उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों को मौजूदा पेराई सत्र में भी गन्ने का वही भाव मिलेगा जो लगातार पिछले तीन साल से मिलता रहा है. देश के सबसे अधिक गन्ना पैदा करने वाले राज्य में फिलहाल इसकी कीमतों में कोई वृद्धि नहीं की गई है. योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद 2017-18 के सीजन में गन्ने का मूल्य 10 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाया गया था और तब से यही कीमतें बनी हुई हैं. योगी सरकार ने ये फैसला ऐसे समय में लिया है जबकि दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर हजारों किसान मोदी सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ धरने पर बैठे हैं, इसमें बड़ी संख्या गन्ना किसानों की ही है. ये किसान यूपी सरकार के कदम से और भड़के हुए हैं.
योगी सरकार ने चार साल में 10 रुपये बढ़ाए
गन्ना किसानों को गन्ने की रिजेक्टेड वैरायटी के लिए 310, सामान्य प्रजाति के गन्ने के लिए 315 और अगैती प्रजाति के लिए 325 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिलेगा. रविवार की देर रात योगी मंत्रिपरिषद ने गन्ना विकास विभाग के इस संबंध में प्रस्ताव को मंजूरी दी. यानी गन्ने के सरकारी मूल्य में कोई बदलाव नहीं किया गया है.
गौरतलब है कि देश के गन्ने के कुल रकबे का 51 फीसदी और उत्पादन का 50 और चीनी उत्पादन का 38 फीसदी उत्तर प्रदेश में होता है. भारत में कुल 520 चीनी मिलों से 119 उत्तर प्रदेश में हैं. देश के करीब 48 लाख गन्ना किसानों में से 46 लाख से अधिक किसान चीनी मिलों को अपने गन्ने की आपूर्ति करते हैं. यूपी का चीनी उद्योग करीब 6.50 लाख लोगों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से रोजगार देता है.
उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों की बड़ी संख्या होने के नाते यह राजनीतिक रूप से बेहद अहम फसल है. वर्ष 2017 में यूपी में बीजेपी सरकार बनने के बाद गन्ने के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 10 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की गई थी. इसके बाद से गन्ने का मूल्य नहीं बढ़ा है.
मायावती और अखिलेश सरकार में कितना बढ़ा
यूपी में गन्ना की मूल बढ़ाने के मामले में देखें तो बसपा प्रमुख मायावती सरकार के पांच साल के दौरान इसमें 92 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी. साल 2007 में मायावती ने सरकार की कमान संभाली तब गन्ने के मूल्य 125 रुपये प्रति क्विंटल था, जिसे पांच साल में बढ़ाकर 240 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया गया. वहीं, सपा प्रमुख अखिलेश यादव के शासन में गन्ने के मूल्य में 27 फीसदी बढ़ोतरी की गई. सपा सरकार ने पांच साल में दो बार में कुल 65 रुपये प्रति क्विंटल गन्ने का राज्य परामर्शी मूल्य बढ़ाया था.
यूपी के मुख्य सचिव राजेंद्र कुमार तिवारी की अध्यक्षता में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए राज्य परामर्शी मूल्य निर्धारण समिति की बैठक में किसानों ने कहा था कि गन्ना उत्पादन लागत 352 रुपये प्रति क्विंटल आ रही है, इसलिए गन्ना मूल्य 400 रुपये क्विंटल किया जाए. इसके बावजूद सरकार ने पुराने मूल्य पर गन्ना खरीदने का फैसला किया, जिसे लेकर किसान संगठन नाराज हैं.
किसान योगी सरकार से नाराज
गन्ना मूल्य नहीं बढ़ाए जाने पर भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी नरेश टिकैत ने आजादी के बाद से अब तक की यूपी में पहली सरकार है, जिसने गन्ना किसानों के साथ इस तरह का व्यवहार किया है. किसानों ने सरकार के लिए क्या नहीं किया और सरकार किसानों के लिए क्या कर रही, किसी से छिपा नहीं है. खाद, बीज, कीटनाशक, कृषि यंत्रों के दाम बढ़ रहे हैं और बिजली की दरों में वृद्धि जारी है, लेकिन किसान को फसलों का उचित दाम नहीं मिल रहा. गन्ना मूल्य में कोई वृद्धि नहीं किए जाने का खामियाजा सरकार को भुगतना होगा.
किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष चौधरी पुषेंद्र सिंह कहते हैं कि महंगाई दर के लिहाज से देखें तो मौजूदा समय में 380 रुपये क्विटंल गन्ना पड़ रहा है, लेकिन यूपी सरकार ने किसान से इसे 325 रुपये में खरीदने का फैसला किया है. सरकार के लिए गन्ना किसानों के साथ किया जा रहा व्यवहार महंगा पड़ सकता है.
उत्तर प्रदेश गन्ना संघ के पूर्व चेयरमैन चौधरी राजपाल सिंह कहते हैं कि सरकार सिर्फ कागजों में किसान की आय दोगुनी कर रही है, जब किसान को उसकी फसल का वाजिब दाम देने की बात आए तो वह चुप्पी साध लेती है. अब कृषि कानूनों के साथ-साथ अब गन्ना मूल्य भी किसान आंदोलन का हिस्सा बनेगा.
भारतीय किसान संगठन के अध्यक्ष ठाकुर पूरण सिंह कहते हैं कि इस साल भी गन्ने का भाव न बढ़ाना ये दर्शाता है कि सरकार की डायरी में किसान शब्द है ही नहीं. सत्तापक्ष के विधायक कृषि गोष्ठी करके किसानों का मूर्ख बना रहे हैं. खाद, कीटनाशक, बिजली, मजदूरी सब कुछ महंगा हो गया मगर गन्ने का भाव पिछले तीन साल में नहीं बढ़ा.
गन्ना किसानों की सियासी ताकत
पश्चिम यूपी की 126 विधानसभा सीटों में से बीजेपी ने 2017 में 109 सीटें जीती थीं जबकि सपा ने 20, कांग्रेस ने दो, बसपा ने 3 सीटें जीती थीं. एक सीट आरएलडी को मिली थी. हालांकि, गन्ना बेल्ट का इलाका बागपत से शाहजहांपुर, गोंडा और सीतापुर के इलाके में फैला हुआ है, जहां की विधानसभा सीटों को नहीं जोड़ा गया है. यूपी के इस पूरे इलाके में किसान मुख्य रूप से गन्ना की खेती करते हैं और इसी पर निर्भर हैं. गन्ना किसान सूबे की सरकार बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. यही वजह है कि विपक्षी दल भी गन्ना कीमतें न बढ़ाने को मुद्दा बनाए हुए हैं.
गन्ना किसानों को साधने में जुटे सियासी दल
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने बिजनौर में योगी सरकार पर किसानों को लेकर हमला बोला है. प्रियंका ने आरोप लगाया कि किसानों के हितों का दावा करने वाली बीजेपी सरकार ने उनकी दुर्गति कर दी है. प्रियंका ने कहा कि उत्तर प्रदेश में चार साल से गन्ना के मूल्य में किसी तरह की कोई बढ़ोतरी नहीं है. प्रदेश के किसानों के गन्ने का 10,000 करोड़ भुगतान बकाया है जबकि देश में गन्ना किसानों के 15 हज़ार करोड़ भुगतान नहीं हुआ है. यही सरकार की नीयत है, जो भगवान का सौदा करता है. इंसान की कीमत वो क्या जाने, जो गन्ने की कीमत नहीं दे सकता.
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा कि चार साल में गन्ने के दाम में एक रुपया भी न बढ़ाने वाली भाजपा सरकार के 'चार दिन' ही बचे हैं और किसान धोखे का जवाब अपने वोट से देंगे. उन्होंने कहा कि इस समय चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का प्रतिदिन दो करोड़ रुपये का बकाया हो रहा है. 14 दिन के बाद किसान की अवशेष राशि बकाया श्रेणी में आ जाती है. अब तक प्रदेश में गन्ना किसानों का लगभग 10,174 करोड़ रुपये का बकाया हो चुका है. सपा प्रमुख ने कहा कि किसान को उम्मीद थी कि उसको भाजपा नेताओं के वादों के अनुसार फसल की लागत का डयोढ़ा (डेढ़ गुना) मूल्य मिल जाएगा और उसकी आय दोगुनी भी हो जाएगी, लेकिन धोखेबाजी की सरकार के मुखिया अधूरे वादों के साथ जनता के बीच असत्य बयानबाजी में व्यस्त हैं.
पश्चिम यूपी में गन्ना किसान प्रभावी
गन्ने की सियासत पर पकड़ बनाने के लिए ही यूपी में भाजपा की सरकार बनने पर गन्ना बेल्ट के सुरेश राणा गन्ना विकास विभाग के मंत्री बनाए गए थे. साल 2019 लोकसभा चुनाव में गन्ना किसानों का समर्थन पाने के लिए केंद्र सरकार ने भी राहत पैकेज का ऐलान किया था, जिसका सियासी फायदा भी उनको मिला था. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में महज एक साल का समय बाकी है. ऐसे में पश्चिम यूपी का किसान पहले से ही कृषि कानूनों को लेकर नाराज हैं और आंदोलन कर रहा है. ऐसे में गन्ने का दाम नहीं बढ़ाए जाने के फैसले पर किसान अपने आंदोलन को और भी तेज कर सकते हैं.