सपा-बसपा का गठबंधन भले ही आंतरिक तौर पर तय हो गया हो लेकिन उत्तर प्रदेश में 2019 के लिए बड़े गठबंधन को लेकर अभी कई पेंच बाकी हैं. कैराना और नूरपुर का उपचुनाव 28 मई को होना है जिसकी दावेदारी कांग्रेस ने ठोक दी है.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के बड़े नेता इमरान मसूद ने कैराना में आरएलडी को समर्थन देने और नूरपुर में कांग्रेस के चुनाव लड़ने का एलान भी कर दिया था, उधर समाजवादी पार्टी दोनों सीटों पर अपनी दावेदारी ठोक चुकी है.
कांग्रेस की हैसियत 2 सीटों की
इस उपचुनाव से पहले कांग्रेस को लेकर सपा के भीतर ही घमासान शुरू हो गया है. दो दिन पहले मुलायम सिंह यादव ने सबसे पहले इसकी शुरुआत की और सपा-बसपा गठबंधन में कांग्रेस की एंट्री को नकार दिया. मुलायम ने कहा कि 2019 में कांग्रेस से गठबंधन की कोई जरूरत नहीं है. कांग्रेस की हैसियत 2 सीटों की है इसलिए उससे ज्यादा नहीं दिया जाना चाहिए.
अबु आज़मी भी कांग्रेस के खिलाफ बगावत पर उतारू
महाराष्ट्र में समाजवादी पार्टी के प्रदेश इकाई के अध्यक्ष अबू आजमी ने भी कांग्रेस के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया है. अबू आजमी ने कहा कि महाराष्ट्र में हुए पहले के उपचुनाव में कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी को धोखा दिया. ऐसे में कांग्रेस के साथ किसी तरह का गठबंधन नहीं किया जाना चाहिए, ना ही अखिलेश यादव को कांग्रेस के लिए कर्नाटक में चुनाव प्रचार करना चाहिये. अबू आजमी ने कहा कि कांग्रेस एक अवसरवादी पार्टी है और अगर कांग्रेस से गठबंधन होता है तो वो पार्टी के खिलाफ जाकर कैंडिडेट उतारने की हद तक जा सकते हैं.
मायावती और कांग्रेस से बात कर सकते हैं अखिलेश
अखिलेश यादव ने फिलहाल दोनों उपचुनाव पर अपने पत्ते नहीं खोले हैं. आरएलडी की तरफ से अगर जयंत चौधरी खुद चुनाव लड़ते हैं तो समाजवादी पार्टी गठबंधन को लेकर सोच सकती है लेकिन सूत्रों के मुताबिक इन दोनों सीटों पर अखिलेश यादव, मायावती और कांग्रेस दोनों से बात करने के बाद फैसले के मूड में है.
बता दें कि मायावती ने गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव के तुरंत बाद ही यह ऐलान कर दिया था कि अब किसी उपचुनाव में वह न तो किसी पार्टी से गठबंधन करेंगी, ना ही किसी को समर्थन करेंगी और ना ही उनके कार्यकर्ता किसी पार्टी विशेष की मदद करेंगे. लेकिन समाजवादी पार्टी को लगता है कि जिस तरीके से राज्यसभा और विधान परिषद के चुनाव में सपा और बसपा ने एक साथ मिलकर चुनाव लड़ा है इस उपचुनाव में भी उनके जमीनी कार्यकर्ता एक होंगे हालांकि मायावती ने अभी तक अपना पत्ता नहीं खोला है.
कैराना उपचुनाव सांसद हुकुम सिंह के निधन से खाली हुई है जबकि नूरपुर विधानसभा की सीट है. इन दोनों उपचुनाव में एक बार फिर गठबंधन की परीक्षा होगी. अगर यह गठबंधन हो गया तो गोरखपुर और फूलपूर फिर से दोहरा सकता है.