उत्तर प्रदेश के जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान कर बसपा प्रमुख मायावती ने अपने जिला पंचायत सदस्यों को दूसरे के निशाने पर छोड़ दिया है. बसपा के जिला पंचायत सदस्य सूबे के कई जिलों में किंगमेकर की भूमिका में है. ऐसे में मायावती की घोषणा से यूपी के कई जिलों में बीजेपी के जीत की सियासी राह आसान मानी जा रही है. यही वजह है कि विपक्षी दल मायावती पर बीजेपी के साथ मिलीभगत का आरोप लगा रहे हैं.
यूपी में जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव में 18 सीटों के निर्विरोध के बाद असल लड़ाई अभी बाकी बचे 57 जिला पंचायत सीटों पर है, जहां 3 जुलाई को वोटिंग होनी है. हालांकि, जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए नामांकन वापस लेने की मंगलवार को अंतिम दिन है. मायावती के ऐलान के बाद कई जगह पर बसपा चुनावी मैदान छोड़ सकती है और उसके सदस्य किसी भी पार्टी को वोट देने के लिए आजाद हो गए हैं.
बसपा सुप्रीमो का निर्देश
दरअसल, मायावती ने सोमवार को प्रेस कॉफ्रेंस कर कहा कि हमने यूपी में जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया. इसके साथ ही मायावती ने पार्टी कार्यकर्ताओं को निर्देश देते हुए कहा कि वे इस चुनाव में अपना समय और ताकत लगाने की बजाय पार्टी के संगठन को मजबूत बनाने और जनाधार को बढ़ाने में लगाएं. बसपा प्रमुख के इस बयान से कई जिलों के सियासी समीकरण बदल गए हैं.
सहारनपुर बसपा का मजबूत गढ़ माना जाता है और पांच साल से जिला पंचायत पर पार्टी का कब्जा रहा है. सहारनपुर में इस बार सपा, बसपा, कांग्रेस व अन्य सहयोगी दलों ने एक साथ होकर सयुक्त उम्मीदवार के तौर पर बसपा के जोनी कुमार उर्फ जयवीर को चुनावी मैदान में उतारा है. लेकिन, अब मायावती के ऐलान के बाद बसपा ने सहारनपुर में जिला पंचायत चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है. बसपा के उम्मीदवार जयवीर ने भी चुनाव न लड़ने का ऐलान कर दिया है और अब मंगलवार को अपना नामांकन वापस ले लेंगे. इस तरह भाजपा प्रत्याशी चौधरी मांगेराम की जीत तय हो गई है.
मथुरा में बसपा के सबसे ज्यादा जिला पंचायत सदस्य
मथुरा में बसपा के सबसे ज्यादा जिला पंचायत सदस्य जीतकर आए है, लेकिन मायावती के ऐलान के बाद पार्टी के सदस्यो को दूसरी पार्टी को वोट देना का विकल्प खुल गया है. कानपुर में बसपा किंगमेकर की भूमिका में थी और पार्टी सदस्यों को सपा और बीजेपी साधने में जुट गई है. इसके अलावा कानपुर देहात, बिजनौर, मुजरफ्फरनगर, संभल, अंबेडकरनगर, बस्ती, बारबंकी सहित तमाम जिलें है, जहां बसपा सदस्य जीत हार तय करने की स्थिति में है.
प्रदेश भर से बसपा के करीब साढ़े 300 से ज्यादा जिला पंचायत सदस्य इस बार जीत दर्ज किए है. यूपी के 57 जिलों में से 41 जिले ऐसे है, जहां केवल दो ही उम्मीदवार मैदान में हैं. ऐसे में जिला पंचायत अध्यक्ष के प्रत्याशियों को जीत के लिए बसपा के टिकट पर जीते सदस्यों को साध रहे हैं. कानपुर में बीजेपी तो सभी निर्दलीयों को अपने पक्ष में जोड़ने के बाद भी बसपा के जिला पंचायत सदस्यों की जरूरत है.
मायावती के ऐलान के बाद बसपा के जिला पंचायत सदस्यों को खुला ऑफर दिया जाने लगा है. इसका राजनीतिक तौर पर सबसे बड़ा फायदा बीजेपी को होता दिख रहा है. सपा के पूर्व राज्यसभा सदस्य जावेद अली खान कहते हैं कि मायावती ने जिला पंचायत चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान कर बीजेपी को वॉकओवर ही नहीं दिया बल्कि अपने सदस्यों को सीधे तौर पर बीजेपी के पक्ष में वोट देने का संदेश दिया है. मायावती हमेंशा से ही यूपी में बीजेपी के लिए ऑक्सीजन देने का काम करती रही.
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष का आरोप
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू कहते हैं कि मायावती बीजेपी के दबाव में है. ऐसे में जितना बीजेपी कहती है वह उतना ही करती है. जनता की सेवा बहुत दूर है और अब तो लोगों का विश्वास भी मायावती से टूट चुका है. आने वाले समय में बसपा को और भी बुरे परिणाम देखने को मिलेंगे. देश में लोकतंत्र है और लोकतंत्र में कोई भी पार्टी चुनाव लड़ सकती है. ऐसे में जो पार्टियां जनता के बीच में ही नहीं है तो चुनाव लड़ कर क्या करेंगी? यूपी में मायावती का कोई आधार ही नहीं बचा है.
बसपा के एमएच खान कहते हैं कि बसपा का पूरा ध्यान 2022 के विधानसभा चुनाव पर है. जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव में जिस तरह से बीजेपी को जिताने के लिए डीएम-एसपी मेहनत कर रहे हैं. ऐसे में चुनाव लड़ने का कोई मतलब नहीं रह जाता है. इसीलिए बसपा ने अपना पूरा फोकस आगामी विधानसभा चुनाव पर है. विपक्ष में कौन क्या कहते है इससे हम मतलह नहीं रखते हैं और बसपा सिर्फ अपने मिशन पर काम करती है.
बीजेपी के प्रवक्ता नवीन श्रीवास्तव कहते हैं कि सपा, बसपा और कांग्रेस यह सब चाहे मिलकर लड़े या अकेले लड़ें. इससे बीजेपी को कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि जनता इन दलों को पहले ही नकार चुकी है. जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव हो या फिर आने वाला विधानसभा चुनाव बीजेपी रिकार्ड सीटों के साथ जीत दर्ज करेगी. जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में बीजेपी 65 से ज्यादा जिलों में अपना पंचायत अध्यक्ष बनाने जा रही है.