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उत्तराखंड के फल मार्केट पर क्लाइमेट चेंज का बुरा असर, साल-दर-साल घट रहा एक्सपोर्ट

जलवायु परिवर्तन उत्तराखंड की फलों की खेती पर गहरा असर डाल रहा है, जिससे पैदावार में गिरावट और फलों की गुणवत्ता में कमी आ रही है. आम, लीची, और सेब जैसी फसलें गर्मी और अनियमित बारिश के कारण प्रभावित हो रही हैं. नई तकनीकों और फसली विविधिकरण के प्रयासों के बावजूद, जलवायु परिवर्तन राज्य के खेतीबाड़ी के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है.

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फ्रूट की खेती
फ्रूट की खेती

पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर सचेत कर रही है, क्योंकि इसका कुप्रभाव दुनिया पर एक बड़ा खतरा बनकर मंडरा रहा है. जलवायु परिवर्तन का असर उत्तराखंड के फ्रूट बास्केट पर भी प्रतिकूल असर डाल रहा है. जलवायु परिवर्तन ने उत्तराखंड की बागवानी, खासकर उष्णकटिबंधीय फलों की खेती पर गहरा असर डाला है.

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उत्तराखंड जो अपनी विविध जलवायुपरि स्थितियों के लिए जाना जाता है, उसे पिछले सात वर्षों में फलों की पैदावार में भारी गिरावट का सामना कर रहा है. बढ़ता तापमान, अनियमित बारिश और बार-बार आने वाली चरम मौसम घटनाएं, इसके पीछे प्रमुख कारण हैं.

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क्लाइमेट चेंज से प्रभावित हो रही फलों की खेती

क्लाइमेट ट्रेंड्स की एक ताजा रिपोर्ट में के मुताबिक, दीर्घकालिक वृद्धि चक्र और विशेष जलवायु परिस्थितियों पर निर्भर होने के कारण, सदाबहार फलों की फसलें जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं. गर्म सर्दियों, बारिश के बदलते पैटर्न और चरम मौसम घटनाओं ने फूलने, फल‌ बनने और पकने की प्रक्रिया को बुरी तरह प्रभावित किया है.

इसका नतीजा ये हुआ कि 2016 से 2023 के बीच, उत्तराखंड में फलों की खेती का क्षेत्र 54% तक घट गया और कुल उपज में 44% की गिरावट आई. विशेष रूप से आम, लीची और अमरूद जैसे ग्रीष्मकालीन फलों के लिए गंभीर चुनौतियां सामने आई हैं, जहां अत्यधिक गर्मी और बारिश में उतार-चढ़ाव के कारण फलों का जलना, फट जाना और संक्रमण जैसी समस्याएँबढ़ गई हैं.

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क्लाइमेट चेंज से बदल रहे फलों के आकार

नैनीताल जिले में रामनगर इलाके में आम और लीची की खेती करने वाले दीप बेलवाल कहते हैं कि, "आम और लीची का आकार अब लगातार छोटा होता जा रहा है. वहीं मानसून आते ही आम बहुत तेजी से टूटकर नीचे गिर रहे हैं. लीची की फसल पर भी धूप की ज्यादा मार पड़ रही है और ऐसी घटनाएं बीते सालों में ज्यादा बड़ी हैं.

जलवायु परिवर्तन के कारण फलों की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है. मानसून में बदलाव ऐसा है जैसे सितंबर में बहुत ज्यादा पानी बरसना और तब फलों में फंगस और संक्रमण की समस्या शुरू हो जाती है. वहीं लंबे समय तक उच्च तापमान के चलते फलों की नमी उसे प्रभावित कर रही है. यानी खेती पर जलवायु परिवर्तन का कुप्रभाव लागत को बढ़ा रहा है और उपज घट रही है, साथ ही फलों की गुणवत्ता भी बढ़ रही है.

फलों के उत्पादन में आ रही गिरावट

कुल मिलाकर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव फलों की गुणवत्ता और पैदावार पर नकारात्मक असर डाल रहा है. हालांकि, उत्तराखंड के किस फलों की खेती में नई-नई तकनीकें अपना रहे हैं लेकिन जलवायु परिवर्तन सबसे बड़ी चुनौती है.

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डाटा पर अगर नजर डालें तो उत्तराखंड में फलों (आम, अंगूर और अन्य ताजे फल) का निर्यात 2015-16 में 4551.35 मीट्रिक टन से घटकर 2023-24 में 1192.41 मीट्रिक टन रह गया. वहीं कीमत के हिसाब से देखें तो फलों का निर्यात 2015-16 में 10.38 करोड़ था, जो गिरकर 2023-24 में 4.68 करोड़ हो गया.

उत्तराखंड के वरिष्ठ कीट विज्ञानी और खाद्य प्रसंस्करण विशेषज्ञ सुश जोशी कहते हैं कि दस साल पहले उत्तराखंड में सेब का बहुत अच्छा उत्पादन होता था. पिछले कुछ वर्षों में जलवायु परिवर्तन के कारण गर्म हो रहे राज्य में सेब उत्पादन में गिरावट आई है. किसान अब कम ठंड में उगने वाली सेब और आड़ूकी किस्में लगा रहे हैं, साथ ही ड्रैगन फ्रूट और कीवी जैसे सूखा सहन करने वाले फलों की खेती कर रहे हैं. राज्य ने अब सेब उत्पादन बढ़ाने‌ के लिए ‘एप्पल मिशन’ शुरू किया है, जिसमें उच्च घनत्व वाली खेती शामिल है.

पॉली हाउस और टपक सिंचाई जैसी तकनीकें‌ किसानों को जलवायु परिवर्तन से बचाने में मदद कर रही हैं. फलों की उत्पादकता बढ़ाने में मधुमक्खी पालन महत्वपूर्ण हो जाते हैं, क्योंकि सेब जैसे फलों में परागण में मधुमक्खियों की बहुत महत्वपूर्ण भूमि का होती है.

डॉक्टर विश्व बंधुपटेल, सहायक महानिदेशक, ICAR-IARI‌ कहते हैं कि फलों की खेती के लिए अब कम ठंड में बढ़ने वाली और जल्दी तैयार होने वाली किस्में विकसित की जा रही हैं. तापमान बढ़ने के ‌कारण अब हम ड्रैगन फ्रूट, कीवी और ब्लूबेरी जैसी फसलें उगा पा रहे हैं, जिनके लिए पहले हमें आयात पर निर्भर रहना पड़ता था. उत्तराखंड में इन फलों की संभावनाएं बढ़ी हैं.

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