथ तालमेल कर सकते हैं. 

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लोकसभा चुनाव में जनवादी पार्टी के संजय चौहान, सपा के चुनाव निशान पर चंदौली में चुनाव लड़कर हार चुक‍े हैं और वह भी अखिलेश यादव के साथ सक्रिय हैं. इसके अलावा अखिलेश ने सपा से विद्रोह कर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) बनाने वाले अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव की सीट पर 2022 में प्रत्याशी न उतारने की बात कह कर साफ कर चुके हैं कि उन्हें भी अडजस्ट किया जा सकता है.

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बड़े दलों के साथ सपा का अनुभव
बता दें कि पिछले विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ समझौता कर चुनाव मैदान में उतरे थे और अपनी सत्‍ता गवां दी थी. इसके बाद 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में अखिलेश ने मायावती के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा, लेकिन सपा को बहुत लाभ नहीं मिला. सपा सिर्फ पांच सीटों पर ही रह गई लेकिन बसपा को 10 सीटें जरूर मिल गईं. यही वजह है कि अखिलेश अब बड़े दलों के बजाय छोटे दलों के साथ चुनाव लड़ने के फॉर्मूले पर चल रहे हैं. 
 

कांग्रेस की नजर छोटे दलों पर
उत्‍तर प्रदेश में कांग्रेस भी इस बार नए प्रयोग की तैयारी में है और वह भी इस बार चुनाव में छोटे दलों से समझौता कर चुनाव लड़ने की रणनीति पर काम कर रही है. कांग्रेस के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने बताया कि अभी हमारी कोशिश पार्टी संगठन को ग्राम स्तर पर मजबूत करने की है, जिसे दिसंबर तक पूरा कर लिया जाएगा. इसके बाद गठबंधन को लेकर कोई बात करेंगे, लेकिन हमारी कोशिश जरूर है कि सूबे के जो भी छोटे दल हैं, उन्हें साथ लेकर चलें. कांग्रेस पहले भी छोटे दलों को सियासी तरजीह देती रही है. 

पश्चिमी उत्‍तर प्रदेश के उभरते दलित नेता चंद्रशेखर आजाद ने अपनी भीम आर्मी के राजनीतिक फ्रंट आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के बैनर तले उपचुनाव के जरिए सियासी एंट्री की है. आजाद समाज पार्टी के उम्‍मीदवार को बुलंदशहर में मिले मतों के आधार पर चंद्रशेखर दलित समाज में अपनी पैठ मजबूत करने में कामयाब हो रहे हैं. बिहार की तीन सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद 2022 के चुनाव को लेकर उनकी तैयारी करने में जुटे हैं. चंद्रशेखर की प्रियंका गांधी के साथ अच्छी बॉन्डिंग है. ऐसे में भीम आर्मी के कांग्रेस के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. इसके अलावा अय्यूब अंसारी की पीस पार्टी पर भी कांग्रेस की नजर है. 

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बसपा क्या बिहार के फॉर्मूले पर चलेगी?
मायावती बिहार विधानसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा की राष्‍ट्रीय लोक समता पार्टी के गठबंधन में शामिल हुईं जिसमें असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM और ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) भी शामिल थी. इस गठबंधन ने बिहार में 6 सीटें जीती हैं, जिनमें 5 AIMIM और एक बसपा को मिली है. हालांकि, यूपी में मायावती इस फॉर्मूले पर चुनावी मैदान में उतरेंगी इसे लेकर तस्वीर साफ नहीं है, लेकिन AIMIM के प्रदेश अध्यक्ष शौकत अली ने बसपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की इच्छा जरूर जतायी है. उन्होंने कहा कि मायावती और असदुद्दीन ओवैसी मिलकर ही सूबे में बीजेपी को सत्ता में आने से रोक सकते हैं. 

छोटे दलों का आपसी गठबंधन 
उत्तर प्रदेश के पांच छोटे दलों ने बड़े दलों के साथ जाने के बजाय आपस में ही हाथ मिलाकर चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया है. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर के नेतृत्व में बाबू सिंह कुशवाहा की जनाधिकार पार्टी, अनिल सिंह चौहान की जनता क्रांति पार्टी, बाबू राम पाल की राष्ट्र उदय पार्टी और प्रेमचंद्र प्रजापति की राष्ट्रीय उपेक्षित समाज पार्टी ने भागीदारी संकल्प मोर्चा के नाम से नया गठबंधन तैयार किया है. यूपी की पिछड़ी जातियों के नेताओं का गठबंधन है. ओम प्रकाश राजभर ने मंगलवार को ही इस गठबंधन का ऐलान किया है और उन्होंने कहा कि जिस पार्टी के समाज की जहां भागेदारी होगी, वहां पर वो पार्टी चुनावी मैदान में किस्मत आजमाएगी. 

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बीजेपी का सफल गठबंधन फॉर्मूला
बता दें कि उत्‍तर प्रदेश में साल 2002 से ही छोटे दलों से गठबंधन की राजनीति शुरू कर जातियों को सहेजने की पुरजोर कोशिश की है, लेकिन इसका सबसे प्रभावी असर 2017 के विधानसभा चुनाव में देखने को मिला, जब बीजेपी ने सूबे में अपने सत्ता का वनवास खत्म करने के लिए अनुप्रिया पटेल की अपना दल (एस) और ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के साथ गठबंधन का प्रयोग किया. 

उत्‍तर प्रदेश में पिछड़े वर्ग में प्रभावी कुर्मी समाज से आने वालीं सांसद अनुप्रिया पटेल इस दल की अध्‍यक्ष हैं. जबकि अति पिछड़े राजभर समाज के नेता ओमप्रकाश राजभर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का नेतृत्‍व करते हैं. बीजेपी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में सुभासपा को 8 और अपना दल को 11 सीटें दीं जबकि खुद 384 सीटों पर मैदान में लड़ी थी. बीजेपी को 312, राजभर को 4 और अपना दल (एस) को 9 सीटों पर जीत मिली थी. हालांकि, ओम प्रकाश राजभर ने बाद में पिछड़ों के हक का सवाल उठाते हुए बीजेपी से नाता तोड़ लिया है. ऐसे में बीजेपी और अपना दल (एस) अभी भी एक साथ हैं और माना जा रहा है कि 2022 में फिर एक साथ चुनावी मैदान में उतर सकते हैं. 

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