scorecardresearch
 

वाराणसीः 12 करोड़ का कैनाल प्रोजेक्ट चढ़ा बाढ़ की भेंट, प्रशासन का दावा- कोई नुकसान नहीं

प्रोजेक्ट पर सबसे पहले सवाल खड़ा करने वाले IIT-BHU के शिक्षक प्रो. विशंभरनाथ मिश्रा ने बताया कि गंगा उस पार के रेत गंगा का ही हिस्सा है और बाढ़ में हमेशा डूब जाता है. बगैर स्टडी के गंगा उस पार नहर बनाने का कोई औचित्य समझ में नहीं आता है.

Advertisement
X
बाढ़ की भेंट चढ़ गया वाराणसी का यह कैनाल प्रोजेक्ट
बाढ़ की भेंट चढ़ गया वाराणसी का यह कैनाल प्रोजेक्ट
स्टोरी हाइलाइट्स
  • बाढ़ की वजह से कैनाल प्रोजेक्ट बाढ़ की भेंट चढ़ गया
  • 5.5 km लंबा-45 m चौड़ा प्रोजेक्ट बनाया जा रहा था
  • अभी कांट्रेक्टर की लायबिलिटी में है यह प्रोजेक्टः DM
  • तकनीकी रूप से यह प्रोजेक्ट सही नहींः प्रो. विशंभरनाथ मिश्रा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में जहां निर्माण और विकास कार्य तेज गति से चल रहा है, वहां सरकारी प्रोजेक्ट के बाढ़ की भेंट चढ़ जाने की ऐसी तस्वीर सामने आई है जिसने प्रशासन पर सवाल खड़े कर दिए. वाराणसी में करीब 12 करोड़ का गंगा के पक्के घाटों को बचाने वाला और गंगा के समानांतर उस पार बना कैनाल प्रोजेक्ट बाढ़ की भेंट चढ़ गया. स्थानीय लोग करोड़ों के प्रोजेक्ट के फेल हो जाने की बात कर रहे हैं तो जिला प्रशासन का दावा है कि कोई नुकसान ही नहीं हुआ है.

Advertisement

मौसम की मार सबसे पहले अगर किसी की कलई खोलती है तो वह है सरकारी काम की. ऐसी ही एक कलई वाराणसी प्रशासन की भी तब खुलकर सामने आ गई जब करीब 12 करोड़ की लागत से गंगा उस पार बनकर तैयार साढ़े 5 किलोमीटर लंबा और 45 मीटर चौड़ा कैनाल प्रोजेक्ट पूरी तरह गंगा में आई बाढ़ में समाहित हो गया.

रामनगर से राजघाट तक बने गंगा को बाईपास करने वाला यह प्रोजेक्ट इस साल मार्च में शुरू होकर और बाढ़ के आने के पहले लगभग पूरा हो चुका था. जिसको बनाने के पीछे जिला प्रशासन ने यह मकसद जाहिर किया था कि इसके बन जाने से गंगा के पक्के घाटों पर पानी का दबाव कम बनेगा और पक्के घाटों का क्षरण भी रूकेगा तथा नहर का खुदाई से बालू की नीलामी करके जो कमाई होगी वो अलग.

Advertisement

इसे भी क्लिक करें --- यूपी में 5 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित, 1200 गांव पानी से घिरे, बिहार में भी गंगा उफान पर, पटना में बाढ़ का खतरा

हालांकि इस प्रोजेक्ट की शुरुआत से ही वैज्ञानिक सवाल खड़े कर रहें थे कि बाढ़ की हालत में प्रोजेक्ट डूब जाएगा और अंतत: हुआ भी वही. इस प्रोजेक्ट को शुरू करने के पहले बकायदा गंगा से कछुआ सेंक्चुरी शिफ्ट होने के बाद सिंचाई विभाग के जरिये टेक्निकल रिपोर्ट बनाई गई. जिसमें घाटों के कटान को रोकने के लिए गंगा की डेप्थ एनालिसिस की गई और गंगा के सामने छोटा चैनल बनाने का सुझाव पेश किया गया था, जिसके बाद ही यह प्रोजेक्ट शुरू हुआ.

7-8 महीने से चल रहा था काम

आजतक ने गंगा में आई बाढ़ के बीच जल समाधि लिए कैनाल के काफी नजदीक पहुंचकर तस्वीर लेने की कोशिश की. जहां कैनाल पूरी तरह बाढ़ के पानी में समाया हुआ था. सिर्फ कैनाल निर्माण से संबंधित कुछ साजो सामान ही ऊपर दिखाई पड़ रही थी.

इस बारे में गंगा किनारे बसे डोमरी गांव के लोगों में से एक त्रिभुवन ने बताया कि पूरा प्रोजेक्ट पानी में समा चुका है. करीबन 7-8 माह तक काम चल रहा था. ये उम्मीद नहीं थी इतना बाढ़ आएगा और यह प्रोजेक्ट ध्वस्त हो जाएगा.

Advertisement

एक अन्य युवक सचिन पटेल ने बताया कि अगर यह पूरी तरह बनकर तैयार हो जाता तो और भी प्रोजेक्ट इस पर निर्भर थे. जिससे उनके गांव को लाभ मिलता और गांव में बाढ़ का पानी भी नहीं आ पाता. एक अन्य स्थानीय ग्रामीण प्रदुम्न ने बताया कि हर तीन साल में बाढ़ आती है और इस बात का ध्यान प्रोजेक्ट शुरू करने के पहले ध्यान देना चाहिए था.

डोमरी गांव के पूर्व ग्राम प्रधान छोटेलाल पटेल ने बताया कि नहर बनाने का मकसद तो उन्हें अभी तक नहीं मालूम चला. इस बार बाढ़ में नहर का रूप बिगड़ गया. पूरा प्रोजेक्ट नष्ट हो गया. हर 2-3 साल में बाढ़ आती है. इस बात का ध्यान भी जिला प्रशासन को रखना चाहिए था.

प्रोजेक्ट का पूरा पेमेंट नहीं हुआः DM

दूसरी ओर, वहीं प्रोजेक्ट के नष्ट हो जाने के सवाल के जवाब में वाराणसी के जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा ने बताया कि करीबन 11 करोड़ का प्रोजेक्ट था जो UPPCL द्वारा कराया गया था. प्रोजेक्ट का पूरा पेमेंट नहीं हुआ है क्योंकि प्रोजेक्ट विभाग को स्थानांतरित नहीं हुआ था.

उन्होंने कहा कि वाराणसी में कई प्रोजेक्ट जलमग्न हुए हैं, जिसमें वरुणा कॉरिडोर और रामनगर का ड्राईपोर्ट भी शामिल है. ड्रेजिंग के जरिये नहर से निकाली गई बालू को नीलाम करके पहले ही सरकार को 3 करोड़ रुपये मिल चुके हैं. अभी कांट्रेक्टर की लायबिलिटी में ही यह प्रोजेक्ट है. जैसे ही गंगा का पानी उतरेगा वैसे नहर से बालू निकालकर दुबारा शेप में लाया जाएगा और प्रोजेक्ट पूरा होने पर ही पेमेंट होगा और हस्तांतरण होगा. अब आगे का काम सितंबर के अंत में होगा.

Advertisement

जिलाधिकारी ने दावा किया कि इसमें किसी तरह का नुकसान नहीं हुआ है क्योंकि अभी यह कांट्रेक्टर के हाथों में ही है. आगे भी नहर में मिट्टी न जाने पाए, इसके लिए कुछ मोडिफिकेशन सोचा जा रहा है. पानी कम होने पर दोबारा प्रोजेक्ट शुरू कराया जाएगा. प्रोजेक्ट के डिजाइन में संशोधन कराया जाएगा ताकि नहर में कम से कम बालू भरे.

तकनीकी रूप से यह प्रोजेक्ट सही नहींः पर्यावरणविद

हालांकि इस सरकारी प्रोजेक्ट के शुरू होने के पहले ही पर्यावरणविदों ने सवाल खड़ा किया था, जिनमें से एक IIT-BHU के भी शिक्षक भी शामिल थे. अब 12 करोड़ के नहर प्रोजेक्ट के गंगा में समा जाने के बाद उनकी बात सच साबित हो गई है.

इस प्रोजेक्ट पर सबसे पहले सवाल खड़ा करने वाले IIT-BHU के शिक्षक और पर्यावरणविद प्रो. विशंभरनाथ मिश्रा ने बताया कि गंगा उस पार के रेत गंगा का ही हिस्सा है और बाढ़ में हमेशा डूब जाता है. रेत को गंगा ले जाकर उस पार छोड़ती है. बगैर स्टडी के गंगा उस पार नहर बनाने का कोई औचित्य समझ में नहीं आता है.

उन्होंने कहा कि जहां तक यह दावा किया जा रहा था कि नहर बन जाने से गंगा के पक्के घाटों पर दबाव कम होगा और कटान भी कम होगा, इसके लिए नहर बना देने से गंगा काशी के घाटों को छोड़ देंगी और तो और आगे जाकर गंगा घाट धंस भी जाएगा. यह पूरा इको सिस्टम के साथ खिलवाड़ है. इससे न केवल इंसान, बल्कि जलचर भी पूरी तरह से प्रभावित होंगे और प्रदूषण भी बढ़ेगा. तकनीकी रूप से यह प्रोजेक्ट सही नहीं है. अभी बाढ़ में पूरा नहर गायब हो गया. पब्लिक का सारा पैसा बर्बाद हो गया.

Advertisement

प्रो. विशंभरनाथ मिश्रा ने दावा किया कि गंगा को डिस्टर्ब करने से आगे और भी घातक परिणाम होंगे. अभी एक बार की बाढ़ में पूरा निकाला गया रेत भी कटकर गायब हो गया. गंगा वापस उसे चैनल में पाट दी है. नेचुरल रिवर के फ्लो को कभी भी डिस्टर्ब नहीं करना चाहिए. यह स्टेबल चैनल है. बिना स्टडी किए गंगा के चैनल में नहीं बनाना चाहिए. यह पूरी परियोजना कहीं से फिजिबल नहीं है और कयास लगाया जा रहा था कि गंगा नहर को पाट देंगी बाढ़ में तो ऐसा इस बार दिख भी गया.

 

Advertisement
Advertisement