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अयोध्या: शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष रिजवी ने PM को भेजा फॉर्मूला

राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद के समझौते के लिए शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा. इसके अलावा समझौते का फॉर्मूला की कापी भेजी है.

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वसीम रिजवी (फोटो क्रेडिट, Aajtak.in)
वसीम रिजवी (फोटो क्रेडिट, Aajtak.in)

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राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद के समझौते के लिए शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक बार फिर पत्र लिखा है. रिजवी ने दोहराया है की बाबरी मस्जिद की जगह पर राम मंदिर बने. इसके अलावा बाबरी मस्जिद से बाबरी नाम हटाकर लखनऊ में अमन की मस्जिद बनाई जाए.

उन्होंने कहा कि इस मस्जिद को किसी राज या शासक के नाम पर रखने के बजाए मस्जिद-ए-अमन नाम रखा जाए. रिजवी ने अपनी तरफ से समझौते की कॉपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी भेजी है. रिजवी ने अयोध्या विवाद का समझौते का हल निकालने के लिए पिछले साल एक मसौदा तैयार किया था, जिसे उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में जमा किया था.

बता दें कि समझौते में रिजवी ने कहा है कि विवादित जमीन पर भगवान श्रीराम का मंदिर बने ताकि हिन्दू और मुसलमानों के बीच का विवाद हमेशा के लिए खत्म हो और देश में अमन कायम हो सके.

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शिया वक्फ बोर्ड ने कहा था कि इस मसौदे के तहत मस्जिद अयोध्या में न बनाई जाए, बल्कि उसकी जगह लखनऊ में बनाई जाए. इसके लिए पुराने लखनऊ के हुसैनाबाद में घंटा घर के सामने शिया वक्फ बोर्ड की जमीन है, जिस पर मस्जिद बनाई जाए और इसका नाम इसका नाम किसी मुस्लिम राजा या शासक के नाम पर न होकर " मस्जिद-ए-अमन" रखी जाए.

बता दें कि शिया बोर्ड ने अयोध्या के विवादित मामले का फार्मूला पिछले साल 18 नवम्बर को सुप्रीम कोर्ट में जमा करा दिया. शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के इस मसौदे पर दस्तखत करने वालों में दिगंबर अखाड़े के सुरेश दास, हनुमान गढ़ी के धर्मदास, निर्मोही अखाड़े के भास्कर दास इसके अलावा राम विलास वेदांती, गोपालदास और नरेंद्र गिरी ने भी समर्थन किया था. अयोध्या विवाद के हल का मसौदा (मस्जिद-ए अमन) सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया था, जिसे कोर्ट ने स्वीकार नहीं किया था.

हालांकि, रिजवी ने कहा था कि हिंदू और शिया इस पर सहमत है,  सुन्नी वक्फ बोर्ड का इससे कोई लेनादेना नहीं है, वो भी अदालत में है हम भी अदालत में है कोर्ट फैसला करेगा.उन्होंने कहा कि अयोध्या की बजाए हमने लखनऊ में इसलिए प्रस्तावित की है क्योंकि पुरानी लखनऊ मे घंटाघर के सामने बड़ी जमीन मौजूद है, यहां शिया आबादी भी काफी है और विवादों से दूर है इसलिए हमारा फॉर्मूला यही है.

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