
झारखंड के लोहरदगा में बेथेत गांव को शिद्दत के साथ इंतजार है अपने 9 सपूतों का, जिन्हें रोजी रोटी की तलाश मीलों दूर उत्तराखंड के चमोली में ले गई. ये सभी एनटीपीसी (नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन) प्रोजेक्ट में काम कर रहे थे. 7 फरवरी को चमोली में ग्लेशियर टूटने से हुए हादसे के बाद से ही इन 9 प्रवासी मजदूरों का कोई पता नहीं चल रहा.
बेथेत गांव के लिए ये दोहरी मार से कम नहीं है. एक तो पहले ही विकास से दूर इस आदिवासी गांव के लोग गरीबी का जीवन जीने को मजबूर है. अब इस आपदा में गांव के 9 लोगों के लापता होने पर यहां हर कोई परेशान है. घरों में चूल्हे तक नहीं जल रहे. ये दिन रात प्रार्थना कर रहे हैं कि ये सभी 9 लोग सलामत हों और जल्दी ही उनके बारे में कोई अच्छी सूचना गांव में पहुंचे. लेकिन अनहोनी की आशंका ने इनकी रातों की नींद भी उड़ा दी है.
गांव की मेढ़ पर बैठी बुजुर्ग महिला सोनमइत ओरण की आंखें रोते रोते पथरा चुकी हैं. बीते रविवार से वो कुछ खा नहीं पा रही हैं. उनका कहना है कि भूख ही मर चुकी है. दरअसल, सोनमइत का बेटा घर पर बिना बताए चमोली स्थित प्रोजेक्ट में अन्य लोगों के साथ काम करने गया था. होनहार छात्र दीपक ने आईटीआई डिप्लोमा किया हुआ था. उसे कोरोना लॉकडाउन के दौरान अप्रैंटिसशिप के लिए चुने जाने के बावजूद सूचना नहीं मिल पाई. इस मौके को खोने के बाद दीपक ने मोबाइल खरीदने का फैसला किया. दीपक की बहन रीना ने बताया कि मोबाइल खरीदने और घरवालों की आर्थिक मदद के इरादे से ही दीपक ने चमोली का रुख किया होगा. दीपक का नाम लेते ही उनकी मां और रीना का गला भर आता है.
गांव के ही शशि ओरण देखने मे भले ही मजबूत दिख रहे हैं, लेकिन उनके कान ये सुनने के लिए तरस रहे हैं कि कब उनके भाई रविंद्र के सही सलामत होने की खबर उन तक पहुंचे. शशि के मुताबिक लॉकडाउन के दौरान उनके परिवार की आर्थिक हालत बहुत खराब हो गई थी. उनकी एक बहन भी है जिसकी शादी करनी है. ऐसे हालात में रविंद्र ने गांव से इतनी दूर चमोली जाकर पैसे कमाने का फैसला किया. जाते वक्त उसने यही सोचा कि साल में एक लाख रुपए भी कमा लेगा तो बहन के हाथ पीले कर सकेगा. लेकिन शशि अब यही मलाल करते हैं कि उन्होंने अपने भाई को इतनी दूर क्यों भेजा.
गांव में रहने वाली महिमा बाखला मैट्रिक परीक्षा अच्छे अंकों से पास की. महिमा के पिता उरबानुश बाखला ने सोचा कि आगे वो और अच्छी तरह पढ़ सके, इसलिए उन्होंने चमोली में एनटीपीसी प्रोजेक्ट में जाकर काम करने का फैसला किया. अब महिमा और उसकी मां प्रतिमा दिन रात प्रार्थना कर रही हैं कि उरबानुश बाखला को कुछ न हुआ हो और अगर कहीं फंसे भी हुए हों तो उन्हें सुरक्षित निकाल लिया जाए.
लापता 9 लोगों के घरों में रिश्तेदार तो बेहाल हैं ही, गांव के बाकी घरों में भी सूनापन छाया हुआ है. प्रकाश और मरशीला की उम्र इतनी हो चुकी है कि अब वो खुद कोई काम करने की स्थिति में नहीं है. उनके सहारा दो बेटे- सुनील और निमाश- चमोली स्थित प्रोजेक्ट में कमाने के लिए गए थे. बड़े बेटे की शादी को अधिक समय नहीं हुआ. शादी के लिए इस परिवार ने डेढ़ लाख का कर्ज बैंक से लिया था. अब प्रकाश और मरशीला को बेटों की सलामती के साथ ये भी चिंता है कि घर आगे कैसे चलेगा.
लोहरदग्गा के उपायुक्त (डीसी) दिलीप टोप्पो के मुताबिक गांव के लापता 9 लोगो के लिए वो चमोली से लगातार संपर्क में हैं लेकिन अब तक वहां से कोई सूचना नहीं मिली है. टोप्पो कहते हैं जैसे ही कोई सूचना मिलती है तो एक अधिकारी के साथ इन नौ लोगों के परिजनों को चमोली भेजा जाएगा. डीसी ने गांव जाकर खुद लापता लोगों के परिजनों से ये बात कही. इसके अलावा चमोली से कुछ खबर मिलते ही एक अधिकारी के साथ पीड़ित परिवार के सदस्यों को भेजने की बात खुद गावँ पहुंच कर गावँ वालो से कही है.
झारखंड के आपदा प्रबंधन मंत्री बन्ना गुप्ता ने कहा है कि इन 9 लोगों के परिवारों को पूरा सहयोग दिया जाएगा. उन्हें जो मदद की जरूरत होगी, उन तक पहुंचाई जाएगी.
दरअसल, इन लापता लोगों की दिक्कत ये है कि उनका एनटीपीसी से सीधा कोई कॉन्ट्रेक्ट नहीं था. वो ठेकदार के माध्यम से प्रोजेक्ट में काम करने के लिए पहुंचे थे. ठेकेदार ने उनका जीवन बीमा करा रखा था या नहीं, ये बात भी लापता लोगों के परिवारों को नहीं पता. बहरहाल, गांव में हर कोई उम्मीद लगाए बैठा है कि चमत्कार हो और गांव के ये 9 लाडले जल्दी ही सलामत लौट आएं.
(लोहरदगा से सतीश के इनपुट्स के साथ)