हिंदी भाषा प्रेमियों, हिंदी पर शोध और अध्ययन करने वालों के लिए अच्छी खबर है. हिंदी के सम्मान और प्रचार-प्रसार के लिए वाराणसी नागरी प्रचारिणी के दिन एक बार फिर से बहुरने वाले हैं. 15 वर्षों से चले आ रहें नागरी प्रचारिणी सभा के प्रबंध समिति के विवाद पर प्रशासन की ओर विराम लगाते हुए नए सिरे से चुनाव कराने का आदेश दे दिया गया है.
संस्कृति कर्मी व्योमेश शुक्ल की लिखित शिकायत को स्वीकार करते हुए वाराणसी के उप जिलाधिकारी सदर प्रमोद कुमार पांडेय की अदालत ने नए चुनाव कराने का आदेश जारी कर दिया है. इस आदेश से यह उम्मीद जग उठी है कि 1893 से स्थापित इस संस्था में संरक्षित दुर्लभ पांडुलिपियां, शब्दकोश, ग्रंथ, 50 हजार से ज्यादा हस्तलेख, हिंदी के अनुपलब्ध ग्रंथों का विशाल संग्रह संरक्षित हो सकेगा..
हिंदी के उत्थान के लिए गुलाम भारत में 128 साल पहले 1893 में नौवीं के छात्र रहे बाबू श्यामसुंदर दास, पंडित रामनारायण मिश्र और शिवकुमार सिंह ने नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना की थी, जिसके पहले अध्यक्ष आधुनिक हिंदी भाषा के जनक भारतेंदु हरिश्चंद्र के फुफेरे भाई बाबू राधाकृष्ण दास को अध्यक्ष बनाया गया था. उनके बाद सभा से एक से बढ़कर एक हिंदी के विद्वान और ज्ञानी जुड़े.
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स्थापना के 7 साल बाद हिंदी आंदोलन चलाया गया, जिसके तहत राजा-महाराजाओं सहित 60 हजार लोगों को जोड़ते हुए सरकारी दफ्तरों और न्यायालय में देवनागरी हिंदी लिपि के प्रयोग की अनुमति मांगी गई और लंबा आंदोलन चलाया गया. इसे हिंदी का पहला सत्याग्रह भी कहा गया और सभा के कार्यकर्ता गिरफ्तार भी किए गए.
हिंदी के उत्थान के लिए महत्वपूर्ण संगठन!
तब से हिंदी के उत्थान के लिए गौरवशाली इतिहास वाले नागरी प्रचारिणी सभा लगातार काम करता चला आ रहा है. लगभग डेढ़ दशक से पुराने चले आ रहे सभा के प्रबंध समिति के विवाद को खत्म करते हुए वाराणसी के उप जिलाधिकारी(सदर) प्रमोद कुमार पांडेय की कोर्ट ने सोसाइटी और चिटफंड के सहायक निबंधन को आदेश दिया है है कि प्रबंध समिति के वर्ष 2004-2007 के साधारण सभा के सदस्यों की सूची के आधार पर चुनाव कराया जाए.
अनुपलब्ध ग्रंथों का विशाल संग्रह!
आदेश के बाद अब 2004-2007 के बीच के सदस्यों को चुनाव में मताधिकार का अवसर मिलेगा. चुनाव के बाद एक बार फिर नागरी प्रचारिणी सभा की इमारतों में धूल फांक रही दुर्लभ पांडुलिपियों, शब्दकोष और ग्रंथों के संरक्षण की उम्मीद जगी है. सभा की ओर से स्थापित आर्य भाषा पुस्तकालय में हजारों पत्र-पत्रिकाओं की फाइलें, लगभग 50 हजार हस्तलेख और हिंदी के अनुपलब्ध ग्रंथों का विशाल संग्रह हैं. इनमें सभा की ओर से प्रकाशित शब्दकोश और अन्य ग्रंथ भी शामिल हैं.
लगभग डेढ़ दशक पहले तक ग्रंथालय में हिंदी के सुधीजन आया करते थे, लेकिन बढ़ते विवाद और घटती सुविधाओं के चलते उनकी संख्या भी कम होती गई. लेकिन अब एक बार फिर नागरी प्रचारिणी सभा के दिन बहुरने की उम्मीद है.
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