उत्तर प्रदेश की 10 राज्यसभा सीटों पर हो रहे चुनाव के लिए बीजेपी ने अपने आठ उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है. बीजेपी ने अपने पुराने नेताओं को खास तवज्जो दी है जबकि 'सम्मान की तलाश' में अपनी पार्टी छोड़कर बीजेपी का दामन थामने वाले नेताओं में महज नीरज शेखर को जगह मिली है बाकी नेताओं को पार्टी ने नजरअंदाज कर दिया है. इस कड़ी में सबसे बड़ा झटका गांधी परिवार के करीबी माने जाने वाले डॉ. संजय सिंह को लगा है, जिन्होंने पिछले साल राज्यसभा सदस्यता से इस्तीफा देकर बीजेपी की सदस्यता ग्रहण की थी.
राज्यसभा चुनाव के लिए बीजेपी की केंद्रीय चुनाव समिति ने सोमवार देर रात 8 उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की. इसमें केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी, अरुण सिंह, पूर्व डीजीपी बृजलाल, नीरज शेखर, हरिद्वार दुबे, गीता शाक्य, बीएल शर्मा और सीमा द्विवेदी को उम्मीदवार बनाया गया. कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए संजय सिंह और सपा छोड़कर आए नरेश अग्रवाल को बीजेपी ने राज्यसभा का प्रत्याशी नहीं बनाया है. हालांकि, बीजेपी सूबे के 9 राज्यसभा सीटें भेजने की स्थिति में थी, लेकिन फिर पार्टी ने आठ ही प्रत्याशी उतारे हैं.
बता दें कि पिछले साल असम से कांग्रेस के दो राज्यसभा सांसदों ने इस्तीफा देकर बीजेपी का दामन थामा था. इनमें भुवनेश्वर कलीता और डॉ. संजय सिंह के नाम शामिल थे. भुवनेश्वर कलीता को तो बीजेपी ने असम से ही मार्च में राज्यसभा में भेज दिया था और संजय सिंह को उत्तर प्रदेश से उच्च सदन भेजे जाने की संभावना थी. बीजेपी ने अपने प्रत्याशियों के नाम का ऐलान किया तो संजय सिंह को जगह नहीं मिल सकी है, जो उनके लिए बड़ा झटका माना जा रहा है.
डॉ. संजय सिंह अमेठी राज परिवार से आते हैं और गांधी परिवार के करीबी रहे हैं. संजय सिंह की पहली पत्नी गरिमा सिंह और बेटा अनंत विक्रम सिंह पहले से ही बीजेपी में हैं. गरिमा सिंह तो अमेठी सीट से बीजेपी की विधायक हैं. बीजेपी अपने आठ प्रत्याशियों में से दो राजपूत समुदाय से आने वाले नीरज शेखर और पार्टी के महासचिव अरुण सिंह को प्रत्याशी बनाया है. ऐसे में बीजेपी डॉ. संजय सिंह को भी प्रत्याशी बनाती तो सियासी तौर पर गलत मैसेज जाने की संभावना थी, क्योंकि सूबे में विपक्ष योगी आदित्यनाथ को पहले से ही ठाकुर राजनीति को लेकर घेरने में जुटा है.
दरअसल, संजय सिंह 2019 के लोकसभा चुनाव में अमेठी से कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े थे, लेकिन वो जीत नहीं सके. कांग्रेस यूपी से राज्यसभा भेजने की स्थिति में नहीं है. इसके अलावा देश के दूसरे राज्यों से कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं की लंबी लाइन है, ऐसे में सियासी भविष्य को देखते हुए संजय सिंह ने बीजेपी का दामन थामा था. हालांकि, बीजेपी ने भी उनके राज्यसभा जाने के अरमानों पर पानी भेर दिया है.
संजय सिंह ही नहीं बीजेपी से नरेश अग्रवाल के भी राज्यसभा जाने की उम्मीद धुमिल हो गई है. बीजेपी ने अग्रवाल को न तो लोकसभा चुनाव में टिकट दिया और न ही अब राज्यसभा भेजा है. नरेश अग्रवाल ने सपा छोड़कर 2018 में बीजेपी का दामन थामा था. यूपी की सियासत में अग्रवाल बड़े नाम माने जाते हैं और सपा में तूती बोलती थी. ऐसे में माना जा रहा था कि बीजेपी उन्हें राज्यसभा भेज सकती है, लेकिन सोमवार को आई लिस्ट में जगह नहीं मिल सकी है.
संजय सिंह का सियासी सफर
बता दें कि संजय गांधी के घनिष्ठ मित्र डॉ. संजय सिंह पहली बार उत्तर प्रदेश की अमेठी विधानसभा सीट से 1980 में विधायक चुने गए और मंत्री बने. 1982 से 85 तक उन्होंने प्रदेश में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के साथ दुग्ध डेयरी व खेलकूद एवं युवा मंत्रालय की कमान संभाली. 1985 से 87 तक उत्तर प्रदेश के परिवहन मंत्री रहे. 1988 में जनता दल में शामिल हो गए. 1990 में पहली बार राज्यसभा सदस्य बने और केंद्रीय संचार मंत्री रहे. इसके बाद 1998 में वह भाजपा की टिकट पर अमेठी से लोकसभा सांसद चुने गए और केंद्र में मंत्री भी बने.
इसके बाद 1999 में लोकसभा चुनाव हुए और इस बार उनका मुकाबला सोनिया गांधी से हुआ, जहां उन्हें करारी मात मिली. इसके बाद उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया और 2009 के लोकसभा चुनाव में सुल्तानपुर सीट से सांसद चुने गए और 2014 में कांग्रेस ने उन्हें असम से राज्यसभा भेजा था. 2019 के चुनाव के बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया.