बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद पंजाब की जेल से वापस उत्तर प्रदेश की बांदा जेल में लाकर फिलहाल शिफ्ट कर दिया गया है. इसके बाद एमपी/एमएलए कोर्ट तय करेगी कि मुख्तार को किस जेल में रखा जाए? योगी सरकार के लिए मुख्तार की यूपी जेल में वापसी मुफीद लग रही है, क्योंकि वह बाहुबली होने के साथ-साथ मुसलमान भी है. पूर्वांचल की सियासत में मुख्तार अंसारी की तूती बोलती थी, लेकिन योगी सरकार ने शिकंजा कसकर एक राजनीतिक संदेश जरूर देने की कवायद की है.
पूर्वांचल की सियासत में मुख्तार का असर
मुख्तार अंसारी की यूपी जेल में वापसी ऐसे समय हुई है, जब सूबे में पंचायत चुनाव हो रहे हैं और अगले ही साल शुरू में ही विधानसभा चुनाव होने हैं. यूपी की योगी सरकार ने मुख्तार अंसारी को पंजाब से यूपी लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. ऐसे में अब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर मुख्तार अंसारी को एक बार फिर से उत्तर प्रदेश की बांदा जेल में लाकर शिफ्ट कर दिया गया है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इसका सियासी फायदा बीजेपी को यूपी चुनाव में मिल पाएगा.
बता दें कि मुख्तार अंसारी भले ही मऊ जिले की घोसी विधानसभा सीट से बसपा विधायक हो, लेकिन सियासी तूती पूर्वांचल के मऊ, गाजीपुर, बलिया, बनारस और आजमगढ़ की करीब दो दर्जन विधानसभा सीटों पर बोलती है. पूर्वांचल के इस इलाके की राजनीति में पिछले पच्चीस सालों से मुख्तार अंसारी अहम भूमिका अदा करते आ रहे हैं. मुख्तार जहां खुद विधायक हैं तो उनके बड़े भाई अफजाल अंसारी गाजीपुर से सांसद हैं. इसके अलावा मऊ से मुख्तार के करीबी अतुल राय सांसद हैं. इसीलिए मुख्तार अंसारी कभी बसपा प्रमुख मायावती के करीबी रहे तो कभी सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के आंख के तारे बने रहे.
मुख्तार को सियासत विरासत में मिली है
30 जून 1963 को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद गांव में पैदा हुए मुख्तार अंसारी का नाम अपराध की दुनिया में भले ही बदनाम है, लेकिन उनके परिवार का इतिहास उतना ही गौरवशाली है. खानदानी रसूख की जो तारीख इस घराने की है वैसी शायद ही पूर्वांचल के किसी खानदान की हो. बाहुबली मुख्तार अंसारी के दादा डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के दौरान 1926-27 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष थे तो महावीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर उस्मान मुख्तार के नाना थे.
मुख्तार अंसारी के पिता सुब्हानउल्लाह अंसारी कम्युनिस्ट नेता थे. इतना ही नहीं पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी मुख्तार के रिश्ते में चाचा लगते हैं. मुख्तार अंसारी के बड़े भाई अफजाल अंसारी ने अपने पिता की तरह कम्युनिस्ट पार्टी से सियासी पारी शुरू की थी, लेकिन मुख्तार ने बसपा की हाथी पर सवारी कर सियासत में कदम रखा. मऊ विधानसभा सीट से पांचवी बार विधायक मुख्तार अंसारी पहली बार 1996 में बसपा के टिकट पर जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. 2002, 2007, 2012 और फिर 2017 में भी मऊ से जीत हासिल की. इनमें से आखिरी तीन चुनाव उन्होंने देश की अलग-अलग जेलों में बंद रहते हुए लड़े.
अंसारी बंधुओं की कौमी एकता दल
अंसारी बुंधुओं ने सपा और बसपा से एक समय अलग होने के कौमी एकता दल के नाम से अपनी पार्टी बनाई थी. 2012 के विधानसभा चुनाव में वह इसी पार्टी के नाम पर तमाम सीटों से प्रत्याशी खड़े किए थे, वह खुद विधायक भी चुने गए, लेकिन आपराधिक रिकॉर्ड के चलते मुकदमों व जेल से रिश्ता नहीं टूटा. हालांकि, सत्तारूढ़ पार्टी सपा में अपनी कौमी एकता दल के विलय कर दिया था, लेकिन अखिलेश यादव के चलते सपा में एंट्री नहीं हो पाई थी. इसके बाद बसपा का दामन थाम लिया था. यूपी चुनाव में मुख्तार अंसारी के पूर्वांचल व मुस्लिमों में असर को देखते हुए मायावती ने साथ लिया था.
अपराध की दुनिया से राजनीति में कदम रखने वाले मुख्तार अंसारी किसी के लिए माफिया हैं तो कोई अपना मसीहा मानता है. पूर्वांचल की राजनीति में मुख्तार अंसारी उसका उतना ही असर है जितना कि बिहार की राजनीति में शहाबुद्दीन का हुआ करता था. हालांकि, 2005 में बिहार की सत्ता के बदलते ही शहाबुद्दीन के बुरे दिन शुरू हो गए थे तो यूपी में 2017 में सत्ता बदलते ही मुख्तार अंसारी के लिए मुसीबत बन गई है.
योगी और मुख्तार दोनों ही पूर्वांचल से हैं
दरअसल, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और मुख्तार अंसारी दोनों ही पूर्वांचल से आते हैं. गोरखपुर योगी का क्षेत्र हुआ करता था तो गाजीपुर-मऊ मुख्तार का. पूर्वांचल में मुख्तार बनाम बृजेश सिंह के बीच सियासी वर्चस्व की जंग रही है. ऐसे में साल 2005 में मऊ में हुए सांप्रदायिक दंगे के चलते योगी और मुख्तार के बीच भी सियासी जंग छिड़ गई, क्योंकि योगी खुद को हिंदुत्व के नेता के तौर पर अपने को स्थापित कर रहे थे. वो गोरखनाथ मंदिर के महंत भी थे और बीजेपी से सांसद थे.
योगी आदित्यनाथ 2017 में यूपी की सत्ता पर विराजमान होते ही मुख्तार अंसारी पर शिकंजा कसा जाने लगा था. हालांकि, मुख्तार 17 सालों से जेल में बंद है. इसके बाद भी उनका राजनीतिक रसूख बरकरार रहा, लेकिन बीजेपी सरकार आने के बाद मुख्तार के खिलाफ लगातार पुलिस कार्रवाई की जा रही है. मुख्तार और उनके करीबियों के अवैध निर्माण ध्वस्त कर दिए गए. कई बेनामी संपत्तियां जब्त कर ली गईं. परिवार के लोगों पर भी कानूनी शिकंजा कसा जाने लगा. मुख्तार को पंजाब से यूपी लाने के लिए योगी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर मुख्तार के यूपी वापसी हो गई है.
योगी सरकार मुख्तार अंसारी को यूपी के बांदा जेल में शिफ्ट कराने को अपनी जीत के दौर पर देख रही हैं. अगले ही साल शुरू में विधानसभा चुनाव होने हैं. बीजेपी को लगता है कि मुख्तार अंसारी के खिलाफ राज्य सरकार के सख्त कदम उठाने का फायदा होगा, क्योंकि मुख्तार बाहुबली है, उसकी तमाम अपराधिक मामलों में लिप्तता है. ऐसे में योगी सरकार उनके खिलाफ शिकंजा कसकर एक राजनीतिक संदेश देने की कवायद करेगी ताकि पूर्वांचल में मुख्तार अंसारी के सियासी असर को खत्म किया जा सके. वहीं, दूसरी ओर देखना होगा कि यूपी के जेल में रहते हुए मुख्तार क्या अपना सियासी वजूद बचाए रख पाते हैं?