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चमोली और आसपास के इलाके में कुदरत की तबाही के बाद अब स्थानीय लोगों को रोजी-रोटी के संकट का खौफ सता रहा है. राहत बचाव कार्य जारी है, लेकिन हादसे के बाद इलाके में घूमने आए सैलानी पहाड़ छोड़ कर जा चुके हैं. तपोवन उत्तराखंड के जिस हिस्से में है वह आमतौर पर इन महीनों में सैलानियों से गुलजार रहता है. बाजारों में चहल-पहल रहने से दुकानों में भी भीड़ होती है. जोशीमठ के साथ-साथ बर्फबारी का केंद्र औली भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहता है.
चमोली हादसे के बाद सैलानी 2013 जैसी हादसे के अंदेशे से पहाड़ छोड़ कर चले गए. और जिन्होंने यहां घूमने आने के प्लान बना रखे थे, उनके इस तरफ कदम बढ़ाने पर भी खौफ ने ब्रेक लगा दिए.
जोशीमठ के प्रमुख बाजार अब वीरान
हालांकि तपोवन और रानी गांव जोशीमठ से 50 किलोमीटर से ज्यादा की दूरी पर हैं लेकिन डर यानि फियर साइकोसिस कोई दूरी नहीं देखता. 7 फरवरी को चमोली में तबाही की जानकारी जैसे ही मिली मैदानी इलाकों से आए सैलानियों ने घर लौटना शुरू कर दिया. जोशीमठ के प्रमुख बाजार अब वीरान हैं. होटलों में कमरे खाली पड़े हैं. और जो इक्का-दुक्का आने वाले लोग हैं वह या तो रेस्क्यू टीम का हिस्सा है या फिर वह लोग हैं जो अपने गुमशुदा लोगों की तलाश करने जोशीमठ पहुंचे हैं.
जोशीमठ में होटल चलाने वाले पीयूष ने आजतक से कहा, "आमतौर पर फरवरी महीने में सैलानियों की भीड़ होती थी और लोग विंटर फेस्टिवल या बर्फबारी देखने के लिए आते थे. हमारे सारे कमरे भरे होते थे. इस महीने जब से यह आपदा आई है तब से कमरे खाली हैं और जो लोग आए हैं वह या तो रेस्क्यू करने वाले हैं या अपने गुमशुदा लोगों को खोजने हैं."
रोजी-रोटी पर फिर सवाल खड़े
कोरोना वायरस महामारी के बाद अक्टूबर 2020 से ही उत्तराखंड में पर्यटन दोबारा शुरू करने की अनुमति दी गई थी. इससे पहाड़ पर सैलानियों पर जिनकी आजीविका निर्भर थी, उन्हें आस बंधी थी कि पिछले साल सब कुछ चौपट रहने के बाद फिर रोजगार पटरी पर लौट आएगा. लेकिन चमोली हादसे ने इनकी रोजी-रोटी पर फिर सवाल खड़े कर दिए.
पीयूष कहते हैं, "पहले कोरोना वायरस में लॉकडाउन से सब बंद रहा. और अब जब दिसंबर जनवरी में बर्फ अच्छी गिरी और टूरिस्ट आने लगे तो ये गर्मी का सीजन अच्छा रहने की उम्मीद बंधी. लेकिन इस हादसे ने फिर सब कुछ खत्म कर दिया अब रोजी-रोटी भगवान के हवाले है."
कुशल बिष्ट के होटल में भी इस वक्त सन्नाटा पसरा है. अब कुशल बिष्ट के साथ उनका स्टाफ भी सैलानियों के आने की बाट जोह रहा है. कुशल बिष्ट ने कहा, "यही मौसम में हमारी कमाई होती थी. इस साल भी फरवरी के शुरू तक सारे कमरे भरे हुए थे लेकिन 7 तारीख के बाद सारे टूरिस्ट होटल छोड़ कर अपने घरों को लौट गए. और अब यह नहीं पता कि वो फिर कब यहां वापस आना शुरू होंगे.
जोशीमठ और औली घूमने आने वाले सैलानियों को गर्म कपड़ों और लंबे जूतों की जरूरत पड़ती थी. इसी के सहारे हर्षित बहुगुणा जैसे दुकानदारों की कमाई चलती थी लेकिन अब फिर सब कुछ ठहर सा गया है. हर्षित कहते हैं, "अभी टूरिस्ट आना ही शुरू हुए थे, हमारा काम अच्छा चल रहा था, किराए पर जूते देते थे, गर्म कपड़े बेचते थे, लेकिन इस हादसे के बाद फिर बहुत मंदा हो गया. पता नहीं आगे क्या होगा."
उत्तराखंड के सबसे प्रमुख पर्यटक केंद्रों में औली भी एक है. यहां दिसंबर से लेकर फरवरी के आखिरी हफ्ते तक पर्यटकों को बर्फबारी के अलावा स्की और विंटर फेस्टिवल के लुत्फ का मौका मिलता था, फरवरी में औली में पैर रखने की भी जगह नहीं होती है. लेकिन 7 तारीख को चमोली ने जो तबाही देखी उसके बाद इक्का-दुक्का पर्यटकों के अलावा औली में सन्नाटा पसरा है.
औली से नंदा देवी की वह श्रृंखला देखी जा सकती है जहां 7 फरवरी को ग्लेशियर टूटने से अवलांचे की शुरुआत हुई थी. इस बारे में रुद्र कांडपाल बताते हैं, "पहले हमें लगा कि वहां किसी ने आग जलाई है लेकिन थोड़ी देर बाद आवाज आने लगी तो हमें अंदाजा हुआ कि शायद यह अवलांचे है और वहां से मलबे की तस्वीरें दूर से ही नजर आ रही थी. कुछ ही देर में पर्यटकों के फोन बजने लगे और उनमें से ज्यादातर डरे हुए थे."
पर्यटन के सहारे जीविका कमाने वाले परेशान हैं और उम्मीद है कि जल्दी ही जिंदगी फिर पटरी पर लौटे. केबल कार में सवारी करने वाले विजिटर्स की संख्या भी घट गई है. औली की मशहूर केबल कार में ऑपरेटर मुकुंद कहते हैं, "ज्यादा लोग आ रहे थे लेकिन 7 तारीख की घटना के बाद कई लोग डरे हुए थे. उनके घरों से फोन आ रहे थे कि जल्दी घर चले आओ और इसीलिए बहुत सारे पर्यटक सहमे हुए अपने घर तत्काल लौट गए." मुकुंद के मुताबिक पर्यटकों के आपस में बात करते हुए उनकी फिक्र साफ महसूस हो रही थी."
'डर दूर नहीं कर सके'
विंटर फेस्टिवल के अलावा औली स्की और बर्फ देखने वालों की भीड़ से सामान्य दिनों में आबाद रहता है. कारोबार से जुड़े स्थानीय लोग परेशान हैं और दलील देते हैं कि हादसा 50 किलोमीटर दूर हुआ, लेकिन सैलानियों को बहुत समझाने की कोशिश के बाद भी उनका डर दूर नहीं कर सके. अशोक बिष्ट कहते हैं, "जो हादसा हुआ वह औली से 50 किलोमीटर दूर है लेकिन सैलानियों को हम समझा नहीं पाए कि जोशीमठ में कुछ असर नहीं होगा. अब हमें नहीं पता कब पर्यटक फिर से कब औली लौटेंगे क्योंकि बर्फबारी का मौसम खत्म होने को है."
जब भी कोई तबाही आती है तो उसका सबसे बड़ा नुकसान पर्यटन या फिर उससे जुड़े हुए छोटे-मोटे व्यापारियों, कारोबारियों, टूरिस्ट गाइड्स आदि पर पड़ता है. उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा पर्यटन उद्योग से ही आता है. ऐसे में स्थानीय लोगों को यही उम्मीद है जल्दी से जल्दी सैलानियों के दिलों से खौफ खत्म हो और वो फिर एक बार पहाड़ का रुख करें.