उत्तर प्रदेश सरकार ने यूपीएसटीएफ के पूर्व डिप्टी एसपी शैलेंद्र सिंह पर दर्ज मुकदमे को वापस ले लिया है. वाराणसी के सीजेएम कोर्ट ने योगी सरकार के फैसले को मंजूरी दे दी है. केस वापस लिए जाने के बाद शैलेंद्र सिंह ने योगी सरकार का शुक्रिया अदा किया है. आइए जानते हैं क्या था वो एलएमजी केस जिसमें डिप्टी एसपी शैलेंद्र सिंह ने मुख्तार अंसारी पर पोटा लगाया और फिर उनको इस्तीफा देना पड़ा था.
बात जनवरी 2004 की है जब शैलेंद्र सिंह उत्तर प्रदेश के स्पेशल टास्क फोर्स की वाराणसी यूनिट के प्रभारी हुआ करते थे. कृष्णानंद राय और मुख्तार अंसारी के बीच लखनऊ के कैंट इलाके में फायरिंग हो चुकी थी. तत्कालीन समाजवादी पार्टी की सरकार ने राजधानी लखनऊ में हुई इस गैंगवार की आहट को समझ लिया और यूपी एसटीएफ को सक्रिय किया. यूपी एसटीएफ दोनों ही गुटों पर नजर रखने लगी थी.
सर्विलांस के जरिए एक कॉल में पता चला कि मुख्तार अंसारी किसी भगोड़े सिपाही से एक करोड़ में एलएमजी यानी लाइट मशीन गन खरीदने की बात कर रहा है. एलएमजी का यह सौदा मुख्तार अंसारी का गनर मुन्नर यादव सेना में सिपाही बाबू लाल यादव के जरिए कर रहा था. बाबूलाल जम्मू कश्मीर की 35 राइफल्स से एलएमजी चुरा कर भाग आया था. इसी एलएमजी को मुख्तार अंसारी एक करोड़ में खरीदने की कोशिश कर रहा था.
खुद शैलैंद्र सिंह ने दर्ज कराई थी एफआईआर
कॉल सर्विलांस में पुख्ता होते ही शैलेंद्र सिंह ने 25 जनवरी 2004 को वाराणसी के चौबेपुर इलाके में छापा मार दिया और मौके से बाबू लाल यादव, मुन्नर यादव को दबोच कर 200 कारतूस के साथ एलएमजी भी बरामद कर ली. शैलेंद्र सिंह ने खुद वाराणसी के चौबेपुर थाने में क्राइम नंबर 17/ 04 पर आर्म्स एक्ट व क्राइम नंबर 18/ 04 पर पोटा के तहत मुख्तार अंसारी पर मुकदमा दर्ज कराया. मुख्तार अंसारी जिस नंबर से यह एलएमजी खरीद रहा था, वह नंबर उसके खास गुर्गे तनवीर उर्फ तनु के नाम पर था जो जेल में था लेकिन फोन मुख्तार अंसारी चला रहा था.
शैलेंद्र सिंह की इस छापेमारी से हड़कंप मच गया. फोन कॉल में जो शख्स किसी भी कीमत पर एलएमजी हासिल करने और दुश्मन के पास ना जाने की बात कर रहा था वह आवाज मुख्तार अंसारी की बताई गई. लेकिन मुख्तार अंसारी ने छापेमारी के बाद लखनऊ में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दावा किया कि यह आवाज उसकी नहीं है.
2004 में शैलेंद्र सिंह ने दिया था इस्तीफा
उधर, शैलेंद्र सिंह पर एफआईआर बदलने या फिर मुख्तार अंसारी का पोटा के केस में नाम हटाने का दबाव बनाया जाने लगा लेकिन शैलेंद्र सिंह ने राजनीति के अपराधीकरण के विरोध में फरवरी 2004 को इस्तीफा दे दिया. शैलेंद्र सिंह ने उस समय दावा किया कि यह एलएमजी कृष्णानंद राय की बुलेट प्रूफ गाड़ी को भेदने के लिए खरीदी जा रही थी, अगर यूपी एसटीएफ इस सौदे को ना रोकती तो कृष्णानंद राय की हत्या 1 साल पहले ही हो जाती.
पुलिस की नौकरी से इस्तीफा देने के बाद शैलेंद्र सिंह ने राजनैतिक तौर पर सक्रियता बढ़ाई. चुनाव भी लड़ा लेकिन विधानसभा चुनाव हार गए. वर्तमान में शैलेंद्र सिंह लखनऊ के ग्रामीण इलाके में ऑर्गेनिक खेती कर रहे हैं.