कहते हैं इस दुनिया का सबसे बड़ा बोझ होता है, किसी बाप के कांधे पर बेटे की लाश का बोझ. तकदीर, कुदरत, नियती या होनी जैसी वजहों से अगर किसी बाप के कांधे पर ये बोझ आन भी पड़ता है, तो लोग उसे दिलासा दे जाते हैं. लेकिन लोग तब क्या करें, जब ये बोझ किसी बाप को बस, सिस्टम के निकम्मेपन की वजह से उठाना पड़े? कानपुर में कुछ ऐसा ही हुआ, जहां कब के मर चुके सिस्टम ने जीते जी एक बाप के कांधे पर उसी के मासूम बेटे को मार डाला.
कानपुर के एक सरकारी अस्पताल में एक बाप अपने बीमार बेटे को कांधे पर लादे-लादे एक वार्ड से दूसरे वार्ड तक दौड़ता रहा. इसी बीच कब उस मासूम की जान चली गई, खुद उस बदनसीब बाप को भी पता नहीं चला. दिल को कोचोटने वाली यह दर्दनाक दास्तान कानपुर के हैलट अस्पताल की है.
अस्पातल में न स्ट्रेचर मिला न व्हीलचेयर
फजलगंज इलाके के रहनेवाले सुनील 26 अगस्त को अपने बीमार बेटे अंश को लेकर इलाज के हैलट अस्पताल पहुंचे. लेकिन वहां में ना तो व्हीलचेयर था और ही स्ट्रेचर. अंश की हालत बेहद खराब थी. लिहाजा, सुनील उसे लेकर अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में पहुंच गए, लेकिन वहां डॉक्टरों ने बच्चे की जांच करने या फिर कोई शुरुआती इलाज करने से पहले ही उन्हें चिल्ड्रेन वार्ड का रास्ता दिखा दिया. स्ट्रेचर या दूसरी कोई मदद नहीं मिलने के कारण सुनील बच्चे को कांधे पर लादकर इमरजेंसी से चिल्ड्रन वार्ड तक पहुंचे. कंधे पर पड़े-पड़े ही अंश की मासूम जान चली गई.
अस्पताल से नहीं मिला एंबुलेंस
यह एक बाप का दिल ही था, जो मासूम की मौत की सच्चाई को भी मान नहीं सका. सुनील इसके बाद भी अंश की लाश कंधे पर लिए-लिए डॉक्टरों से मिन्नतें करते रहे, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. हारकर उन्होंने अब अंश की लाश घर ले जाने का फैसला किया, लेकिन सिस्टम की सड़ांध ने यहां भी उनका रास्ता रोक लिया. अस्पताल से ना तो कोई शव वाहन मिला और ना ही एंबुलेंस.
कांधे पर लाश और मुख्य सड़क तक पैदल सफर
सिस्टम के मारे सुनील ने कांधे पर ही बच्चे की लाश रखकर अस्पताल से बाहर करीब दो सौ मीटर मेन रोड तक की दूरी तय की. वहां से ऑटो में किसी तरह वह अपने घर के निकले. लेकिन इन तस्वीरों ने ये दिखा दिया कि तरक्की के लाख सियासी दावों के बावजूद उत्तर प्रदेश के इस सबसे बड़े शहर में मेडिकल सुविधाओं की असलियत क्या है और सरकारी तंत्र कैसे काम करता है.