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कहीं मचान तो कहीं गली में जल रहे शव... काशी में बढ़ा गंगा का जलस्तर, डूबे घाट

वाराणसी में गंगा का जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है. इस वजह से कई घाट डूब गए हैं और शवों के अंतिम संस्कार में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. मोक्ष की कामना के साथ महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर पहुंचने वाले शव के अंतिम संस्कार के लिए घंटों इंतजार करना पड़ रहा है. यही हाल काशी के दूसरे घाटों का भी है.

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काशी में डूबे घाट
काशी में डूबे घाट

वाराणसी में गंगा का जलस्तर एक बार फिर बढ़ाव की ओर है, जिसके चलते तटवर्ती इलाकों में रहने वालों का जीवन अस्त-व्यस्त हो रहा है. वहीं मोक्ष की कामना के साथ महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर पहुंचने वाले शवों के अंतिम संस्कार के लिए घंटों इंतजार करना पड़ रहा है. जलस्तर बढ़ने की वजह से लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

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ऐसे में महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर बने ऊंचे मचान ही शवदाह का एक मात्र सहारा रह गया है तो काशी का दूसरा श्मशान हरिश्चंद्र घाट पर गलियों में शवदाह संस्कार शुरू हो चुका है. इससे न केवल शवयात्रियों को, बल्कि शवदाह करने वाले डोम समाज के लोगों को भी भारी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है.  

इस साल आई बाढ़ की वजह से गंगा का जलस्तर बढ़ने के बाद एक बार फिर से घटने लगा था, लेकिन पिछले तीन-चार दिनों से गंगा का जलस्तर बढ़ाव की ओर है. इसके चलते तटीय इलाकों को दिक्कत का सामना करना तो पड़ ही रहा है, लेकिन ना केवल स्थानीय बल्कि यूपी और बिहार के अलावा देश के कोने-कोने से आ रहे लोग परेशान भी हैं.

मणिकर्णिका घाट पर आने वालों को सिर्फ इसलिए लगभग 2 से ढाई घंटे इंतजार करना पड़ रहा है, क्योंकि बाढ़ के पानी के चलते घाट पर शवदाह का स्थान संकुचित हो गया है. शव का अंतिम संस्कार कराने पहुंचे ओपी सिंह बताते हैं कि उनको अंतिम संस्कार के लिए डेढ़ घंटा इंतजार करना पड़ा और अब लगभग ढाई-3 घंटे और समय लगेगा.

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वहीं जयनाथ सरोज बताते हैं कि उनको भी इंतजार करना पड़ा है, क्योंकि बाढ़ के चलते श्मशान पर पानी ऊपर तक आ गया है और सिर्फ ऊंचे बने मचान पर ही शवदाह हो रहा है. बाढ़ के दौरान जब पानी ऊपर आता है तब घाट पर बने ऊंचे मचान पर शवदाह होने लगता है. 

मणिकर्णिका घाट पर शवदाह करने वाले डोम परिवार के सदस्य अमरजीत चौधरी कहते हैं कि बाढ़ की वजह से हमेशा से ही ऐसे हालात हो जाते हैं कि घाटों पर पानी आ जाने के चलते सिर्फ ऊंचे बने मचान पर बने 10 चूल्हों (जिसे जंगला भी कहा जाता है) पर अंतिम संस्कार होता है, ऐसे प्रशासन को चाहिए कि व्यवस्था में विस्तार करें.

अब बात दूसरे श्मशान घाट हरिश्चंद्र की कर लेते हैं. यहां के हालात और भी बुरे हैं, क्योंकि यहां सिर्फ शवदाह गंगा किनारे हो पाता है और यहां किसी तरह का मचान या प्लेटफार्म भी सरकार की ओर से नहीं बनवाया गया है. बाढ़ के चलते शवदाह गंगा घाट किनारे श्मशान पर नहीं, बल्कि गलियों में हो रहा है. 

वहीं डोम राजा परिवार के सदस्य पवन चौधरी ने बताया कि गंगा का जलस्तर बढ़ने के चलते गलियों में दाह संस्कार हो रहा है, बाढ़ के दौरान गलियों में शवदाह होने के चलते उनका ही परिवार जो गलियों में रहता है, उनको काफी दिक्कत झेलनी पड़ती है.

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