माना जा रहा है कि बीजेपी आलाकमान ने जिस तरह योगी आदित्यनाथ की नई सरकार के मंत्रिपरिषद का गठन करने में अंतिम निर्णय लिया, उसी तरह चुने गए मंत्रियों को विभाग आवंटित करने में प्रमुख भूमिका निभाई है.
जो लोग योगी की कार्यशैली को जानते हैं, उनके पास यह मानने का कारण है कि हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मिले भारी बहुमत के बावजूद, यूपी के सीएम के हाथ खुले नहीं हैं. यहां तक कि बीजेपी के अन्य प्रमुख नेता भी ये महसूस करते हैं.
लखनऊ में पार्टी के एक शीर्ष नेता का कहना है,'हमारी पार्टी की अगली बड़ी चुनौती 2024 का लोकसभा चुनाव है. जब नरेंद्र मोदी को तीसरी बार प्रधान मंत्री के रूप में फिर से स्थापित किया जाना है. इसलिए उस चुनाव को ध्यान में रखते हुए यह स्वाभाविक है कि पार्टी सभी निर्णय लेगी. इसमें क्या गलत है अगर मंत्रियों का चयन और विभागों का आवंटन नई दिल्ली में बैठे बड़े लोग करें.'
यही वजह है कि कुछ पोर्टफोलियो आवंटन से हर कोई हैरान था. जैसे कि दोनों उप मुख्य मंत्री केशव प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक को उनकी पसंद के विभाग मिले. पीडब्ल्यूडी मंत्री के रूप में अपना 5 साल का लंबा कार्यकाल करने वाले मौर्य को अब ग्रामीण विकास और उसके संबद्ध विभागों के सभी महत्वपूर्ण उच्च बजट वाले मंत्रालय सौंप दिए गए.
महामारी के दौरान, आम आदमी की दुर्दशा पर प्रकाश डालते हुए योगी आदित्यनाथ को कड़े शब्दों में पत्र लिखकर साहस दिखाने वाले बृजेश पाठक को अब स्वास्थ्य क्षेत्र के सभी विभाग सौंप दिए गए हैं. पाठक न केवल नए स्वास्थ्य मंत्री हैं, बल्कि मेडिकल शिक्षा विभाग को भी संभालेंगे. इसके तहत, वह सरकारी क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले सभी मेडिकल कॉलेजों और अन्य शीर्ष चिकित्सा शिक्षा संस्थानों के कामकाज की देखरेख करेंगे. योगी के पिछले शासन में, पाठक के पास कानून मंत्रालय था, जो उतना अहम नहीं था. फिर भी उन्होंने मुख्यमंत्री के साथ मिलकर अपनी पहचान बनाई.
नए शासन में जिस व्यक्ति को सबसे बड़ा फायदा हुआ है, वह रहे जितिन प्रसाद, जिन्हें लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) मिला था. इस निर्णय से पार्टी में काफी नाराज़गी दिखाई दी कयोंकि जितिन प्रसाद को पार्टी में शामिल हुए एक साल से भी कम हुआ है.
खास बात यह है कि सभी महत्वपूर्ण गृह विभाग मुख्यमंत्री के पास ही हैं. 33 अन्य विभागों में नियुक्तियों और कर्मियों, सरकारी संपदा, खनन, राजस्व, कानून के साथ-साथ खाद्य और नागरिक आपूर्ति जैसे प्रमुख मंत्रालय भी शामिल हैं. बहुत सी अटकलें थीं कि गुजरात कैडर के पूर्व आईएएस अधिकारी अरविंद कुमार शर्मा को गृह विभाग दिया जा सकता है. अरविंद कुमार शर्मा को पिछले साल प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के उम्मीदवार के रूप में यहां भेजा गया था. वे अब शहरी विकास मंत्री हैं.
उत्तराखंड की पूर्व राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को महिला एवं बाल कल्याण मंत्री बनाना डिमोशन दिखाई दे रहा है. केवल इसलिए नहीं कि वह दलित समुदाय से हैं, बल्कि इसलिए भी कि उन्हें एक राज्य के राज्यपाल के रूप में पद छोड़ने और राज्य विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए मजबूर किया गया था. माना जा रहा था कि वे तीसरी उपमुख्यमंत्री हो सकती हैं, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
पूर्व आईपीएस अधिकारी असीम अरुण, जिन्हें कन्नौज विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए कानपुर पुलिस आयुक्त की सेवा छोड़ी, उन्हें राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के तौर पर समाज कल्याण विभाग दिया गया है.
पिछली सरकार के 21 पद धारियों में से जिन्हें नई सरकारों में हटा दिया गया, उनमें सबसे बड़ा आश्चर्य पूर्व स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह थे. कोई भी अनुमान नहीं लगा सकता कि उन्हें मंत्रालय से क्यों हटा दिया गया. अपनी सत्यनिष्ठा, स्पष्टता और दक्षता के लिए पहचाने जाने वाले जय प्रताप सिंह ने वह करके दिखाया जो अतीत में कई स्वास्थ्य मंत्री नहीं कर पाए थे. अटकलें लगाई जा रही हैं कि शायद मुख्यमंत्री से उनकी नजदीकी ही वह वजह है जिसकी उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ी.
इसी तरह से पूर्व प्रवर्तन निदेशालय अधिकारी राजेश्वर सिंह को हटाया जाना भी आश्चर्यजनक था. इन्होंने लखनऊ से अपना पहला चुनाव लड़ने के लिए संयुक्त निदेशक की नौकरी छोड़ दी थी, वहां उन्होंने शानदार अंतर से जीत हासिल की थी. उनके साथ रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह भी, जिन्होंने नोएडा से 1.80 लाख वोटों के रिकॉर्ड अंतर से जीत हासिल की थी.
कुछ प्रमुख चेहरे भी हैं जिन्हें बरकरार रखा गया, उन्हें प्रमुख विभाग सौंपे गए, तो वहीं कुछ नए लोगों को भी भारी पोर्टफोलियो मिले. इनमें पूर्व राज्य भाजपा अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह शामिल है, जिन्हें जल शक्ति मंत्रालय का प्रभार दिया गया है. मुख्यमंत्री के करीबी माने जाने वाले महेंद्र सिंह को इस बार हटा दिया गया है.
आश्चर्यजनक रूप से, अपने ओबीसी पृष्ठभूमि की वजह से संजय निषाद, जो चुनाव से काफी पहले पार्टी में शामिल हो गए थे, उन्हें केवल मत्स्य पालन जैसा आम विभाग मिला है.
हालांकि, दया शंकर सिंह, जिन्होंने बलिया से शानदार जीत हासिल की है उन्हें महत्वपूर्ण परिवहन मंत्रालय मिल गया. जिस बात ने सभी को चौंका दिया, वह था सबसे अहम और सबसे आकर्षक, आबकारी मंत्रालय. इसे नरेश अग्रवाल के बेटे नितिन अग्रवाल को दिया गया. उन्हें राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बनाया गया है.
इनपुट- शरत प्रधान