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कोरोना संक्रमण की रफ्तार भले ही मंद पड़ी हो, लेकिन अभी भी मौतों का सिलसिला थम नहीं रहा है. अब मौतें तो ज्यादा हो ही रही हैं, बड़े स्तर पर उन्हें छिपाने की भी कवायद देखने को मिल रही है. ऐसा कहीं और नहीं, बल्कि पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र के गांव में देखने को मिल रहा है. सेम की खेती के लिए मशहूर वाराणसी के गांव रमना में चारों ओर मातम पसरा हुआ है.
दावा किया जा रहा है कि कोरोना की इस दूसरी लहर में गांव में 40-45 मौतें हो चुकी हैं. कई ने अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ दिया और जो अस्पताल पहुंचे भी थे उनके कोरोना से मौत के सर्टिफिकेट में बड़ी धोखाधड़ी सामने आ रही है. इसी धोखाधड़ी का शिकार हुआ है रमना गांव का पटेल परिवार भी.
वाराणसी में छिपाए जा रहे कोरोना से मौत के आंकड़े?
कोरोना का संक्रमण अब शहर से गांव की तरफ शिफ्ट होता दिख रहा है और मौत की घटनाएं भी गांव में ज्यादा देखने को मिल रही हैं. लेकिन क्या हो अगर लाख दावों के बावजूद और जांच रिपोर्ट में कोरोना दिखने के बाद भी मृतक के डेथ सर्टिफिकेट में कोरोना का जिक्र ही न हो? इसी धांधलेबाजी के चलते मौतों की संख्या श्मशानों पर तो ज्यादा, लेकिन सरकारी दस्तावेजों में कम नजर आ रही है.
सेम की खेती के लिए मशहूर पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के रमना गांव के पटेल परिवार के साथ कुछ ऐसा ही हुआ. जब 3 दिनों के अंदर इस परिवार के दो वरिष्ठ सदस्य काल के गाल में समा गए. सबसे पहले 50 वर्षीय रामरथी सिंह की मौत नजदीक ही एक निजी अस्पताल में 27 अप्रैल को हुई और एंटीजन टेस्ट में रामरथी की रिपोर्ट भी पॉजिटिव आई थी, लेकिन अभी तक परिवार को कोई डेथ सर्टिफिकेट तक नहीं मिला.
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लापरवाही या जानबूझकर मृतकों के आंकड़ों को छिपाने की कवायद यहीं नहीं रुकी. रामरथी सिंह के बड़े भाई 74 वर्षीय रमाशंकर की भी मौत दो दिन बाद ही इलाके के एक दूसरे निजी अस्पताल में हो गई. रमाशंकर की तो 28 को उसी निजी अस्पताल में पीसीआर जांच की रिपोर्ट भी पॉजिटिव आई थी, लेकिन बजाए कोरोना से मौत की वजह वाले सर्टिफेकट के इनको साधारण टाइफाइड और निमोनिया की मौत को वजह बताने वाला डेथ सर्टिफिकेट थमा दिया गया.
मौत कोरोना से, डेथ सर्टिफिकेट टाइफाइड का?
दोनों ही मृतकों के पोते जयप्रकाश ने डेथ सर्टिफिकेट की शिकायत पर बताया कि अभी वे लोग तेरहवीं में व्यस्त थें. अब अस्पताल जाकर पता लगाएंगे. उन्होंने बताया कि इसके लिए अस्पताल तो जिम्मेदार है. तो वहीं पूरे कुनबे के मुखिया के तौर पर बचे एक मात्र दोनों मृतकों के भाई बुजुर्ग रामजतन ने बताया कि अस्पताल जाने के बाद मरीज का ठीक से जांच और इलाज हो. और जांच के बाद रिपोर्ट आ रही है कुछ, बताया कुछ जाता है और दवा कुछ और चलाई जा रही है. इसके लिए सरकार या अस्पताल किसको दोषी माना जाए? सरकार को चाहिए कि इसपर लगाम लगाया जाए.
जांच में पॉजिटिव होने के बाद भी मृतक के डेथ सर्टिफिकेट कोरोना का न मिलकर कुछ और कुछ मिल रहा है? के सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि इसके लिए अस्पताल और प्रशासन जिम्मेदार है. प्रशासन जांच क्यों नहीं करता है. ऐसे न मरने वालों की संख्या हजारों में है. लोग परेशान हैं, लेकिन सरकार का ध्यान नहीं है. कोरोना से मौत की बात को छिपाया गया.
रमना गांव में कोरोना का कहर
रमना गांव में हुई मौतों और सरकारी रिकॉर्ड में कम कोरोना के आंकड़ों के बारे में गांव के प्रधानपति अमित पटेल ने बताया कि इस कोरोना काल में उनके गांव में 40-45 मौतें हो चुकी हैं. एक ही परिवार के दो-दो लोगों की मौत तक हुई है. उनके खुद के परिजनों की भी कोरोना की वजह से 3 मौत हो चुकी हैं. उनके गांव में 60-75 उम्र के लोग ज्यादा मरे हैं. पहली वेव में कोई नहीं मरा था, लेकिन इस बार 40-45 मौतें हुई हैं. इनमें अस्पताल में कोरोना की वजह से जो मरे हैं उनका सर्टिफिकेट तो कोरोना का मिला है, लेकिन जो अस्पताल जा ही नहीं सका और उनको कोरोना लक्षण के साथ अन्य बीमारी भी मरने वाले ऐसे तमाम लोग हैं जिनका डेथ सर्टिफिकेट कोरोना का नहीं मिला है. अगर सभी 40-45 लोगों की जांच रिपोर्ट आती तो सभी की रिपोर्ट कोरोना की ही आती. 40-45 मौतों में 20-25 सामान्य दिखाया गया है, जबकि अन्य जो अस्पताल में भर्ती हो चुके थे उनका कोरोना का सर्टिफिकेट जारी हुआ है.
उसी रमना गांव के मलहिया के आदित्य साहनी की दादी की मौत घर पर ही हो गई. क्योंकि उस वक्त अस्पतालों में मारा-मारी और ऑक्सीजन को लेकर जद्दोजहद बहुत थी इसलिए आदित्य और परिवार के लोगों ने दादी का इलाज घर पर ही किया. उनके लक्षण भी कोरोना वाले ही थे और वह 5-6 दिनों में ही गुजर गईं. अगर जांच होती तो उनकी रिपोर्ट भी पॉजिटिव आती. अब कोरोना की वजह से मौत का सर्टिफिकेट भी उनको अपनी दादी का नहीं मिल पाएगा.
विवाद पर जिलाधिकारी ने क्या कहा?
वैसे इस मुद्दे पर जब वाराणसी के जिलाधिकारी से बात की गई तो उन्होंने इसे प्रशासन की गलती मानने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा है कि चाहे एंटीजन या आरटी-पीसीआर, जांच की रिपोर्ट पॉजिटिव आए और अगर मौत हो जाती है तो इसे कोरोना से ही मौत माना जाएगा. जिन अस्पतालों के पास सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम पोर्टल में डेथ सर्टिफिकेट की फीडिंग की व्यवस्था नहीं है वह मैनुअल में प्रशासन को डेथ रिपोर्ट दे रहे हैं. अगर किसी की लापरवाही है तो इसमें शासन-प्रशासन की कहां से गलती है? पिछले कुछ दिनों से प्रशासन इसी पर काम कर रहा है कि अगर कोई भी अस्पताल मरीजों की मृत्यु की जानकारी न दिया हो तो वे डाटा इंट्री करा ले. इसमें छिपाने का कोई सवाल ही नहीं है. किसी प्राइवेट अस्पताल की नेगलिजेंस अगर है तो उसकी जांच होगी, लेकिन इससे शासन-प्रशासन की मंशा पर सवाल नहीं किया जा सकता.