उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पिछड़े वर्ग को मिलने वाले 27 फीसदी आरक्षण को क्या तीन हिस्सों में बांटने की तरफ बढ़ रही है? यह बात इसलिए क्योंकि योगी आदित्यनाथ सरकार ने 2010 से लेकर 2020 के बीच विभिन्न विभागों में ओबीसी आरक्षण के तहत हुई नियुक्तियों का जातिवार विवरण मांगा है. ओबीसी आरक्षण कोटा पूरा हुआ या नहीं ये आंकड़े भी सरकार ने मांगे हैं.
योगी सरकार पिछले 10 साल में सरकारी नौकरियों में ओबीसी प्रतिनिधित्व का आकलन करने जा रही है. इसके तहत राज्य सरकार की सेवाओं में ओबीसी की 79 उपजातियों के हिसाब से कार्मिकों की गिनती होगी. पहली बार समूह 'क' से 'घ' तक के पदों में ओबीसी की उपजातियों की स्थिति बतानी है. पदों का विवरण कैडर के मुताबिक देना होगा. इसके लिए सरकार ने सभी विभागों के अपर मुख्य सचिवों को पत्र भेजा है.
साल 2010 से 2020 के बीच उत्तर प्रदेश में कुल स्वीकृत पद, भरे गए पद, ओबीसी के लिए तय पद, ओबीसी से भरे गए पद, सामान्य श्रेणी में चयनित ओबीसी की संख्या, कुल भरे गए पदों के मुकाबले ओबीसी का प्रतिशत कितना रहा आदि जानकारियां सरकार ने मांगी हैं. इसी के मद्देनजर 83 विभागों में से 40 के अफसरों की एक बैठक 23 अगस्त को और बाकी विभागों के अधिकारियों की बैठक 24 अगस्त को बुलाई गई है.
मायावती से लेकर अखिलेश राज का आंकड़ा
सीएम योगी के इस कदम से सूबे में सरकारी नौकरियों में ओबीसी की जातियों में किस जाति को आरक्षण का कितना लाभ मिला और किसे फायदा नहीं मिला, यह बात सार्वजनिक होगी. जिस तरह 2010 से 2020 के बीच का आंकड़ा मांगा गया है, उसमें दो साल मायावती शासन के, पांच साल अखिलेश यादव के शासन के और तीन साल योगी सरकार के कार्यकाल के हैं. पता चलेगा कि किस सरकार में ओबीसी की किस जाति को कितनी नौकिरयां मिलीं.
माना जाता है कि मंडल कमीशन लागू होने के बाद 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण का सबसे ज्यादा फायदा यूपी में यादव, कुर्मी, चौरसिया, कुशवाहा, मुस्लिम जुलाहे और जाट समुदाय के लोगों को मिला है. ओबीसी की अन्य जातियों को इनकी तुलना में ज्यादा लाभ नहीं मिला. बीजेपी यह बात खुलकर कहती रही है कि ओबीसी आरक्षण का लाभ पिछड़े वर्ग के कुछ खास हिस्से को मिलता रहा है.
यूपी में बीजेपी ओबीसी को तीन हिस्सों में बंटेगी
ओबीसी को तीन हिस्सों में बांटकर देखा जाता है- पिछड़ा वर्ग, अति पिछड़ा वर्ग और अत्यंत पिछड़ा वर्ग. यूपी पिछड़ा वर्ग आयोग के एक नोट के मुताबिक, पिछड़े वर्ग की जातियां सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से सबल हैं और अति पिछड़ी जातियां उपरोक्त जातियों की तुलना में चारों ही स्तरों पर कमजोर हैं. उस नोट में यह भी बताया गया है कि उपरोक्त दोनों वर्ग की जातियों की तुलना में अत्यंत पिछड़ी जातियां बहुत कमजोर हैं.
दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी ने भी संगठनात्मक रूप से अपनी सहूलियत के लिए उत्तर प्रदेश की ओबीसी जातियों को तीन हिस्सों-पिछड़ा, अति पिछड़ा और अत्यंत पिछड़ा में बांटा है. बीजेपी शुरू से ही ओबीसी आरक्षण को तीन हिस्सों में बांटने का एजेंडा लेकर चलती रही है. राजनाथ सिंह ने यूपी के मुख्यमंत्री रहते हुए 2002 में ओबीसी आरक्षण को पिछड़ा वर्ग, अति पिछड़ा वर्ग और अत्यंत पिछड़ा वर्ग के बीच बांटने की दिशा में कदम बढ़ाया था, लेकिन वे इसे अमलीजामा नहीं पहना सके.
राघवेंद्र कमेटी में ओबीसी आरक्षण का फॉर्मूला
योगी सरकार ने ओबीसी आरक्षण के आकलन के लिए जस्टिस राघवेन्द्र सिंह की अगुवाई में एक कमेटी बनाई थी, जो अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप चुकी है. राघवेन्द्र कमेटी ने ओबीसी आरक्षण को तीन हिस्सों में बांटने की सिफारिश की है. इसमें पिछड़ी जातियों में यादव, अहीर, जाट, कुर्मी, सोनार, चौरसिया सरीखी जातियों को 7 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की गई है. अति पिछड़ा वर्ग में गुज्जर, लोध, कुशवाहा, शाक्य, तेली, साहू, सैनी, माली और नाई सहित 65 जातियों को 11 फीसदी आरक्षण और अत्यंत पिछड़ा वर्ग में मल्लाह, केवट, निषाद, राई, नोनिया, गद्दी, घोसी, राजभर जैसी 95 जातियों को 9 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश है.
सूबे के राजनीतिक समीकरण को देखते हुए योगी सरकार भी चार साल से इसे ठंडे बस्ते में डाले हुए है. राघवेंद्र कमेटी की रिपोर्ट को योगी सरकार अभी तक लागू नहीं कर सकी जबकि सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने इसी के चलते बीजेपी से गठबंधन तोड़ लिया था. योगी सरकार ने अब जब 10 साल के सरकारी नौकरियों में ओबीसी के आंकड़े मांगे हैं तो राजभर ने इसका स्वागत किया है.
ओबीसी आरक्षण से किसे लाभ, किसे नुकसान
योगी सरकार 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण को तीन हिस्सों में बांटती है तो ओबीसी की जो जातियां आरक्षण के दायरे में होते हुए भी अभी तक फायदा नहीं पा रही हैं, उन्हें इसका फायदा मिलेगा, लेकिन यादव, कुर्मी, चौरसिया, अंसारी जैसी जातियों को झटका भी लग सकता है. बीजेपी इसी वजह से ओबीसी आरक्षण को अभी तक नहीं छेड़ रही है क्योंकि ओबीसी आरक्षण को इस तरह छेड़ना बर्रे के छत्ते में हाथ डालने जैसा है. एक तरफ अति पिछड़ी जातियों को हिस्सेदारी देने का दबाव है तो दूसरी तरफ ओबीसी की कुर्मी, सोनार, चौरसिया जैसी जातियों के छिटकने का डर है, जो पार्टी की समर्पित वोटर बन गई हैं.
यूपी में यादव समुदाय जहां सपा का मजबूत वोटबैंक माना जाता है, वहीं कुर्मी, चौरसिया, कुशवाहा, सोनार, जाट जैसे समुदाय फिलहाल बीजेपी के साथ मजबूती से खड़े हैं. बीजेपी की यूपी में सहयोगी अनुप्रिया पटेल की अपना दल (एस) का आधार भी कुर्मी वोट हैं. अखिलेश से लेकर अनुप्रिया पटेल, ओपी राजभर और संजय निषाद जैसे नेता जातिगत जनगणना के आधार पर जिसकी जितनी हिस्सेदारी, उसी अनुपात में आरक्षण की भागीदारी की मांग करते रहे हैं. योगी सरकार के इस कदम के बाद ये मांग और जोर पकड़ सकती है.
कांशीराम का ओबीसी फॉर्मूला रहा हिट
दिलचस्प बात यह है कि मंडल के दौर पर सपा ने यादव और कुर्मी जातियों के बीच अपनी पकड़ बनाई तो अति पिछड़ी जातियों का प्रतिनिधित्व बहुजन समाज पार्टी के नेता कांशीराम करते रहे. उन्होंने इन जातियों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व दिया और उनके इसी मॉडल के चलते बसपा उत्तर प्रदेश में एक बड़ी ताकत बनी. बसपा की ताकत का कारण 20 प्रतिशत दलितों के साथ 35 से 40 प्रतिशत अति और अत्यंत पिछड़ा वर्ग का खड़े होना था.
90 के दशक से बीजेपी के एजेंडे में ओबीसी
90 के दशक के बाद यूपी में जिस पार्टी को अति पिछड़ी जातियों का बड़ा हिस्सा वोट करता है, उसे ही सत्ता मिलती है. बीजेपी ने इस बात को 1990 के दशक में ही समझ लिया था, लेकिन उसे इस समीकरण के लाभ के लिए 2014 तक इंतजार करना पड़ा. 1990 के दशक की शुरुआत में राम मंदिर आंदोलन और बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद बीजेपी चुनाव हारी. इसके बाद उसने धीरे-धीरे राजनीतिक प्रतिनिधित्व के मुद्दे पर इन जातियों को गोलबंद करना शुरू किया. 2014 में उसका गैर-यादव ओबीसी का दांव सफल रहा. इसके बाद से ओबीसी बीजेपी का हार्डकोर वोटर बन गया है. ऐसे में बीजेपी अगर ओबीसी आरक्षण को बांटने का दांव चलती है तो वो पार्टी के लिए उलटा भी पड़ सकता है.