कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पर फिर से निशाना साधा है. इस बार प्रियंका ने बिजली कर्मचारियों का मामला उठाया है.
प्रियंका ने कहा, 'उत्तर प्रदेश में बिजली विभाग के कर्मचारियों की जिंदगी भर की कमाई बीजेपी सरकार में डीएचएफएल में निवेश करके फंसा दी. चुनाव के दौरान मुझे तमाम सरकारी कर्मचारियों ने मिलकर नई पेंशन स्कीम को लेकर अपनी चिंता बताई थी. आज उनके शक जायज साबित हो रहे हैं.'
उत्तर प्रदेश में बिजली विभाग के कर्मचारियों की जिंदगी भर की कमाई भाजपा सरकार में DHFL में निवेश करके फँसा दी।
चुनाव के दौरान मुझे तमाम सरकारी कर्मचारियों ने मिलकर नई पेंशन स्कीम को लेकर अपनी चिंता बताई थी। आज उनके शक जायज़ साबित हो रहे हैं।#DHFL
— Priyanka Gandhi Vadra (@priyankagandhi) November 3, 2019
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा, 'गुनाहगार कौन? जिस व्यक्ति ने ईमानदारी से अपनी जिंदगी भर की कमाई आपके हाथों में भरोसे से डाली उसके लिए आपका क्या जवाब है? और कितने विभागों के कर्मचारियों की गाढ़ी कमाई ऐसी संदिग्ध कंपनियों में लगाई गई है? छोटी मछलियों को पकड़कर ध्यान भटकाने से नहीं, असली गुनाहगारों को सामने लाना होगा.'
छोटी मछलियों को पकड़कर ध्यान भटकाने से नहीं, असली गुनाहगारों को सामने लाना होगा।
— Priyanka Gandhi Vadra (@priyankagandhi) November 3, 2019
दो अधिकारी गिरफ्तार
वहीं उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टालरेंस की नीति का पालन करते हुए कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) घोटाले में एक प्राथमिकी दर्ज कर दो वरिष्ठ अधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया. राज्य सरकार ने मामले को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपने का भी निर्णय लिया है. शनिवार शाम गिरफ्तार किए गए दोनों अधिकारी ईपीएफ की धनराशि को निजी कंपनी दीवान हाउसिंग फायनेंस लिमिटेड (डीएचएफएल) में फंसाने के आरोपी हैं. इस कंपनी का संबंध माफिया डान दाऊद इब्राहिम के सहयोगी मृत इकबाल मिर्ची से है.
मुख्यमंत्री कार्यालय (लखनऊ) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने फोन पर कहा कि योगी आदित्यनाथ ने राज्य सरकार के स्वामित्व वाले यूपी पॉवर सेक्टर इम्प्लाईस ट्रस्ट के वरिष्ठ अधिकारियों के जरिए की गई वित्तीय अनियिमितता को बहुत गंभीरता से लिया है, जिसने ट्रस्ट के 2631 करोड़ रुपये को एक विवादास्पद कंपनी के साथ निवेश करते समय नियमों का उल्लंघन किया. गिरफ्तार अधिकारियों की पहचान पॉवर सेक्टर इम्प्लाईस ट्रस्ट के तत्कालीन सचिव प्रवीण कुमार गुप्ता और उत्तर प्रदेश विद्युत निगम के तत्कालीन निदेशक (फायनेंस) सुधांशु द्विवेदी के रूप में हुई है. उत्तर प्रदेश सरकार की सिफारिश पर मामले की जांच सीबीआई को स्थानांतरित की जाएगी. हालांकि तबतक यूपी पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) मामले की जांच जारी रखेगी.
लिखित अनुमति नहीं
प्राथमिकी के मुताबिक, पुलिस के जरिए गिरफ्तार दोनों अधिकारियों ने डीएचएफएल को निधि हस्तांतरित करने से पहले सरकार शीर्ष अधिकारियों से लिखित अनुमति नहीं ली थी. डीएचएफएल के प्रमोटरों कपिल वधावन और धीरज वधावन से हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने पूछताछ की थी. उनकी कंपनियों का संबंध दाऊद गिरोह से होने का आरोप है. डीएचएफएल को ट्रस्ट से 17 मार्च, 2017 से लेकर भारी मात्रा में धनराशि हस्तांतरित की गई थी. इसके दो दिन बाद ही योगी आदित्यनाथ ने यूपी के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी.
सूत्रों ने कहा कि राज्य पुलिस अब इस बात का पता लगाएगी कि आखिर किसके निर्देश पर एक विवादित निजी कंपनी को 2631 करोड़ रुपये की ईपीएफ राशि हस्तांतरित की गई. इस बीच, यूपी सरकार ने निर्णय लिया है कि भविष्य में कर्मचारियों के ईपीएफ के पैसे के निवेश का निर्णय केंद्र सरकार की संस्था, इंम्प्लाईस प्रोविडेंट फंड ऑर्गनाइजेशन (ईपीएफओ) लेगी. राज्य सरकार के अधिकारियों ने स्वीकार किया है कि इंम्प्लाईस ट्रस्ट ने एक निजी कंपनी में निधि निवेश का खुद से निर्णय लेकर नियमों की धज्जियां उड़ाई है. इस मामले में दो और हाउसिंग कंपनियों के नाम सामने आए हैं, जहां कर्मचारियों के ईपीएफ के पैसे निवेश किए गए हैं.
कर्मचारियों के ईपीएफ को एक संकटग्रस्त निजी कंपनी में निवेश करने के मामले को इंजीनियरों और कर्मचारियों के यूनियन ने प्रमुखता से उठाया है. यूपीपीसीएल के अध्यक्ष को लिखे एक पत्र में कई कर्मचारी यूनियन ने सामान्य भविष्य निधि (जीपीएफ) और अंशदायी भविष्य निधि (सीपीएफ) के पैसे को डीएचएफएल में निवेश करने के निर्णय पर सवाल उठाए हैं. यूपी स्टेट इलेक्ट्रिीसिटी बोर्ड इंजीनियर्स एसोसिएशन (यूपीएसईबीईए) ने कहा है कि योगी आदित्यनाथ सरकार को अब यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह एक विवादास्पद निजी कंपनी में फंसी हजारों कर्मचारियों की गाढ़ी कमाई को वापस लाए.