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जातीय हिंसा की शिकार गाय की नहीं ली किसी ने सुध, गोरक्षक कहां?

सवाल ये है कि जब से इस गांव में हिंसा का दौर चला है न सिर्फ नेता यहां आ रहे हैं बल्कि पूरा प्रशासनिक अमला यहां डेरा डाले हुए है. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने बीमार गायों के लिए एम्बुलेंस सेवा शुरू की है तो फिर मरणासन्न अवस्था में ये गाय यहां क्यों पड़ी हुई है. वो भी तब जब जिले के प्रशासनीके अधिकारी यहां आ रहे हैं. ना ही इस गाय की मदद के लिए गौ-रक्षक सनक रहे हैं जो गाय की रक्षा के लिए इंसान की जान लेने से भी नहीं चूकते.

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घायल गाय
घायल गाय

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सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में जातीय हिंसा के दौरान कई जानवर भी मर गए. कुछ आग में झुलस कर तो कुछ बाद में घायल होकर. 26 मई को जब आज तक की टीम गांव पहुंची तो देखा कि एक किनारे पर घायल अवस्था में एक गाय पड़ी है. उसके एक पैर में कपड़ा बंधा था और शरीर में कई जगह घाव थे.

जब उसके मालिक के बारे में पूछा गया तो एक महिला सामने आई जिसने बताया कि 5 मई को जिन दलितों के घरों में आग लगाई गई उनमें से एक घर उसका भी था. उसके दो जानवर आग में झुलस कर मर गए जबकि 2 जानवर गायब हो गए थे. उनमें से एक ये गाय भी थी.

महिला के मुताबिक 11 मई को राजपूत समुदाय के 2 लड़के और उसके ही समुदाय का एक लड़का मिल कर इस गाय को यहां सड़क किनारे डाल गए. गाय के एक पैर में तलवार से वार किया गया था जिसकी वजह से वो घायल हो गयी थी. उसके शरीर में और भी कई जगह चोटें आईं थीं. महिला ने कुछ दवा वगैरह लगाई लेकिन गाय की हालत बेहद खराब है. महिला ने हमें बताया था कि कोई भी सरकारी डॉक्टर उसकी गाय को देखने अब तक नहीं आया है.

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सवाल ये है कि जब से इस गांव में हिंसा का दौर चला है न सिर्फ नेता यहां आ रहे हैं बल्कि पूरा प्रशासनिक अमला यहां डेरा डाले हुए है. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने बीमार गायों के लिए एम्बुलेंस सेवा शुरू की है तो फिर मरणासन्न अवस्था में ये गाय यहां क्यों पड़ी हुई है. वो भी तब जब जिले के प्रशासनिक अधिकारी यहां आ रहे हैं. ना ही इस गाय की मदद के लिए गोरक्षक सनक रहे हैं जो गाय की रक्षा के लिए इंसान की जान लेने से भी नहीं चूकते.

गांव में दौरे पर आए सहारनपुर के जिलाधिकारी पी. के. पांडेय से हमने जब पूछा कि आखिर गाय यहां क्यों पड़ी है तो उन्होंने जवाब दिया कि मैंने कल भी इसे देखा था और जानवरों के डॉक्टर को इलाज के लिए कहा था. हमसे बात करने के बाद जिलाधिकारी महोदय ने फिर से जानवरों के डॉक्टर के लिए निर्देश दिया.

जातीय हिंसा की आग में इंसान भी झुलसे और बेजुबान जानवर भी मरे. लेकिन गाय के नाम पर राजनीति करने वाले इस बेजुबान जानवर की तीमारदारी के लिए नदारद दिखे और सरकारी मदद भी इस गाय को नहीं मिल पाई.

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