पूर्वी उत्तर प्रदेश के चंदौली में वन विभाग की टीम ने दुर्लभ प्रजाति के एक चिंकारा का रेस्क्यू किया है. वन विभाग के अधिकारियों की मानें तो आवारा कुत्तों के हमले से डर कर चिंकारा ग्रामीण इलाके में आ गया था. फिलहाल इस चिंकारा को रेस्क्यू करने के बाद काशी वन्य जीव प्रभाग के अंतर्गत आने वाले चंद्रप्रभा अभयारण्य में छोड़ दिया गया है.
दरअसल चंदौली के जंगली इलाके नौगढ़ और इस इलाके से गुजरने वाली कर्मनाशा नदी के कछार में चिंकारा प्रजाति के हिरन बहुतायत में पाए जाते हैं. यह चिंकारा हिरन भी इसी इलाके से भटक कर चंदौली जिले के चहनिया क्षेत्र में आ गया था. इसकी सूचना 2 दिन पहले वन विभाग की टीम को ग्रामीणों से मिली थी. ग्रामीणों ने वनकर्मियों को बताया था कि चहनिया ब्लॉक के महरखा गांव के आसपास खेतों में एक हिरन देखा गया है. इसके बाद वन विभाग की टीम चहनिया रेंज के रेंजर खलीक अहमद के नेतृत्व में इस हिरन की तलाश में जुट गई. 2 दिनों की अथक मेहनत के बाद पता चला कि यह तो दुर्लभ चिंकारा प्रजाति का हिरन है. इसके बाद घेराबंदी करके वन विभाग की टीम ने इसे पकड़ा और इसे चंद्रप्रभा अभयारण्य में छोड़ दिया गया.
चिंकारा प्रजाति का यह हिरन वन्यजीवों में दुर्लभ प्रजाति का माना जाता है और इसे वन्य जीव के शेड्यूल-1 में रखा गया है. इसकी खासियत है कि यह काफी तेज गति से दौड़ता है और इसकी स्पीड 120 से 150 किलोमीटर प्रति घंटा हो सकती है. इसके खुर काफी नुकीले होते हैं जिसकी वजह से यह जमीन पर पकड़ बनाने में माहिर होता है लेकिन बरसात के दिनों में इसकी यही खासियत कभी-कभी इसकी जान का दुश्मन भी बन जाती है.
बरसात के दिनों में जमीन गीली होने की वजह से यह हिरन तेज नहीं दौड़ पाता क्योंकि नुकीले खुर होने की वजह से इसके पैर जमीन में धंसने लगते हैं. ऐसे में जब आवारा कुत्तों की नजर इस हिरन पर पड़ती है तो वे इसका शिकार करना चाहते हैं. यह हिरन अपनी जान बचाकर भागता है लेकिन जमीन गीली होने की वजह से तेज गति से दौड़ नहीं पाता और अक्सर इसी वजह से यह कुत्तों का शिकार बन जाता है. यह चिंकारा इस बार खुशनसीब निकला और आवारा कुत्तों से बचते हुए गांव की तरफ आ गया.
इस बारे में वन विभाग के चनिया रेंज के रेंजर खलीक अहमद ने बताया कि यह एक दुर्लभ प्रजाति का चिंकारा हिरन है जो कुत्तों के हमले के डर से भागकर ग्रामीण इलाके में आ गया था. सूचना मिलने के बाद कड़ी मशक्कत की गई और इसका रेस्क्यू करने के बाद इसे नौगढ़ के चंद्रप्रभा अभयारण्य में छोड़ दिया गया है.