हिंदी पट्टी के तीन राज्यों की तीन विधानसभा सीटों के लिए 5 सितंबर को वोट डाले गए थे. ये सीटें थीं उत्तर प्रदेश के मऊ जिले की घोसी, उत्तराखंड की बागेश्वर और झारखंड की डुमरी विधानसभा सीट. इन तीन सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे 8 सितंबर को आए. इन तीन में से दो सीटें घोसी और डुमरी में विपक्षी गठबंधन के उम्मीदवारों को जीत मिली और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को केवल एक सीट पर ही जीत मिल सकी. ये सीट थी उत्तराखंड की बागेश्वर.
उत्तर प्रदेश के घोसी उपचुनाव में योगी मंत्रिमंडल के तमाम कद्दावर मंत्रियों का सक्रिय रहना, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी का कैंप करना भी पार्टी को जीत नहीं दिला सका. वहीं, पड़ोसी उत्तराखंड की बागेश्वर सीट के उपचुनाव में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अंतिम दो दिनों में चुनावी हवा का रुख बदल दिया. बागेश्वर उपचुनाव में बीजेपी उम्मीदवार पार्वती दास की जीत के बाद माना जा रहा है कि सीएम धामी ने एक ब़ड़ा टेस्ट पास कर लिया.
दरअसल, धामी मंत्रिमंडल में मंत्री रहे बागेश्वर के विधायक चंदन राम दास का बीमारी के कारण निधन हो गया था. चंदन राम दास के निधन के कारण रिक्त हुई बागेश्वर सीट पर उपचुनाव में बीजेपी ने उनकी पत्नी पार्वती दास को उम्मीदवार बनाया. विपक्षी कांग्रेस ने बागेश्वर उपचुनाव में पूरी ताकत झोंक दी थी. उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत समेत कांग्रेस के कई हैवीवेट नेताओं ने बागेश्वर में कैंप कर चुनाव प्रचार किया. हरीश रावत ने बागेश्वर में आठ दिन कैंप कर प्रचार किया.
कांग्रेस नेता अपने पक्ष में माहौल होने और बड़ी जीत के दावे कर रहे थे. चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में बीजेपी के चुनाव अभियान की कमान उत्तराखंड के सीएम धामी ने संभाली. अंतिम दौर में सीएम धामी ने धुआंधार प्रचार किया और चुनाव नतीजे आए तो जीत बीजेपी की पार्वती को मिली.
बागेश्वर की जीत अहम क्यों
बागेश्वर उपचुनाव में बीजेपी की जीत इसलिए भी अहम हो जाती है क्योंकि पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश की घोसी सीट के उपचुनाव में पार्टी को करारी मात मिली. बीजेपी उम्मीदवार दारा सिंह चौहान को सपा के सुधाकर सिंह ने 42759 वोट के बड़े अंतर से हरा दिया था. 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले घोसी की हार ने जहां बीजेपी नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है तो वहीं उत्तराखंड की इस जीत से नेतृत्व को जरूर राहत मिली होगी.