बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की 'विजय शंखनाद रैली' की सफलता ने गोरखपुर सदर सांसद योगी आदित्यनाथ का कद और बढ़ा दिया है. रिकार्डतोड़ भीड़ देख भाजपा का शीर्ष नेतृत्व तो गदगद हुआ ही, अपनी मेहनत की तारीफ सुन कार्यकताओं के हौसले भी बुलंद हुए.
पर यह सब कुछ इतना आसान नहीं था. रैली की तारीख जब घोषित हुई तो इसके कर्ताधर्ता योगी कोलकाता में थे. मोदी, योगी और गोरखनाथ मंदिर के आतंकियों के निशाने पर होने के मद्देनजर सुरक्षा अहम सवाल था. मोदी को रैली के पूर्व मंदिर आना था, वह भी खिचड़ी मेले के दौरान. दोनों जगह सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम वाकई चुनौती पूर्ण था.
इस बीच प्रदेश पुलिस के एक आला अफसर ने यूपी में दर्जन भर कुख्यात इनामी आतंकियों के होने की घोषणा की. दूसरे दिन अखबारों में संबंधित आतंकियों की फोटो भी छपी. इसके बावजूद योगी के प्रबंधन ने रैली में आने वाले लोगों में किसी भी प्रकार का भय नहीं होने दिया. प्रशासन के साथ योगी ने पूरा सहयोग किया.
रैली की तैयारी के लिए हुई पहली बैठक में प्रदेश अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेयी के न आने से सारी जवाबदेही योगी पर ही आ गई थी. अंतरराष्ट्रीय विश्व हिंदू संगम और लालकृष्ण आडवाणी की सफल रैलियों के अनुभव उनके काम आए.
उन्होंने बीजेपी के साथ अपने संगठनों (हिंदु युवा वाहिनी, विश्वहिंदू महासंघ) और पहले के आंदोलनों में समर्थन और सहयोग देने वाले अन्य संगठनों के साथ लगातार बैठकें की, जो लोग मनोयोग से लगे थे उनको उन जिलों में दुबारा भेजा जहां से उनको अपेक्षित मदद की उम्मीद नहीं थी. इसका नतीजा एक सफल रैली के रूप में सामने आया.