बिहार में नकल का एक 'अभूतपूर्व' वीडियो हर तरफ छाया हुआ है. लड़के पर्वतारोहियों की तरह इमारत चढ़कर कमरों में चिट पहुंचा रहे हैं. बिहार सरकार और शिक्षा मंत्री निशाने पर आ गए हैं. सोशल मीडिया बिहार और उसकी छवि पर जोक्स मारने में जुटा है. लेकिन परीक्षाओं में नकल के मामले में बिहार इकलौता अग्रणी प्रदेश नहीं है. पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश भी उसे कड़ी टक्कर देता रहा है. यहां भी लोग नकल के एक-से-एक तरीके ईजाद करते रहे हैं.
यूपी बोर्ड की परीक्षाओं की मेरिट में पिछले पांच साल के दौरान 50 से अधिक मेधावी छात्र देने वाले शहर बाराबंकी में जरा तस्वीर के दो पहलू देखिए. यहां 4,000 छात्र-छात्राओं की क्षमता वाला सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालय ‘यूनियन इंटर कॉलेज’ को 2009 की बोर्ड परीक्षा के बाद महज इसलिए काली सूची में डालकर अगले पांच वर्ष के लिए अयोग्य (डीबार) कर दिया क्योंकि यहां परीक्षा दे रहे ‘चर्म शिल्प’ विषय के एक छात्र की उत्तर पुस्तिका में रोल नंबर में ‘कटिंग’ मिली थी. बोर्ड परीक्षा में शुचिता की दुहाई देकर इस कॉलेज को 2015 की परीक्षाओं से भी दूर रखा गया है.
दूसरी ओर, 2013 की बोर्ड परीक्षा के दौरान बाराबंकी शहर के निजी विद्यालय सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज में 25 मार्च को तत्कालीन जिला विद्यालय निरीक्षक (डीआइओएस) विभा शुक्ल ने एक कक्ष निरीक्षक के पास से नकल सामग्री बरामद की. उन्होंने ने फौरन केंद्र व्यवस्थापक और संबंधित शिक्षिका के खिलाफ थाने में एफआइआर दर्ज कराते हुए इस परीक्षा केंद्र को काली सूची में डालने की संस्तुति की. बावजूद इसके यूपी बोर्ड ने अपनी जांच में इस परीक्षा केंद्र को क्लीनचिट दे दी.
कुछ इसी तरह बाराबंकी शहर के रानी लक्ष्मीबाई इंटर कॉलेज, कुरौली, सरस्वती विद्या मंदिर उत्तर माध्यमिक विद्यालय, सुमेरगंज, भक्त दलगंज इंटर कॉलेज, खजुरी समेत आधा दर्जन बड़े कॉलेजों को भी क्लीनचिट मिल गई, जिनमें दो वर्ष पहले परीक्षा के दौरान गंभीर गड़बड़ियां मिली थीं. डीआइओएस विभा शुक्ल ने अपनी रिपोर्ट में इन सभी कॉलेजों का नाम काली सूची में जोड़ने की सिफारिश की थी. इनका नाम तो काली सूची में नहीं जुड़ा, अलबत्ता डीआइओएस विभा शुक्ल बाराबंकी जिले से हटा दी गईं.
वहीं सूबे की सपा सरकार के एक बेहद कद्दावर कैबिनेट मंत्री ने पिछले वर्ष 6 दिसंबर को बरेली के कमिश्नर, जिलाधिकारी और जिला विद्यालय निरीक्षक को निजी कॉलेज राजा खन्नू सिंह कठेरिया उत्तर माध्यमिक विद्यालय, शीशगढ़ और किसान जनता उत्तर माध्यमिक विद्यालय, रुद्रपुर गौटिया को परीक्षा केंद्र बनाने का फरमान जारी कर दिया. इतना ही नहीं, इन मंत्री महोदय ने पिछली बोर्ड परीक्षा में केंद्र बनाए गए वीएस कन्या इंटर कॉलेज, नवाबगंज में 2015 की बोर्ड परीक्षा न कराए जाने की संस्तुति भी कर दी. अधिकारियों ने फौरन एक आज्ञाकारी छात्र की भांति मंत्री के फरमान को अमलीजामा पहना दिया.
ये उदाहरण साफ जाहिर कर रहे हैं कि यूपी बोर्ड की परीक्षाएं नकल माफिया, अधिकारी और नेताओं के गठजोड़ में पूरी तरह से जकड़ चुकी हैं. इस वर्ष 19 फरवरी से प्रदेश के 21,000 केंद्रों में होने वाली बोर्ड परीक्षा में नकल माफिया के मनमाफिक परीक्षा केंद्र बनवाने के लिए अधिकारियों और नेताओं ने खूब दखलअंदाजी की. पिछले वर्ष की बोर्ड परीक्षाओं में गड़बड़ी करने वाले 500 से अधिक स्कूलों पर इस बार भी बोर्ड का भरोसा बरकरार है.
19 फरवरी से शुरू हो रही यूपी बोर्ड की हाइस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा में कुल 64 लाख छात्र-छात्राएं शामिल हो रहे हैं. वहीं बोर्ड के वाराणसी स्थित क्षेत्रीय कार्यालय से संबंधित जिलों में इंटर के करीब 3,500 और हाइस्कूल के 1,500 छात्र-छात्राओं का डबल रजिस्ट्रेशन मिला है. बोर्ड के एक अधिकारी बताते हैं, ‘शिक्षा माफिया ने नकल करवाने के लिए छात्रों का परीक्षा फॉर्म कई स्कूलों से भरवाया है ताकि एक जगह नकल का जुगाड़ न हो पाए तो दूसरी जगह ये छात्र परीक्षा दे सकें.’
2012 में लखनऊ के शिक्षा विभाग ने 200 से अधिक फर्जी स्कूलों को चिन्हित करके इनके खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था, बावजूद इसके ये स्कूल चोरी छिपे बोर्ड परीक्षाओं में पास कराने का धंधा चला रहे हैं. उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेश सचिव डॉ. आर.पी. मिश्र बताते हैं, ‘प्रदेश में शिक्षा माफिया के 25,000 से अधिक फर्जी स्कूल चल रहे हैं. पूरे प्रदेश में नकल का कारोबार 300 से 500 करोड़ रु. का है.’