उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का आदेश जारी किया है. इन 17 जातियों में कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिन्द, भर, राजभर, धीमर, वाथम, तुरहा, गोड़िया, मांझी और मछुआरा शामिल हैं. जिनकी यूपी में करीब 13 फीसदी से ज्यादा आबादी है.
राजनीतिक रूप से 13 फीसदी वोट बैंक काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. यही वजह है कि बीजेपी से पहले मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव ने भी ये दांव चला था, लेकिन उस समय इन समुदाय को अनुसूचति जाति का दर्ज नहीं मिल सका था. ऐसे में अब देखना होगा कि सूबे की योगी सरकार अपने इस मंसूबे में कामयाब होती है या नहीं?
बता दें कि उत्तर प्रदेश में लंबे समय से ये पिछड़ी जातियां अनुसूचित जाति में शामिल करने की मांग कर रही हैं. इनमें राजभर 1.32 फीसदी, कुम्हार व प्रजापित 1.84 फीसदी और गोंड 0.22 फीसदी हैं. इसके अलावा बाकी 13 जातियां निषाद समुदाय में आती हैं. जिनमें निषाद, बिंद, मल्लाह, केवट, कश्यप, भर, धीवर, बाथम, मछुआरा, कहार, धीमर, मांझी और तुरहा शामिल हैं. इन समुदाय की आबादी करीब 10 फीसदी है.
इस तरह से योगी सरकार ने जिन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के लिए सिफारिश की है. इनकी कुल आबादी 13.38 फीसदी हो रही है. ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव में हार जीत में ये जातियां अहम भूमिका अदा कर सकती हैं.
मुलायम सिंह यादव ने सबसे पहले 2005 में इन 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के लिए एक आदेश जारी किया था. मुलायम के इस फैसले पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी, जिसके बाद इस प्रस्ताव को केंद्र सरकार के पास भेजा गया. केंद्र सरकार से मंजूरी मिलती इससे पहले उत्तर प्रदेश में सरकार बदल गई और मायावती 2007 में मुख्यमंत्री बनी तो इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया. इसके बाद इन जातियों के अनुसूचित जाति के शामिल होने के मंसूबे पर पानी फिर गया.
हालांकि बाद में मायावती इन जातियों को साधने के लिए अनुसूचित जाति में शामिल करने की उनकी मांग को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखा था, लेकिन केंद्र सरकार ने इस पर कोई तवज्जो नहीं दी.
मुलायम सिंह यादव की तर्ज पर अखिलेश यादव ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले ऐसी ही कोशिश की थी. दिसंबर 2016 को अखिलेश ने 17 अति पिछड़ी जातियों को एससी में शामिल करने के प्रस्ताव को कैबिनेट से मंजूरी दी थी. केंद्र को नोटिफिकेशन भेजकर अधिसूचना जारी की गयी, लेकिन इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई, जिसके बाद मामला केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय में जाकर अटक गया.
अब बीजेपी ने इन अति पिछड़े समुदाय को साधने की कवायद की है. योगी सरकार ने इन 17 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की सिफारिश कर एक बड़े वोट बैंक को अपने साथ मिलाने का दांव चला है. अभी केंद्र और राज्य दोनों जगह बीजेपी की सरकार है.
बता दें कि उत्तर प्रदेश में 20.7 फीसदी दलित आबादी है, जाटव, वाल्मीकि, धोबी, कोरी, पासी, चमार, धानुक समेत 66 उपजातियां हैं, जो सामाजिक तौर पर बंटी हुई हैं. इन्हें उत्तर प्रदेश में 21 फीसदी आरक्षण मिल रहा है. ऐसे में 17 अति पिछड़ी जातियां भी शामिल होती हैं तो दलित समुदाय की उपजातियों की संख्या 83 पहुंच जाएगी.
वहीं, उत्तर प्रदेश में ओबसी समुदाय को 27 फीसदी आरक्षण मिल रहा है, जिनमें ओबीसी में 79 जातियां शामिल हैं. उत्तर प्रदेश में ओबीसी समुदाय की आबादी करीब 52 फीसदी है, जिनमें मुस्लिम ओबीसी भी शामिल हैं. इस तरह से अगर योगी सरकार के द्वारा की सिफारिश को मंजूरी मिलती हैं तो 17 अतिपिछड़ी जातियां अलग हो जाती है तो 62 उपजातियां बचेंगी.
ऐसे में ओबीसी के 27 फीसदी आरक्षण में जहां जातियां कम होंगी तो अनुसूचित जाति के आरक्षण में जातियां बढ़ेंगी. दरअसल, संवैधानिक प्रक्रिया के तहत जातियों की पहचान करने के लिए आयोग बनाए गए थे, जिनके सदस्यों ने देश भर में घूम कर अनुसूचित और पिछड़ी जातियों की पहचान की थी. इसके बाद भी उन्हें कटेगरी में बांटा गया था.
दलित चिंतक प्रोफेसर विवेक कुमार कहते हैं कि अनुसूचित जातियों की पहचान करने के लिए जो मानदंड तय किए गए थे. उसके मुताबिक वे जाति जिसे अछूत माना जाता है यानी जिनके छूने से लोग दूषित हो जाते हैं. उन्हें ही अनुसूचित जातियों में शामिल किया जा सकता है. ऐसे में अनुसूचित जातियों में वे जातियां शामिल नहीं की जा सकतीं, जो अछूत नहीं हैं. वह कहते हैं कि जिन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने की बात कही गई है क्या वह छूआ-छूत की शिकार हैं, अगर नहीं है तो उन्हें अनुसूचित जातियों में शामिल करना पूरी तरह से असंवैधानिक है.
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