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चारधाम प्रोजेक्ट की ऑलवेदर रोड: पहाड़ के विनाश को दावत देता विकास!

चारधाम प्रोजेक्ट केंद्र सरकार के लिए धार्मिक पर्यटन के साथ ही सामरिक रणनीति के लिहाज से भी काफी अहम है. यही वजह है कि इसे किसी भी कीमत पर जल्द से जल्द पूरा करने की कोशिश की जा रही है.

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स्टोरी हाइलाइट्स
  • केंद्र सरकार के लिए चारधाम प्रोजेक्ट काफी अहम
  • SC ने कहा- 5.5 मीटर से ज्यादा चौड़ी न हो सड़क
  • पहाड़ों पर निर्माण को लेकर संवेदनशील होने की जरूरत

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड में बनने वाली चारधाम प्रोजेक्ट की ऑलवेदर रोड को लेकर केंद्र सरकार को अहम निर्देश दिए हैं. इससे एक बार फिर यह मुद्दा चर्चा में आ गया है कि पर्वतीय इलाकों में किसी भी तरह के बदलाव को लेकर संवेदनशील होने की जरूरत है. सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रोजेक्ट में काटे जाने वाले पेड़ों से लेकर यहां चौड़ी हो रही सड़कों पर भी राजमार्ग और परिवहन मंत्रालय को निर्देश जारी किए हैं. 

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क्या है चारधाम प्रोजेक्ट की ऑलवेदर रोड?

चारधाम ऑलवेदर रोड प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है. इसकी शुरुआत 2016 में हुई थी. जैसा कि नाम से जाहिर है कि यहां बनने वाली सड़कों को हर मौसम के हिसाब से बनाया जाएगा. हिमालयी क्षेत्रों में बरसात के मौसम में अक्सर पहाड़ों के दरकने से सड़कें टूट जाती हैं और रास्ते बंद हो जाते हैं. लेकिन यह समस्या सड़क की नहीं, पहाड़ों की है. इस प्रोजेक्ट में करीब 900 किमी लंबी सड़क को चौड़ा किया जाना है. यह सड़क उत्तराखंड में केदारनाथ, बद्रीनाथ, युमनोत्री और गंगोत्री के साथ ही टनकपुर-पिथौरागढ़ की कनेक्टिविटी वाली सड़क है. यह सड़क कैलास मानसरोवर तक भी जाती है. 

भारत के लिए क्यों अहम है यह प्रोजेक्ट?

चारधाम प्रोजेक्ट की ऑलवेदर रोड न केवल उत्तराखंड सरकार बल्कि भारत सरकार के लिए भी काफी अहम है. राज्य और केंद्र सरकार के लिए यह प्रोजेक्ट धार्मिक पर्यटन की वजह से काफी महत्वपूर्ण हो जाता है. जिस तरह से केंद्र सरकार देश भर में धार्मिक पर्यटन पर जोर दे रही है, उसी तरह उत्तराखंड भी सरकार भी लिस्ट में है. यह प्रोजक्ट चारों धामों के साथ ही कैलास मानसरोवर की कनेक्टिविटी को बेहतर करेगा. यह प्रोजेक्ट रणनीतिक रूप से भी इसलिए अहम है, क्योंकि इसमें शामिल सड़कें चीन सीमा की ओर जा रही हैं. इन सड़कों के चौड़ा होने से धार्मिक पर्यटन ही नहीं बढ़ेगा, बल्कि इनका रणनीतिक इस्तेमाल भी किया जा सकेगा. 

 

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चीन के लिहाज से भी अहम है चारधाम प्रोजेक्ट
चीन के लिहाज से अहम है चारधाम प्रोजेक्ट

क्यों हो रहा है इस सड़क पर विवाद?

इस सड़क के निर्माण के समय से ही पर्यावरणविद इसमें नियमों की अनदेखी और निर्माण के तरीकों पर सवाल उठा रहे थे. इसलिए इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने रवि चोपड़ा कमेटी का गठन किया था. इस कमेटी ने हाल ही में चारधाम प्रोजेक्ट से इकोलॉजी को हो रहे नुकसान की रिपोर्ट पर्यावरण मंत्रालय को भी सौंपी थी. इस कमेटी ने दो अलग-अलग रिपोर्ट तैयार कीं. कमेटी चेयरमैन रवि चोपड़ा समेत पांच सदस्यों की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस प्रोजेक्ट से पर्यावरण को हो रहे नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती है. वहीं, 21 सदस्यों की अलग रिपोर्ट में कहा गया है कि पर्यावरण के नुकसान को कुछ कदम उठाकर कम किया जा सकता है. कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस प्रोजेक्ट में हजारों पेड़ वन विभाग की हरी झंडी दिए बिना ही काट दिए गए. कई जगहों पर वन और पर्यावरण मंत्रालय की क्लियरेंस नहीं थी. चारधाम प्रोजेक्ट के निर्माण में लगी एजेंसियों ने स्टेज-1 की क्लियरेंस के आधार पर ही सभी जगहों पर पेड़ हटाकर काम शुरू कर दिया.

लंबे समय से हो रही हैं शिकायतें

इसके अलावा कमेटी ने यह भी रेखांकित किया है कि पर्यावरण मंत्रालय की हरी झंडी लेने के लिए गलत जानकारियां भी दी गईं. कई जगहों पर सड़क इको-सेंसेटिव जोन से होकर गुजरती है. क्लियरेंस लेने वाले फॉर्म में जहां पर पूछा गया था कि क्या ये जगहें इको-सेंसेटिव जोन में हैं, तो जवाब 'हां' की बजाय 'न' में दिया गया. इसके अलावा सड़क बनाने में तोड़े जा रहे पहाड़ के मलबे को नदी के किनारे और जंगलों में डंप करने की भी शिकायतें लंबे समय से की जा रही थीं. पर्यावरणविद और लेखक सोपान जोशी कहते हैं कि ऑलवेदर रोड का नाम ही अपने आप में एक मजाक है. यह प्रकृति को हराने की कोशिश जैसा लगता है. आप मौसम से कैसे जीत सकते हैं. फिर ऐसे नाम रखकर ऐसी नीतियां बनाई जाती हैं जो पहाड़ों को नुकसान पहुंचाती हैं. 


 

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पहाड़ों पर निर्माण में संवेदनशील होने की जरूरत
पहाड़ों पर निर्माण में संवेदनशील होने की जरूरत

सुप्रीम कोर्ट ने दिए हैं केंद्र सरकार को निर्देश

रवि चोपड़ा के नेतृत्व में बनी कमेटी की पांच सदस्यों वाली रिपोर्ट में टार वाली सड़क की चौड़ाई 5.5 मीटर रखने और 21 सदस्यों वाली रिपोर्ट में सड़क की चौड़ाई 12 मीटर रखने की मांग की गई है. यह रिपोर्ट कोर्ट में भी पेश की गई. मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सड़क और परिवहन मंत्रालय के 2018 के नोटिफिकेशन के आधार पर ही सड़क बनाने का निर्देश दिया. उस निर्देश के मुताबिक पहाड़ी इलाकों में सड़क की चौड़ाई 5.5 मीटर रखी जाएगी. केंद्र सरकार ने इस सड़क को 7 मीटर चौड़ा करने की इजाजत मांगी थी, लेकिन कोर्ट ने कहा कि आप अपने ही सर्कुलर का उल्लंघन कैसे कर सकते हैं. साथ ही काटे जा रहे पेड़ों के बदले पौधारोपण के भी निर्देश दिए हैं. 

हिमालय में हलचल बड़ी आबादी को करेगी प्रभावित

दुनिया में सबसे ज्यादा बर्फ उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव में मिलती है. इसके बाद तीसरे नंबर पर हिमालय आता है. यहां से एशिया की कई नदियां निकलती हैं. जिन पर दुनिया की करीब एक तिहाई आबादी निर्भर है. इस बर्फ की वजह से हिमालय को तीसरा ध्रुव भी कहा जाता है. दुनिया की सबसे ऊंची चोटियों वाले हिमालय पर अगर संकट आता है तो यह मानव आबादी के बड़े हिस्से पर संकट होगा. हालिया अनुमान बताते हैं कि सन 2100 तक उत्तराखंड में मौजूद ग्लेशियरों का 70 से 90 फीसदी हिस्सा पिघल चुका होगा. इससे आने वाले बदलावों की केवल कल्पना ही की जा सकती है. ऐसे अनुमानों के पीछे यहां पर्यटन से मानवों की बढ़ती आवाजाही और अंधाधुंध निर्माण भी हैं.  

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काफी कमजोर हैं हिमालय के पहाड़

दुनिया के सबसे नई पर्वत श्रंखला हिमालय आज भी विकसित हो रही है. भूगर्भशास्त्री और फिजिकल रिसर्च लैब अहमदाबाद से रिटायर्ड वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नवीन जुयाल बताते हैं कि हिमालय सबसे नया पर्वत होने के साथ ही सबसे कमजोर भी है. इस इलाके में निर्माण को लेकर काफी संवेदनशीलता चाहिए. यहां डैम और सड़कें बनाने में काफी सावधान रहने की जरूरत है. तीखे ढलान होने से यहां की नदियों का बहाव भी काफी तेज है. यह इतना तेज है कि अपनी धारा (Stream) बदलकर पहाड़ों के लिए भी नुकसानदायक हो जाता है. इसे रोका या बांधा नहीं जा सकता है. यहां लैंडस्लाइड के ज्यादातर हादसे सड़कों के साथ होते हैं. सड़क का वर्टिकल कर्व भी लैंडस्लाइड को न्योता देता है. इन सभी चीजों को ध्यान में रखना चाहिए.

 

हिमालय के पहाड़ काफी कमजोर हैं
हिमालय के पहाड़ काफी कमजोर हैं

वैकल्पिक नीतियां अपनाने की जरूरत

यही बात पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता राजीव लोचन साह भी कहते हैं. वह बताते हैं कि हमारे यहां पर पहाड़ों को काटकर सड़क बनाने का चलन है. जबकि एक तरीका यह हो सकता है कि नदी के साथ-साथ एक दीवार उठाकर दोनों किनारों पर सड़कें बनाई जाएं. इससे न तो पहाड़ों को नुकसान पहुंचेगा और न ही पहाड़ों को काटने से निकलने वाला मलबा तबाही लाएगा. राजीव बताते हैं कि जेसीबी जैसी विशाल मशीनों से पहाड़ों को काटने से जो मलबा निकलता है, वह नदियों के किनारे डाला जाता है. इससे नदियां अपना रूट बदल देती हैं. वह कहते हैं कि चारधाम प्रोजेक्ट और बारिश के सीजन के चलते इस समय उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल की सारी सड़कें बंद हैं. लोगों को कई किलोमीटर लंबे रास्तों से होकर जाना पड़ रहा है. राजीव कहते हैं कि विकास के नाम पर पहाड़ों का यह हाल किया जा रहा है. अगर पहाड़ ही नहीं बचे तो विकास किस काम का रह जाएगा?

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मौजूदा विकास नीति में हैं खामियां

पहाड़ों की इकोलॉजी पर काम करने वाले और पत्रकार रोहित जोशी कहते हैं कि चारधाम प्रोजेक्ट गलत विकास नीति का सही उदाहरण है. यह प्रोजेक्ट धार्मिक और रणनीतिक रूप से केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों के लिए अहम है. इसलिए इन्हें किसी भी कीमत पर तुरंत पूरा करने की कोशिश की जा रही है. इसी चक्कर में यहां कई नए लैंड स्लाइड जोन बन गए हैं. वह आगे कहते हैं पहाड़ों पर कम चौड़ी सड़क बनाने की बात कहने के पीछे वैज्ञानिक कारण हैं. इन्हें मैदान की सड़कों की तरह मनमाफिक चौड़ा नहीं किया जा सकता. रोहित यह सवाल उठाते हैं कि कई पर्वतीय इलाकों में आज भी सड़कें नहीं पहुंच सकी हैं. एक राज्य की चार-पांच सड़कों को चौड़ा करने के बजाए, इनक्लूसिव डेवलपमेंट पॉलिसी के तहत प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि सड़कें सभी जगहों पर पहुंचें. 
 

 

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