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यहां जलती चिताओं के बीच थिरकती हैं वेश्याएं

जहां पूरे साल मौत का मातम होता है वहां, एक शाम ऐसी भी होती है जब बाजे-गाजे पर वेश्‍याओं के पांव थिरकते हैं. यहां वाराणसी के मशहूर श्मशान मणिकर्णिका घाट की बात हो रही है. मान्यता है कि यहां नृत्य करने वाली महिलाओं को अगले जन्म में बेहतर जिंदगी मिलती है.

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चिता पर नृत्‍य
चिता पर नृत्‍य

जहां पूरे साल मौत का मातम होता है वहां, एक शाम ऐसी भी होती है जब बाजे-गाजे पर वेश्‍याओं के पांव थिरकते हैं. यहां वाराणसी के मशहूर श्मशान मणिकर्णिका घाट की बात हो रही है. मान्यता है कि यहां नृत्य करने वाली महिलाओं को अगले जन्म में बेहतर जिंदगी मिलती है.

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यही वजह है कि हर साल चैत्र नवरात्र में दूर-दूर से देहव्यापार से जुड़ी महिलाएं यहां आ कर महफिल सजाती हैं. इस बार भी बुधवार की रात नगरवधुओं ने पूरी रात जलती चिताओं के बीच नृत्‍य कर साधना की ताकि अगले जन्‍म में उन्‍हें अपना शरीर ना बेचना पड़े. बताया जाता है कि यहां कई सालों से यह परंपरा चली आ रही है.

समाज की टेढ़ी नजरों का सामना करने वाली नगरवधुओं ने पुण्य कमाने की चाहत में हर साल की तरह इस बार भी सदियों से चली आ रही परंपरा को पूरी शिद्दत से निभाया.

मणिकर्णिका के श्मशान घाट में बने मशान बाबा मंदिर में साधना के लिए वाराणसी के अलावा चंदौली, मिर्जापुर और मुंबई समेत कई शहरों से नगरवधुएं आई थीं. उन्होंने सबसे पहले मंदिर में श्मशान नाथ बाबा का श्रृंगार किया. इसके बाद वो जलती चिताओं के पास सजे मंच में पूरी रात थिरकती रहीं.

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गौरतलब है कि 16वीं शताब्दी में राजा मान सिंह ने इस मशान नाथ मंदिर को बनवाया था. तब ऐसी परंपरा था कि जब भी मंदिर बनवाया जाता था, उसके बाद वहां भजन-कीर्तन का आयोजन होता था. लेकिन यहां, श्मशान होने की वजह से कोई कलाकर आने को तैयार नहीं हुआ. राजा की ओर से नगरवधुओं को निमंत्रण भेजा गया. उन्होंने इसे स्वीकार कर किया. वे पूरी रात बाबा के दरबार में नृत्य करती रहीं और मन्नते मांगती रहीं कि उन्‍हें अगले जन्‍म में बेहतर जिंदगी मिले और रोजी-रोटी के लिए अपने तन का सौदा ना करना पड़े.

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