उत्तर प्रदेश में जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख सीटों पर काबिज होने की कवायद तेज हो गई है. बीजेपी सूबे के किसी भी जिले में जिला पंचायत चुनाव में बहुमत के आंकड़े को छू नहीं पाई है. इसके बावजूद पार्टी ने सूबे के 50 से ज्यादा जिले में जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर काबिज होने का लक्ष्य रखा है, जिसके लिए संगठन से लेकर योगी सरकार तय पूरा जोर लगाएगी. देखना है कि बीजेपी सत्ता में रहते हुए प्रदेश के कितने जिलों में अपना वर्चस्व कायम कर पाती है?
बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह की अध्यक्षता और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी में दो दिन पहले सीएम आवास पर बैठक हुई थी, जिसमें केशव प्रसाद मौर्या, दिनेश शर्मा, संगठन महामंत्री सुनील बंसल मौजूद थे. दो घंटे चली बैठक में जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लाक प्रमुख के चुनाव को लेकर मंथन किया गया, जिसमें योगी सरकार और संगठन के संयुक्त प्रयास से जिला पंचायत कब्जाने की रणनीति बनाई गई है.
उम्मीदवारों का चयन के लिए प्लान
बीजेपी ने पार्टी में आपसी गुटबाजी और किसी तरह के मतभेद से बचने के लिए जिला पंचायत अध्यक्ष के उम्मीदवारों के नाम आम सहमति से तय करेगी. जिले के सांसद, विधायक और जिला अध्यक्ष मिलकर आपसी सहमति के साथ किसी एक का नाम तय कर, उसे प्रदेश कार्यकारिणी के पास भेजना होगा.
सूबे के हर जिले में पंचायत अध्यक्ष के लिए दो से तीन मजबूत दावेदार माने जा रहे हैं. ऐसे में बीजेपी ने रणनीति बनाई है कि प्रत्याशी तय करने से पहले ये भी देखना होगा कि किस संभावित उम्मीदवार के पास कितने सदस्यों का समर्थन है? कौन मजबूती के साथ चुनाव लड़ सकता है, क्योंकि जिला पंचायत सदस्यों को साधने के लिए अच्छा खासा पैसा भी खर्च करना होता है.
जातीय समीकरण साधना होगा
जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख के चुनाव के जरिए पार्टी अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को भी लेकर चल रही है. ऐसे में बीजेपी विधानसभा चुनाव 2022 के मद्देनजर जिला पंचायत और ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में जातीय समीकरण के साथ जिताऊ और टिकाऊ दावेदार को उम्मीदवार बनाने का प्लान बनाया है.
संसद और विधायक की भूमिका
जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख के दावेदारों में से तीन नाम फाइनल कर जिले स्तर से प्रदेश भेजना है. ऐसे में इन तीन नामों में से किसी के नाम पर मुहर लगेगी बाकी जिनका नाम फाइनल नहीं होगा, उन्हें मनाने और पार्टी के साथ साधकर रखने का काम सांसदों, विधायकों, जिला अध्यक्ष सहित अन्य बड़े नेताओं को करना होगा. जिला पंचायत चुनाव में स्थानीय नेताओं में खासकर विधायक और सांसद की भूमिका काफी अहम होती है.
सरकार और संगठन का संयुक्त प्रयास
जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख सीटें जीताने का लक्ष्य सरकार और संगठन का संयुक्त प्रयास होगा. बैठक में तय हुआ कि प्रदेश के मंत्रियों को उनके जिले की जिम्मेदारी दी जाएगी. ये मंत्री अपने यहां के निर्दलीय और विपक्ष के पंचायत सदस्यों को बीजेपी के साथ जोड़ने की कोशिश करेंगे. ऐसे में चुनाव तक ज्यादातर मंत्रियों, विधायकों और सांसदों को अपने जिले में रहना होगा और वहां पंचायत अध्यक्ष चुनाव के लिए समीकरण मजबूत बनाना होगा.
दरअसल, जिला पंचायत और ब्लॉक प्रमुख के चुनाव के नतीजे अगले साल विधानसभा चुनाव पर भी असर डालेंगे. ऐसे में बीजेपी पंचायत चुनाव में किसी तरह से कमजोर नहीं पड़ना चाहती है, क्योंकि सदस्यों के चुनाव में जिस तरह से सपा के हाथों बीजेपी पिछड़ी है. ऐसे में जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख का चुनाव बीजेपी सत्ता में रहते हुए हारती है तो पार्टी के लिए सियासी संदेश बेहतर नहीं होगा.